नव प्रभाववाद

नव प्रभाववाद

Neo Impressionism 1886-1906 ई0 तक

प्रभाववाद की त्रुटियो को देखकर जिन कलाकारो ने नई दिशा मे प्रयोग किए उनमे जॉर्ज सोरा प्रमुख था । उसने जिस शैली को जन्म दिया वह नव प्रभाववाद नाम से प्रसिद्ध हुई ।

नव प्रभाववाद 19 वीं शताब्दी मे शुरू हुआ था ।

नव प्रभाववाद की प्रथम प्रदर्शनी 1892 मे हुई थी

सोरा के बाद नव प्रभाववाद का नेत्रत्व सिन्याक ने किया था।

नव प्रभाववाद नाम फेलिफेनिओ ने दिया था ।

नव प्रभाववाद का अन्य नाम बिन्दुवाद या विभाजनवाद है ।

 

जिस समय प्रभाववाद से असंतुष्ट होकर रेन्वार ने मनुष्याकृतियो को ठोस रूप मे चित्रित करके अपना प्रसिद्ध चित्र स्नानमग्ना युवतिया बनाया , लगभग उसी समय 1884 ई0 मे जॉर्ज सोरा ने उसी विषय को लेकर कैनवास पर तैल माध्यम से नव प्रभाववाद का प्रथम चित्र जो वर्तमान मे नेशनल गैलरी लंदन मे प्रदर्शित है ।

सोरा की कला मे प्रभाववाद से भिन्न दृष्टिकोण था , जिसको देखकर फ्रेंच कला समीक्षक फेलि फेनियों ने 1886 ई0 मे उसकी इस कला शैली को नव प्रभाववाद नाम दिया ।

1899 ई0 मे प्रकाशित सिन्याक की पुस्तक यूजीन देलाक्रा से लेकर नव प्रभाववाद तक मे नव प्रभाववाद के सिद्धांतो का विस्तृत विवरण मिलता है । अमेरिकी वैज्ञानिक ‘ओडेन निकोलस रूड ने अपनी पुस्तक मॉडर्न क्रोमैटिक्स विथ एप्लिकेशन टू आर्ट एंड इंडस्ट्री मे रंगो संबंधी प्रयोग करके सिद्ध कर दिया था की रंगो के प्रत्यक्ष मिश्रण से नेत्र द्वारा किए गए मिश्रण या दृष्टीजन्य मिश्रण का परिणाम अधिक तीव्र व चमकीला होता है ।

बिंदुवादी पद्धति का चित्रकार जॉर्ज सोरा था ।

ऑप्टिकल मिक्सचर बिंदुवाद कला आंदोलन से संबन्धित है ।

नव प्रभाववाद के संस्थापक जॉर्ज सोरा थे ।

नव प्रभाववाद शैली की प्रमुख विशेषता विशुद्ध मूल रंगो के अमिश्रित छोटे धब्बो से रेखांकन करना था ।

नव प्रभाववाद की मुख्य विशेषता दृष्टिजन मिश्रण या ऑप्टिकल मिश्रण थी ।

नव प्रभाववाद का पहला चित्र स्नान स्थल है ।

रंगो की चमक के कारण नव प्रभाववाद को प्रकाशवाद  कहा है ।

 

नव प्रभाववाद के प्रमुख चित्रकार

  1. जॉर्ज सोरा
  2. सिन्याक
  3. मैक्सिमिलिया
  4. आरी
  5. हेनरी एडगो क्रस

 

 

विभिन्न रंगो  के बिन्दुओ का प्रयोग करने वाली चित्रण विधि को बिंदुवाद कहते है

नव प्रभाववाद का प्रवर्तन जॉर्ज सोरा के चित्र एस्नियर्स पर स्नानार्थी से हुआ , इसका अन्य नाम स्नानास्थल (द बाथर्स ) है ।

किसी रंग के साथ-साथ छाया मे उसके पूरक अथवा विरोधी रंग का भी दिखाई देना युगपादत्व का सिद्धांत है , इस सिद्धांत को शेवरुल वैज्ञानिक ने प्रतिपादित किया था ।

नव प्रभाववादी कलाकारो के विषय प्राय होते थे –

अभिनेता, नर्तकिया, दरबारी, गणिकाए, नाटको के पात्र, प्रेमी युगल , प्राकृतिक दृश्य तथा लोक जीवन थे ।

व्हिसलर के चित्र नाक्टर्न इन ब्लैक एंड गोल्ड पर 1877 ई0 मे जॉन रस्किन ने टिप्पणी की थी की चित्रकार ने रंग से भरा बर्तन जनता के मुंह पर फेंक दिया है ।

ला ग्रांडे जैत्ते द्वीप पर एक रविवासरीय अप्रान्ह स्युरा (सोरा) की रचना है ।

पेंटिंग इज द आर्ट हालोइंग एट सरफेस यह कथन स्युरा (सोरा ) का

ऑप्टिकल मिक्स्चर बिंदुवाद कला आंदोलन से संबन्धित है ।

रंगो का प्रकाशीय मिश्रण नव प्रभाववाद से संबन्धित है ।

हेनरी रूसो कलाकार जंगल के दृश्यो के लिए विशेष प्रसिद्ध है ।

 

रूड के इस आविष्कार से नव प्रभाववादियों को नई प्रेरणा मिली ओर उन्होने रंगो के प्रत्यक्ष मिश्रण के स्थान पर भिन्न मूल रंगो के धब्बो को समीप अंकित करके मिश्रित रंग का प्रभाव चित्रित करना शुरू किया ।

प्रभाववाद ओर नव प्रभाववाद मे यह अंतर था की प्रभाववाद मे प्रकाश व वातावरण मुख्य विषय था जबकि नव प्रभाववाद मे मानवाकृतियों व वस्तुओ को सरलीकृत ठोस आकारो मे चित्रित करना था ।

बिन्दुओ द्वारा नव प्रभाववादी चित्रण के कारण इसका नाम बिंदुवाद या विभाजनवाद भी पड़ा ।

रंगो की चमक के कारण नव प्रभाववाद का नाम प्रकाशवाद भी है ।

नवप्रभाववादी आंदोलन के प्रमुख कलाकारो मे सोरा सिन्याक, सिसले तथा पिसारों  इत्यादि थे ।

 

 

जॉर्ज सोरा George Seurat

1859-1891 ई0

सोरा का जन्म 2 दिसंबर 1859 ई0 को पेरिस फ्रांस मे हुआ था ।

सोरा की कला शिक्षा शास्त्रीयवादी कलाकार अंग्र के शिष्य हेनरी लेहमैन के निर्देशन मे पूरी हुई थी

प्रभाववाद का प्रथम विरोध स्वतंत्र कलाकारो के सैलून मे सोरा द्वारा आयोजित 1884 ई0 की एक प्रदर्शिनी मे मिलता है ।

फ्रेंच रसायनशास्त्री मिशेल यूजीन शेवरूल ने सूर्य के रंगो को प्रिज्म द्वारा विखंडित करके इंद्रधनुषी रंग योजना (कुल सात रंग ) के प्रयोग मे सहायता दी जिससे सोरा को काफी प्रेरणा मिली । उसी समय ओडेन रूड के रंग संबंधी प्रयोग ने भी सोरा को प्रभावित किया था ।

गागिन को सोरा की अंकन पद्धति बिल्कुल नहीं  भाती थी । उसने सोरा को उपहास मे हरा रसायन शास्त्री कहा व उसकी अंकन पद्धति को रिप्पी प्वाइंट कहा।

सन 1884 ई0 मे सोरा ने अपना सबसे बड़ा व विख्यात चित्र ला ग्रांद जात्त द्वीप मे रविवासरिय अप्रान्ह को आरंभ किया व 1886 ई0 मे पूर्ण करके स्वतंत्र कलाकारो के सैलून सलो द अंदेपांदा मे प्रभाववादियों की अंतिम प्रदर्शनी मे प्रदर्शित किया ।

सोरा की रंगाकन पद्धति को बिंदुवादी पद्धति कहा जाता है ।

सोरा की कला प चित्र संयोजन की दृष्टि से पुंस ओर जापानी कला का प्रभाव है ।

बिंदुवाद का कलाकार सोरा है ।

सिन्याक की अंकन पद्धति सोरा से अधिक स्वच्छंद व मुक्त थी ।

 

देगा ने इस चित्र का विरोध किया ओर इसे रोमांटिक प्रभाववाद कहा । इस चित्र को देखकर कला समीक्षक यूइमा ने उपहास मे लिखा – ‘इस चित्र के ऊपर जो रंगीन मक्खिया बैठी है उनको हटा दो ओर आप देखेंगे की उनके नीचे कुछ भी नहीं है – न कोई विचार न कोई आत्मा । इस चित्र को सोरा ने तैल रंगो द्वारा कैनवास पर बनाया था । 7*10 फीट  के आकार वाला यह चित्र वर्तमान मे आर्ट इंस्टीट्यूट ऑफ शिकागो मे सुरक्षित है ।

सोरा का एक अन्य सुप्रसिद्ध चित्र सर्कस the circus है । तैल रंगो से कैनवास पर उसने इस चित्र को वर्ष 1891 ई0 बनाया था । इस चित्र मे दौड़ते हुए अश्व पर अपने करतब दिखाती एक सुंदरी चित्रित है । वर्तमान मे यह चित्र म्यूसी द ओर्साय, (पेरिस ) मे सुरक्षित है ।

 

 

सोरा के प्रसिद्ध –

  1. ग्रांद जात्त द्वीप मे रविवासरीय अपरान्ह (A Sunday Afternoon on the island of the la Grande Jatte)
  2. सर्कस the circus
  3. शृंगार Makeup
  4. मंचननृत्य stage dancing
  5. भिन्न मुद्राए different body language

सिन्याक

 

पाल सिन्याक नव प्रभाववाद का सबसे मेहनती सदस्य था । इसके साथ ही वह उत्तर प्रभाववाद प्वाइंटलिज़्म तथा डिवीजनिज़्म कलावाद से भी जुड़ा रहा ।

पॉल सिन्याक का परिचय सोरा से 1884 ई0 की स्वतंत्र कलाकारो की प्रदर्शनी मे हुआ था ।

सिन्याक ने कला के सिद्धांत पर कई महत्वपूर्ण पुस्तके लिखी । जिनमे से 1899 ई0 मे प्रकाशित यूजीन देलाक्रा से नव प्रभाववाद तक प्रमुख है ।

1908 ई0 से 26 साल तक सिन्याक सोसिएते द अंदेपांदा के अध्यक्ष रहा ।

सिन्याक की अंकन पद्धति सोरा से अधिक स्वच्छंद व मुक्त थी उसने मानवाकृतियो के बजाय प्राकृतिक दृश्यो का अधिक चित्रण किया ।

 

 

सिन्याक के कुछ प्रमुख चित्र

  1. द टाउन बीच (1878 ई0 )
  2. वूमेन एट द वेल (1892 ई0 )
  3. पोट्रेट

 

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