बाइंजेंटाइन कला (Byzantine Art ) 330-1453 ई0
बाइजेंटियम (Byzantiyam) प्राचीन यूनानी साम्राज्य की पूर्व ‘राजधानी’ थी जिसे सम्राट ‘कान्स्टेंटाइन’ ने 330 ई0 मे ‘कान्स्टेंटिनोपोल’ नाम दे कर पूर्वी रोम साम्राज्य की राजधानी बनाया। वर्तमान मे यह टर्की (तुर्की) देश का ‘इंस्तांबुल नगर है ।
बाइंजेंटाइन कला पच्चीकारी से संबंध है ।
रंगीन पत्थरो के टुकड़ो को चिपकाकर चित्रकारी करना पच्चीकारी कहलाती है ।
पच्चीकारी का सबसे अधिक प्रओग बाइजेंटाइन कला मे हुआ है ।
मसीही कला को बाइंजेंटाइन कला कहते है ।
प्रारम्भिक मसीही कला के चित्र गुफा के अंदर समाधि मे बने है ।
बाइंजेंटाइन कला मे मुख्य तकनीक आरंभ हुई चार, मणिकुट्टीम चित्र, फेस्कोचित्र, लघुचित्र।
बाइंजेंटाइन कला मोजाइक, पुस्तक चित्र, भित्तिचित्र, पेनलचित्र रूप मे विकसित हुई ।
बाइंजेंटाइन कला के सबसे प्राचीन चित्र कान्स्टेंटिनोपोल गुफा मे (रॉम) मे मिले है ।
धर्म प्रधान कला बाइंजेंटाइन कला है ।
बाइंजेंटाइन कलाकारो ने संगमरमर के स्थान पर रंगीन काँच वस्तु का प्रयोग करने लगे ।
बाइंजेंटाइन कला का प्रथम स्वर्णकाल 6-7 वीं शताब्दी हुआ ।
बाइंजेंटाइन कला का दूसरा स्वर्णकाल 12-13 वीं शताब्दी (जस्टीनियम) था ।
मूर्ति भंजक काल राजा लियो के समय को कहा जाता है ।
बाइंजेंटाइन कला सर्वप्रथम जस्टीनियम के राज्य मे विकसित तथा सुदूर तक फैली ।
बाइंजेंटाइन कला का अंतिम प्रसिद्ध चित्रकार एल्ग्रेके था ।
रोमन पच्चीकारी मुख्यतः फर्श पर की जाती थी ।
कान्स्टेंटाइन द्वारा ईसाई धर्म को राजकीय धर्म घोषित करने के पश्चात ‘बाइजेंटियम’ ईसाई धर्म कला का प्रमुख केंद्र बन गया था ।
क्योंकि इस कला का प्रमुख केंद्र ‘बाइंजेटियम’ था इसीलिए इसको ‘बाइंजेंटाइन कला’ के नाम से जाना गया । यह शैली 330-1453 ई0 के मध्य तक प्रचलित रही ।
‘बाइजेंटाइन कला’ की प्रमुख विशेषता ‘मणिकुट्टीम चित्र’ (Mosaics) है । इस कला का रूप जितना ‘मणिकुट्टीम’ चित्रो मे उभरा है, उतना अन्य पद्धतियों मे नहीं ।
‘मणिकुट्टीम विधि’ के सबसे पुराने उदाहरण ‘रोमन शैली’ मे ‘पोम्पेई नगर के छोटे –छोटे आलो’ मे मिलते है । जिसमे ‘रंगीन संगमरमर के टुकड़ो’ का प्रयोग किया गया था । किन्तु बाइंजेंटाइन कलाकारो ने अपने रुचि के अनुसार बाद मे ‘रंगीन संगमरमर के टुकड़ो’ के साथ-साथ ‘रंगीन शीशे के टुकड़ो’ का भी प्रयोग किया। काष्ठ तल पर मोम की पतली सतह मे इन रंगीन पत्थर्रों तथा शीशे के छोटे –छोटे टुकड़े जमाकर चित्र बनाए गए है ।
बाइंजेंटाइन कला मूलतः धार्मिक तत्वो को लेकर ही आगे बढ़ी ।
यह कला जितनी ‘पूर्वी देशो व सभ्यताओ’ के निकट रही उतना ‘रोमन या यूनानी कलाओ’ के नहीं। इस कारण इस शैली को ईसाई धर्म से संबधित ‘पूर्वी शैली’ कहा जाता है ।
‘सम्राट कान्स्टेंटाइन’ के शासनकाल मे ‘कान्स्टेंटिनोपोल’ की राजधानी बनने के साथ ही ‘बाइंजेंटाइन कला’ का उद्भव हुआ ।
बाइंजेंटाइन कला की मणिकुट्टीम विध्या सबसे अधिक प्रसिद्ध है ।
बाइंजेंटाइन कला मे ‘आकृति विरोधी प्रवृत्ति’ 726-843 ई0 के मध्य तक ।
रोम की लुप्त हुई सभ्यता मे ईसाई धर्म का प्रादुर्भाव हुआ था ।
बाइंजेंटाइन प्रार्थना गृहो का पूर्ण विकास क्रॉस आधारित भूविन्यास रूप मे हुआ था ।
‘बाइंजेंटाइन कला’ मोजेक कला रूप का सबसे अधिक प्रयोग हुआ ।
यह कला सम्राट ‘जस्टीनियम प्रथम’ के शासनकाल (527-565 ई0 ) मे अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंची , जिसका प्रमुख केंद्र ‘कान्स्टेंटिनोपोल’ था ।
‘सम्राट जस्टीनियम’ के शासनकाल मे इटली मे निर्मित ‘रेवेन्ना के सान वाइटेल’ नामक गिरजाघर मे इस कला का चरम उन्नति दिखाई देता है । 526-547 ई0 के मध्य बना यह गिरजाघर ‘अष्टभुजी’ है, जिसमे खिड्किया, गुंबद, अर्धगुंबद इत्यादि सभी मणिकुट्टीम चित्रो से अलंकृत किया गया है ।
बाइंजेंटाइन कला मे पीले रंग का बहुलता से प्रयोग किया गया है इस कला मे पीला रंग ‘स्वर्ग’ का प्रतीक माना गया है ।
लियो तृतीय शासक ने बाइंजेंटाइन चित्रकला ओर मूर्तिकला का बनाना रोक दिया था ।
कला मे आकृतियो के चित्रण का निषेध किया गया ।
बाइंजेंटाइन कला का प्रथम स्वर्णिम युग सम्राट का जस्टीनियम है ।
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बाइंजेंटाइन कला मे लगभग सौ वर्ष का समय ऐसा आया , जब ‘आकृति चित्रण’ निषेध कर दिया गया। इस संकटपूर्ण युग का आरंभ सम्राट ‘लियो तृतीय’ (675-741 ई0 )के समय मे हुआ जब 726 ई0 मे उसने कुस्तूनतूनिया (बाइंजेटियम) के राजमहल के मुख्य द्वार पर लगी ‘ईसा की प्रतिमा’ को हटाकर उसके स्थान पर ‘क्रास’खड़ा करवा दिया तथा नीचे लिखवा दिया कि ‘’सम्राट ईसा कि ऐसी प्रतिमा नहीं देख सकता जो न बोल सकती हो, न ही श्वास ले सकती हो’’
आगे चलकर ‘थियोफिलस’ की पत्नी ‘थियोडोरा’ ने अपने पुत्र व साम्राज्य के उत्तराधिकारी ‘माइकेल तृतीय’ की संरक्षिका के रूप मे मुख्य द्वार पर ‘ईसा की प्रतिमा’ पुनः स्थापित करवाई ओर ‘आकृति चित्रण’ पुनः आरंभ हुआ ।
बाइंजेंटाइन कला की दूसरी बड़ी इमारत हेगिया सोफिया गिरजाघर’ है इस चर्च का निर्माण आज से 1479 वर्ष पूर्व 537 ई0 मे ‘इंस्तांबुल’ (आधुनिक तुर्की ) मे किया गया था ।
बाइंजेटाइन कला का एक अन्य उत्कृष्ट उदाहरण ‘सेंट बासिल का गिरजाघर’ जो ‘मास्को’ (रूस ) मे स्थित है ।
बाइंजेंटाइन मूर्तिशिल्प पर हेलेनिस्टिक शैली का विशेष प्रभाव था ।
रॉम की लुप्त होती हुई सभ्यता मे से ईसाई धर्म का प्रादुर्भाव हुआ । बाइंजेंटाइन अलंकरणों मे सबसे अधिक अमूर्त सजावट कूफी लिपि से की गई ।
ईसाई धर्म मे मयूर ईसा मसीह के अमरत्व का प्रतीक है ।
बाइंजेंटाइन कलाकारो के द्वारा धार्मिक प्रकार की विषय वस्तु चित्र हेतु चुनी गई ।
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