गुजराती शैली, अपभृंश शैली

 

गुजराती शैली

  • गुजराती शैली की सबसे पहले जानकारी देने वाले विद्वान आनन्द कुमार स्वामी थे जिन्होने सन 1921 मे बलीं म्यूजियम मे सुरक्षित कल्पसूत्र का सचित्र प्रति का परिचय प्रस्तुत किया था ।
  • तिब्बती इतिहासकार लामातारनाथ के द्वारा दिया गया  परिचय पश्चिम शैली कसमर्थन करते हुए आनन्द कुमार स्वामी ने इसका नामकरण पश्चिमी भारतीय शैली किया था  ।
  •  सन 1924  मे श्री एन0 सी0 मेहता ने गुजरात शैली के नाम से इस शैली का लेखात्मक विवेचन रूपम नामक पत्रिका के माध्यम से प्रकाशित किया था ।
  •  इसका परिचय हमे बसंत विलास की संस्कृत व गुजराती मिश्रित काव्य प्रति थी । बसंत विलास का लिपिकाल 1451 के समक्ष माना जाता है ।
  • यह प्रति गुजरात के शासक अहमद शाह कुतुबुद्दीन के समय कुण्डलीनुम लंबे कपड़े पर  लिखी  गई थी जिसमे 79 चित्र थे जिसका आकार  436 इंच लंबा व 9.15 इंच चौड़ा था ।
  • वर्तमान मे यह वाशिंगटन की फियर आर्ट गैलरी मे स्थित है ।
  •  सन 1926 मे एन0 सी0 मेहता के पुस्तक हिस्ट्रिज इन इंडियन पेंटिंग ऑफ गुजरात मे मेहता जी ने बताया थ की नदिया ,बसंत नर -नारियां आदि का विवरण गुजरात शैली मे छंद के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है ।
  • इसके अलावा विल्हण कृत चौरपंचशीखा मे सचित्र प्रति मिलने के कारण  गुजरात शैली के बारे मे भी जानकारी मिलती है ।

 

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जैन शैली 

  • जैन शैली के चित्र श्वेतांबर संप्रदाय से संबन्धित है ।
  • 12 वीं शताब्दी मे शिथिल पड़ी जैन कला  को जैन मुनियो के द्वारा पल्लवित किया गया ।
  • भरी आक्रमण के कारण जैन कला  गिरनार व आबू मे पल्लवित हुई ।
  •  उसके धीरे धीरे अपने नव निर्माण की ओर अग्रसर हुई ।
  • मुगल व राजस्थानी कला से प्रेरणा पाकर अधिक सशक्त होकर उभरी ।

 

जैन शैली के प्रमुख ग्रंथ भंडार 

  1. पाटन
  2.  अहमदाबाद
  3.   बीकानेर
  4. खंभात
  5. जैसलमेर

 

इन सभी भंडारो मे श्वेतांबर जैन से संबन्धित अनेकों ग्रंथ मिल  जाएँगे जिनकी रचना 11 वीओन से लेकर 15वी0 शताब्दी तक हुई थी ।

प्रमुख जैन तीर्थंकर  व उनसे संबन्धित रंग व शुभंकर

 

  1.  नेमीनाथ   – काला (शंख )
  2. महावीर     – पीला (सिंह )
  3. ऋषभनाथ     – स्वर्ण (वृषभ )
  4. पाशर्वनाथ    – नीला (सर्प )

 

  • जैन शैली को  बिहार शैली भी कहा जाता  है ।
  • पार्सि ब्राउन ने जैन शैली को गुज्जर शैली  नाम दिया था ।
  •  राय कृष्णदास ने जैन शैली की अपभृंश शैली नाम दिया था ।
  •  जैन शैलि को पश्चिम शैली  नाम आनन्द कुमार स्वामी ओर एन0 सी0 मेहता ने दिया था ।
  •  मुनि कांति सागर का विशाल भारत मे एक लेख प्रकाशित हुआ द, जिसकानाम था ” जैनो द्वारा पल्लवित चित्रकला ”।
  • ताड्पत्र पर अंकित कल्पसूत्र कालिकाचार्य कथा के आधार पर निर्मित पाशर्वनाथ  , नेमीनाथ ओर ऋषभ नाथ इसके अलावा  अन्य 20 तीर्थंकर महात्माओ के चित्र जैन शैली  के प्राचीन  उदाहरण है ।
  •  कुछ विद्वान ने इसे प्रारम्भिक पश्चिमी कुछ ने गुजराती शैली कुछ ने अपभृंश शैली नाम दिया । जिसमे जैन शास्त्रो पर प्रकाश डालने वाले चित्र ब्रिटिश म्यूजियम मे है ।

 जैन शैली के चित्र 

  •  महावीर का वैराग्य
  • बालमित्र ओर उनकी  पत्नी  , कालका कथा आदि प्रमुख है ।
  • इस युग के जैन कलाकारो ओर विद्वान मुनियो ने भी  स्वर्ण मे स्याही से मूल्यवान चित्रो ओर पोथियों का निर्माण किया ।
  •  जैन शैली  मेसर्वप्रथम ताड्पत्र  का प्रयोग किया गया ।
  • सिततनवासल मे 5 जैन मूर्ति शिल्प मिलते है ।

 

जैन  चित्रो की विशेषताए 

  • जैन शैली मे वस्त्राभूषणों मे धोती बहुत सुंदर बनाई जाती थी । साधुओ के वस्त्र मोती के समान सफ़ेद उआ सोने के रंग के दिखाये जाते थे ।
  • चित्रो मे चेहरे एक चश्म डेढ़ चश्म ,सवा चश्म  बनाए जाने लागेर ,नेत्र परवल के आकार मे  एवं परली आँख का जैन चित्रकारो ने भारतीय परंपरा के अनुसार नारी को एक आदर्श रूप मे चित्रित किया है ।

 

 

अपभृंश शैली 

  • अपभृंश शब्द्द से अभिप्राय है बिगड़ा हुआ स्वरूप ।
  •  प्रारम्भ मे इस शैली  के चित्रो को जैन शैली कहा गया फिर इसी प्रकार  के चित्र मालवा ,राजस्थान ओर गुजरात मे दूसरे सम्प्रदायो के ग्रंथ भी ,इले तो उनके निश्चित नामकरण की समस्या उठ काही हुई , इसीलिए इसे गुजरात शैली या पश्चिमी भारतीय शैली कहा जाने लगा किन्तु डॉ0 मोतीचन्द्र ने कहा की इस शैली के चित्र   केवल भारत मे नहीं बल्कि भारत अन्य स्थानो से भी मिलते  है इसीलिए इसका केवल  पश्चिमी  नाम रखना उचित है ।
  •  रायकृषनदास ने इस शैली के चित्रो को अपभृंश शैली नाम दिया ।
  • अपभृंश शैली को अजंता शैली का बिगड़ा हुआ रूप कहते है ।
  • अपभृंश शैली का सुधारा हुआ रूप राजस्थानी शैली कहलाती है ।
  •  वैसे अपभृंश नाम के अंतर्गत एलोरा के 10 वीं0 तथा 11 वीं0 शताब्दी के चित्र , पाल शैली तथ जैन शैली सब को रखा जाता है ।
  •  सन 1216 मे एक कल्पसूत्र की प्रति मिली है जो जैसलमेर भंडार  मे स्थित है ।

 

अपभृंश  शैली के चित्रित प्रमुख ग्रंथ 

  • ताड्पत्र पर चित्रित ग्रंथ (1060  से 1350 )
  • कागज पर  चित्रित  ग्रंथ  (1350 से 1550 )

 

 ताड्पत्र पर चित्रित ग्रंथ 

  •  ओधनियुक्तिवृत्ति 1060 यह ग्रंथ भंडार छणि  बड़ोदा  मे संग्रहीत है ।
  • निशिथाचूर्णी 1100 ई0 इस ग्रंथ पर हाथी पर सवार देव व स्त्रिया का अलंकरण है । अपभृंश  की पारली आँख इस ग्रंथ मे नहीं मिलती  है । वर्तमान मे यह पाटन संग्रहालय मे संग्रहीत है ।
  • 1161 का ओधनियुक्तिवृत्ति छगाणी  भंडार मे स्थित हिय ।
  • 1260 मे चित्रित श्रावक प्रतिक्रमणसुतचूर्णी  यह बोस्टन संग्रहालय मे संग्रहीत है इसमे यक्ष व श्री देवी का चित्र बना हुआ है ।

 

 

कागज पर चित्रित ग्रंथ 

  • 14 वीं0 शताब्दी मे यंहा विदेशी आक्रमणकारियो का अधिकार हो गया था  ओर यह विदेशी आक्रमणकारी  कागज को अपने साथ लेकर आए थे ।
  • ओर इसी समय पच्चीकारी नमूना वाले ग्रंथ का चित्रांकन शुरू हो गया था  ओर इसका प्रमुख स्थान गुजरात था ।
  • इसके साम्य मे रंगो  के प्रयोग मे अंतर आ गया था मुख्य तौर पर नीले व स्वर्ण रंगो का प्रयोग होना शुरू हो गया था  इस समय के प्रमुख स्थल मांडू व जौनपुर थे ।
  • 1451  मे चित्रित कल्पसूत्र रॉयल एशियाटिक सोसाइटी मुंबई मे स्थित है ।
  • 1423 मे चित्रित सुपासनाचारियम ग्रंथ मेवाड़ के महाराणा मोकल के शासन काल मे देलवाड़ा नामक स्थान पर चित्रित हुआ था ।
  • इस ग्रंथ मे 37 चित्रहार है ।
  •  1427 मे चित्रित ज्ञान वर्ण महाराणा मोकल के काल मे देलवाड़ा नामक स्थान पर चित्रित हुआ था यह ग्रंथ दिगंबर जैन संप्रदाय से संबन्धित है । वर्तमान मे दलपत व लाला भाई संग्रहालय अहमदाबाद मे स्थित है ।
  •  1451 का बसंत विलास यह कपड़े पर लंबा चित्रित किया गया है इसका आकार 436 *9.15 इंच है , यह ग्रंथ ऋतु से संबन्धित है ।
  • 1439 का कल्पसूत्र यह ग्रंथ मांडू के सुल्तान मुहम्मद शाह के शासनकाल मे चित्रित हुआ है । तथा यह ग्रंथ राष्ट्रिय संग्रहालय नई दिल्ली मे संग्रहीत है ।
  • 1467 का कल्पसूत्र यह मांडू के सुल्ताना हुसैन शाह शर्क़ी के शासन काल मे चित्रित हुआ था । यह ग्रंथ स्वर्ण फ़लक पर चित्रित है ।
  • इससे ईरान के ग्रंथो से तुलना की जाती है । इस ग्रंथ मे जैन साधुओ के सर्वाधिक चित्र है ।
  • वर्तमान मे यह नर सिंह जिनी बोलना भंडार बड़ौदा मे संग्रहीत है ।
  • गुजरात के भोगपाल संग्रह  मे  संग्रहीत ग्रथ  बालगोपाल स्तुति व लोरचनदा से भी हमे अपभृंश शैली के बारे मे जानकारी मिलती है ।
  • लेखक  मुल्ला दो प्याज़ा

अपभृंश शैली की विशेषता 

  • अपभृंशशैली मे लाल ,पीला ,नीला रंगो का प्रयोग अधिक हुआ है ।
  • अपभृंश शैली के चित्रो की पृष्ठ भूमि मे गहरे नीले रंग का प्रयोग किया गया है ।
  • इस शैली मे चेहरे सवा चश्म ,नाक गाल से बाहर निकली हुई है ।
  • परवल की तरह आंखे कान तक खींची गई है ।
  • कमर पतली है तथा खिलौनो की तरह पेड़ पौधो को अलंकारिक रूप बनाया गया है ।

 

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