भारतीय चित्रकला का इतिहास
इतिहासकारो ने इतिहास को तीन भागो मे बांटा गया है
1 प्रागैतिहासिक काल 2 आध प्रागैतिहासिक काल 3 ऐतिहासिक काल
पूरापाषाण काल मध्यपाषाण काल नवपाषाण काल
पुरापाषाण काल (मेगालिथिक एज )-
इसमे मानव शिकार पर निर्भर था ओर मानव को क्वार्टिजाइट कहा जाता था ।
तथा इसकी खोज 30000 ईसा पू0 – 25000 ईसा0 पू0 हुई थी ।
इस काल मे मानव प्रकृति निर्मित गुफाओ मे निवास करता था मानव पूर्ण रूप से जंगली जीवन व्यतीत करता था । उसका अधिकतर समय भोजन की तलाश मे ही व्यतीत होता था ।
इस काल मे मानव पत्थर ,लकड़ी ,हड्डी आदि से भद्दे औज़ारो का निर्माण किया जाता था ।
भारत मे सर्वप्रथम आदिकालीन स्थल की खोज ब्रूसफूट नामक विद्वान ने पल्लावरम(मद्रास ) नामक स्थान प्र 1863 मे की थी । जनहा दो शिलाबट मिले थे ।
इस युग मे मानव निवास स्थल दक्षिण भारत के चेन्नई के पास स्थित अंगोला , कुडापा क्षेत्र आदि मानव के सबसे प्राचीन स्थल माने जाते है ।
मध्यप्रदेश मे मोरेना जनपद के पास पहाड़गढ़ शियोरपुर क्षेत्र मे है ।
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मध्य पाषाण काल (मेसोलिथिक एज )-
इस काल मे पत्थर छोटे व नुकीले औज़ार (माइकेलिथिक )इसका काल 25000 ईसा पू0 से – 10000 ईसा पू0
यह काल पूर्व पाषाण ओर नव पाषाण युग के मध्य का संधिकाल माना जाता है ।
इस युग मे प्राप्त औजारो को सुडौल ओर ज्यामितीय रूप प्रदान किया जाता है ओर मिट्टी के बर्तन बनाने की कोशिश की थी । जिसमे कुछ हद तक मानव सफल भी रहा था ।
औजारो का आकार छोटा होता गया जिनहे मैक्रोलीथ्स कहा जाता है।
मध्य प्रदेश , गुजरत, सिंध ,आंध्र प्रदेश व कश्मीर आदि प्रदेशों मे प्राप्त परिष्कृत औज़ार के आधार पर यह कहा जा सकता है की मध्य युगीन मानव सौंदर्य की सहज अभिव्यक्ति के लिए निरंतर प्रयासरत रहा था ।
नवपाषाण काल (नियोलिथिक एज )–
इस काल मे मानव पशुपालन व बस्तिया बनाकर रहने लगा था तथा पोलिशदार औज़ार ओर समूह मे रहना , कृषि ,चाक करना शुरू कर दिया था ।
इसका काल 10000 ईसा पू0 से 3000 ई0 पू0
चित्रकला का विकास नवपाषाण काल मे हुआ था ।
नव पाषाण काल का खोजा गया स्थल वेल्लारी है ।
वेल्लारी , वायनाइड , एडकल , सिहनपुर , पचमढ़ी , भीमबेटिका , मिर्जापुर , चक्रधरपुर , बुंदेलखंड आदि स्थानो से मिले है ।
मेहरगढ़ पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण एक स्थान है जंहा नव पाषाण काल के अवशेष मिले है । यह स्थान वर्तमान मे ब्लूचिस्तान (पाकिस्तान ) मे बोलन नदी के किनारे यह स्थान विश्व के उन स्थानो मे से एक है जंहा प्राचीनतम कृषि एवं पशुपालन से संबन्धित साक्ष्य प्राप्त हुए है । अवशेषो से पता चलता है की यंहा के लोग गेंहू एवं जौ की खेती करते थे तथा भेड ,बकरी एवं अन्य जानवर पालते थे ।
भारत मे शैल चित्रो की सर्वप्रथम खोज 1867-68 मे एक पुरातत्वविद आर्किबाल्ड कार्लाइल द्वारा की गई थी ।
1880 ई0वी0 मे आर्चिविल व काकबर्न ने विंध्याचल पर्वत श्रेणी मे मिर्जापुर के निकट कैमूर पहाड़ी से कुछ गुफा चित्रो की खोज की ।
इसके बाद 1883 ई0वी0 मे काकबर्न ने इन चित्रो का सचित्र विवरण एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल मे प्रकाशित कराया जिसमे घोड्मंगर (उत्तर प्रदेश ) नामक स्थान से गैंडे के आखेट का दृश्य रेखाचित्र प्रदर्शित करवाया ।
चित्र मध्यप्रदेश
पंचमढ़ी –
इसकी खोज 1936 मे डी0 एच0 गार्डन ने की थी ।
1932 मे जी0 आर0 हंटर ने सर्वप्रथम गुफाओ को देखा ओर ये गुफाये महादेव पर्वत माला मे स्थित है पांडवो का निवास स्थान मानी जाती है इनहि के नाम पर इन्हे पंचमढ़ी नाम से जाना जाता है ।
स्थिति – महादेव की पहाड़ी मे स्थित भोपाल से 70 किमी दूर है ।
पंचमढ़ी से प्राप्त चित्र
विशाल काय बकरी का चित्र (बाजार केव )
शहद एकत्रित करते हुए (जम्बूद्वीप )
शेर व चीते के आखेट का दृश्य (माड़ादेव )
नृत्यवादन (जम्बूद्वीप )
सांभर के आखेट ( इमली खोह )
संगीत का आनंद लेते हुए युगल
प्रागैतिहासिक कालके स्थलो मे सर्वाधिक चित्र पंचमढ़ी से ही मिले है ।
पंचमढ़ी गुफा की तुलना स्पेन की अल्टामीरा गुफा से की जाती है इस गुफा कि खोज 1879 मे एक 12 वर्षीय लड़की मारीआ सातुओला ने की थी ।
रंग – लाल , पीले , रंग की अधिकता पाई गई है ।
पंचमढ़ी मे तीन स्तर के चित्र मिले है ।
1 तख्तीनुमा ओर डमरूनुमा
2 असतुलितनुमा चित्र
3 सामाजिक जीवन से संबन्धित
सिहनपुर –
यह स्थल मध्य प्रदेश की रायगढ़ रियासत मे माँड़ नदी के पूर्वी तट पर स्थित है । 50 चित्रित गुफा मिली है ।
सिहनपुर की खोज डब्लू एंडरसन ने सन 1910 मे की थी ।
इस गुफा का सर्वप्रथम चित्रो का परिचय अमरनाथ ने सन 1913 ई0वी0 मे दिया था । बाद मे पार्सि ब्राउन ने दिया ।
प्रमुख चित्र – सूंड उठाए हाथी का चित्र
घायल भैंसे का चित्र
असंख्य कंगारुओ के चित्र
मृत्युकष्ट से कहराता जंगली भैंसा – सिहनपुर के चित्रो मे सर्वश्रेष्ठ चित्र का उदाहरण है ।
होशंगाबाद (आदमगढ़ )-
होशंगाबाद 45 मील दूर पंचमढ़ी नर्मदा नदी घाटी पर वंहा पर आदमगढ़ की पहाड़ी पड़ता है । नर्मदा नदी के तट पर कुछ खोज मनोरंजन घोष ने 1922 ईस्वी0मे की थी ।
आदमगढ़ मे जिराफ ग्रुप का चित्र प्रसिद्ध है ।
प्रमुख चित्र – घायल भैंसे का चित्र , जिराफ ग्रुप का चित्र , वन देवी का चित्र , मोर का विशाल चित्र ,हाथी ।
आरोही अश्वारोही सैनिको के चित्र स्टेंसिल पद्धति मे अंकित किए गए है । यंहा से छलांग लगाता बारहसिंघा का प्रसिद्ध चित्र प्राप्त हुआ है , जो गहरी पृष्ठभूमि पर पीली रेखाओ से अंकित किया गया है ।
हाथी का सर्वाधिक अंकन होशंगाबाद मे हुआ है ।
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 40 मील दूर दक्षिण मे भीमबेटिका पहाड़ी पर स्थित है । इस गुफा की खोज उज्जैन विश्वविध्यालय के प्रो0 श्रीधर विष्णु वाकण्ण्कर ने 1958 ने की थी । यंहा पर कुल 600 गुफाये है जिनमे डसे 275 मे चित्र प्राप्त है ।
यंहा के चित्रो के 2 स्तर प्राप्त हुए है जो 30000 ईसा0 पू0 से 10000 ईसा0 पू0 तक के है पहले स्तर के चित्रो मे शिकार , नृत्य तथा जंगली जानवरो का चित्रण है जबकि दूसरे स्तर के चित्रो मे जानवरो को मानव सहचर के रूप मे दिखाया गया है ।
क्षेत्र – आदमगढ़ , बूंदनी ,रैहली
विशेषता –
होशंगाबाद मे 6 प्रस्तर के चित्र पाये गए है यंहा पर चित्र छंपाकन पद्धति से बने है ।
1 जिराफ ग्रुप
2 मोर तथा वनदेवी का चित्र
3 छलांग लगाते बारहसिंघा
4 चार धनुर्धारी
5 हल्के पीले रंग का हाथी
6 महामहिष का अंकन (घायल भैंसे का चित्र )
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पहाडगढ़ –
चित्र – मानव आकृतिया घोडा हाथी पर सवार , तीरो ,भालो व धनशों से युक्त
पहाड्गढ़ ग्वालियर से 150 किमी दूर मोरेना जनपद मे है ।
मंदसौर –
मंदसौर जिला मोरी नामक स्थान से गुफा प्राप्त है इसमे 30 पहाड़ी गुफाये प्राप्त है
चित्र
स्थायित्व ,चक्र ,सूर्य ,सर्वतो इन्द्र , अष्ट दल , कमल, पीपल की पत्तिया के प्रतिकात्मक चिन्ह मिले है , देहाती बांस से बनी गाड़ीया , नृत्यरत मानव , पशुओ को हाँकते ग्वाले ।
बोतालदा (मध्यप्रदेश )-
प्राप्त चित्र-
हिरण , छिपकली , जंगली भैंसा
उत्तर प्रदेश की गुफाये
मिर्जापुर –
स्थिति – मिर्जापुर उत्तर प्रदेश का एक जिला है जो सोन नदी की घाटी मे है सोन नदी विंध्याचल पर्वत शृंखला वंहा की कैमूर शृंखला उसमे स्थित है । लिखूनिया भल्डारिया गुफा आदि ।
यंहा पर 100 से अधिक गुफाये मिली है
रंग – पीले ,काले ,लाल ,सफ़ेद रंगो का प्रयोग हुआ है ।
इसकी खोज 1883 मे कोकबर्न ने की थी।
चित्र-
1 घायल सूअर सत
2 हाथी का शिकार (लिखूनिया गुफा )
3 भूत का रहस्यमई चित्र (काण्डकोट गुफा )
4 गैंडे के आखेट का चित्र (घोड्मंगर गुफा )
इनकी छतो पर 5000 ईसा पू0 के चित्र बने है ।
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लिखूनिया –
स्थिति – गरई नदी के किनारे मिर्जापुर मे
विशेषता – नृत्य चित्रो के लिए प्रसिद्ध
1 नृत्यवादन मे मस्त व्यक्तियों का समूह
2 हाथियो के पकड़ने का चित्र
करियाकुण्ड मे बारहसिंगा का पीछा करते हुए धनुर्धरियों का चित्रण मनोहर है ।
घोड्मंगर –
मिर्जापुर मे विजयगढ़ दुर्ग के समीप स्थित यंहा से गैंडे के आखेट का चित्र जो गेरू रंग से अंकित है ।
यंहा पर अधिकांश चित्र गेरू रंग से बने है ।
मलवा –
बिना पहिये की गाड़ी चित्राकृति । तीन दण्डधारी अश्वारोही , जो अपने घोड़े की लगाम पकड़े पैदल जा रहे है ।
विढ़म –
यंहा से भी शिलाश्रय प्राप्त हुए है इसकी खोज जगदीश गुप्त ने की थी ।
मानिकपुर- यंहा बांदा जिले के अंतर्गत आता है (उ0प्र0 )
बांदा –
बांदा मे प्रागैतिहासिक चित्रो की खोज 1907 मे सिल्वेरोड ने की थी । मानिकपुर के निकट प्राप्त एक शिलाश्रय से अश्वारोहियों का चित्र प्राप्त हुआ है यंहा से प्राप्त पहिया रहित छकड़ा गाड़ी का चित्र विशेष प्रसिद्ध है ।
यंहा एक सुसज्जित द्वार पर एक चोंचदार पुरुष बैठा बनाया गया है ।
दक्षिण भारत –
वेल्लारी –
स्थिति – कर्नाटक
विशेषता – दक्षिण भारत मे सर्वप्रथम मानव अस्थिया वेल्लारी से मिली है ।
चित्र – 6 कोणो वाला सितारा इसकी समानता ,स्पेन की कोगुल गुफा से की गई है ।
दक्षिणी भारत मे प्रागैतिहासिक चित्रो का परिचय वेल्लारी की खोज 1892 ई0 मे एक अंग्रेज़ अधिकारी एफ0 फासेट ने करवाया था ।
वायनाड के एडकल (तमिलनाडू )-
खोज – एफ0 फासेट ने 1901 मे की थी ।
चित्र – स्वास्तिक ,सूर्य ,चक्र ,चौखट के चिन्ह मिले है दक्षिण भारत मे अधिकतर चित्र कर्षण वाले मिले है ।
दक्षिण भारत मे मद्रास के निकट बसंत गुड़ी , वायनाड के एडकल , रामपुर आदि स्थानो पर जादू टोने के प्रतीक व शिकार दृश्य मिले है ।
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