सौन्दर्यशास्त्र, कला और दर्शन, रस ओर सौन्दर्य
सौन्दर्यशास्त्र की परिभाषा
सौन्दर्यशास्त्र दर्शनशास्त्र की एक शाखा है । यूनानी भाषा का शब्द एस्थेसिस शब्द से ‘एस्थेटिक’ शब्द बना है । हिन्दी भाषा मे इसे सौन्दर्यशास्त्र के रूप मे जाना जाता है । एस्थेसिस का अर्थ है – ऐंद्रिय सुख की चेतना ।
पाश्चात्य साहित्य मे ‘एस्थेटिक शब्द प्रथम बार 1750 ई0 मे अलेक्ज़ेंडर बामगार्टन द्वारा अपनी पुस्तक एस्थेटिका के प्रथम अनुच्छेद मे ऐंद्रिय संवेदनाओ का विज्ञान कहकर परिभाषित किया है ।
18वीं शती मे बांमगार्टन (1714-1762 ई0) ने ‘फिलोसफ़ी’ को ‘लॉंजिक’ (तर्कशास्त्र), ‘एथिक्स’ (नीतिशास्त्र) ओर ‘एस्थेटिक्स’ (सौंदर्यशास्त्र) तीन अलग –अलग भागो मे विभक्तकर दिया । ‘नीतिशास्त्र’ (एथिक्स) मानव को बुराइयों से हटाकर अच्छाइयों की ओर सौंदर्यशास्त्र (एस्थेटिकस) आनंद की ओर ले जाता है, तथा लॉंजिक (तर्कशास्त्र) तर्क की ओर । एस्थेटिक्स तभी से अन्य विषयो की भाति अधय्यन का एक स्वतंत्र विषय बन गया ।
- ‘एस्थेटिक’ (सौंदर्यशास्त्र) शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम जर्मन दार्शनिक बामगार्टन ने किया था ।
- ‘एस्थेटिक’ शब्द यूनानी भाषा का शब्द है ।
- ‘एस्थेटिक’ का मूल रूप ‘Atoantikos’ है ।
- हिन्दी भाषा मे ;एस्थेटिक’ को सौंदर्यशास्त्र के रूप मे जाना जाता है ।
बामगार्टन
- ‘फादर ऑफ एस्थेटिक बामगार्टन को कहा जाता है ।
बामगार्टन जर्मन दार्शनिक के साथ ही एक शिक्षक भी थे । इनका जन्म 17 जुलाई 1714 को जर्मन (परसिया ) के बर्लिन मे तथा मृत्यु 26 मई 1762 को हुई थी अल्बर्ट ड्यूरर जर्मन चित्रकार ओर विचारक थे । दांते इटली के दार्शनिक एवं कवि थे । जबकि क्रोचे इटली के आत्मवादी दार्शनिक एवं अभिव्यंजनवाद के प्रवर्तक थे।
बामगार्टन की प्रमुख पुस्तके –
- Ethica Philosphica (1740 ; Philosphica Ethic)
- Acroasis Logica (1761 ; Discourse on Logic)
- Jus Naturae (1763; Natural Law )
- Philosphica Generalis (1770; General Philosphica )
- Praelectionel Theological (1773; Lectures On Theology)
भरतमुनी
भारतीय सौन्दर्यशास्त्र के प्रथम दार्शनिक भरतमुनी है ।
नाट्यशास्त्र के प्रणेता भरत मुनि है ।
भरत मुनि द्वारा लिखित ‘नाट्यशास्त्र’ प्रथम शताब्दी की रचना है ।
सर्वप्रथम आचार्य भरतमुनी ने नाट्यशास्त्र मे आठ रसो को बतलाया था ।
नाट्यशास्त्र मे भरतमुनी ने 49 (आठ स्थाई ,तैंतीस संचारी ओर आठ सात्विक ) भावो का विवेचन किया है ।
रस सिद्धांत के प्रवर्तक आचार्य भरतमुनी को माना जाता है ।
रस सिद्धांत का प्राचीनतम प्रतिपादक ग्रंथ भरत का नाट्यशास्त्र है । जो संस्कृत भाषा मे लिखा गया है । इसमे कुल 36 अध्याय व 6000 श्लोक है । (प्रथम शताब्दी ई0पू0)
भरत ने नाट्यशास्त्र के षस्ठ एवं सप्तम अध्याय मे रस का वर्णन किया है
भरत से पूर्व रस की दो परंपराए थी एक दुहिणी जो आठ रस मानते थे तथा दूसरी वासुकी जो शांत नामक नवा रस भी मानते थे । भरतमुनी ने निष्पत्तिवाद सिद्धांत दिया है ।
भरतमुनी ने दुहिणी द्वारा समर्पित 8 रसो को मान्यता देकर 8 स्थायी,33 व्यभिचारी एवं 8 सात्विक भावो का निरूपण किया है।
भाव | रस |
रति | शृंगार |
हास | हास्य |
शोक | करुण |
उत्साह | वीर |
क्रोध | रौद्र |
भय | भयानक |
जुगुप्सा | वीभत्स |
विस्मय | अद्भुत |
रस का अर्थ दर्शक के मन मे उत्पन्न आनंद की अनुभूति है ।
सौन्दर्यशास्त्र के अनुसार भाव 9 होते है।
‘हिन्दू व्यू ऑफ आर्ट’ (1933 ) पुस्तक डॉ मुल्कराज आनंद ने लिखी थी ।
प्रिंसिपल ऑफ आर्ट पुस्तक के लेखक प्रो0 कलिंगवूड है ।
आर0जी0 कलिंगवूड ब्रिटिश दार्शनिक व काला इतिहासकर है ।
सौंदर्य क्या है – रस निष्पत्ति
‘रस उत्पत्ति’ को सबसे पहले भरतमुनी ने परिभाषित किया था ।
‘उदात्त का सिद्धांत’ सौंदर्यशास्त्र मे लोंजाइनस ने किया था ।
जी0डब्लू0 एफ0 हीगल का जन्म जर्मनी मे हुआ था ।
अद्भुत रस मे पीला रंग है ।
अभिनव गुप्त
भरतमुनी के पश्चात रस सिद्धांत का प्रतिपादन अभिनवगुप्त ने किया था ।
भारतीय सौंदर्यशास्त्र मे रस प्रतीति मे विघ्न की बात अभिनवगुप्त ने कही है।
अभिनव गुप्त के अनुसार 9 वा रस शांत रस है
भारतीय सौंदर्यशास्त्र मे भरतमुनी के पश्चात विशिष्टतम प्रवर्तक अभिनव गुप्त माने जाते है। उन्होने नाट्यशास्त्र पर ‘अभिनव भारती’ नामक टीका लिखी । इस टीका मे अभिनवगुप्त ने बताया है की लोल्लट, उद्भट, शंकुक, कीर्तिधर के अलावा भट्टनायक तथा ओर भी कई आचार्यो की नाट्यशास्त्र पर टिकाए देखि थी ।
अभिव्यक्तिवाद सिद्धांत’ अभिनव गुप्त का है ।
‘भारतीय सौंदर्यशास्त्र के अनुसार रस कला की आत्मा है यह कथन सर्वप्रथम अभिनव गुप्त का है ।
पाश्चात्य सौंदर्यशास्त्र ‘अनुकृति सिद्धांत’ के प्रणेता प्लेटो (तत्पश्चात अरस्तू ) है ।
भारतीय सौंदर्यशास्त्र के अनुसार , ‘’रस कला की आत्मा है’ , यहा कथन अभिनव गुप्त का है ।
भरतमुनी ने आठ प्रकार के रसो का वर्णन किया है । अभिनवगुप्त ने ‘’शांत रस’’ को नवा रस माना है अतः अभिनवगुप्त ने शांत रस को पहली बार प्रस्तुत किया ।
सुनीति शतक मे आचार्य विध्यसागर ने लिखा है , ‘’जिस प्रकार तिलक के बिना चन्द्रमुखी, उधम के बिना देश, सम्यक दृष्टि के बिना मुनि का चरित्र सुशोभित नहीं होता, उसी प्रकार ‘शांत रस’ के बिना कवि सुशोभित नहीं होता ‘’।
अभिनवगुप्त ने रस सिद्धांत की मनोवैज्ञानिक व्याख्या (अभिव्यंजनवाद) कर अलंकार शास्त्र को दर्शन के उच्च स्तर पर प्रतिष्ठित किया तथा प्रत्यभिज्ञा ओर त्रिक दर्शनों को प्रोढ़ भाष्य प्रदान कर इन्हे तर्क की कसौटी पर व्यवस्थित किया।
वेदान्त के आधार पर ‘अभिव्यक्तिवाद’ का प्रतिपादन अभिनवगुप्त ने किया उनके मतानुसार काव्यास्वादन से पाठक के हृदय मे किसी नए तत्व की सृष्टि नहीं होती , अपितु उसकी जन्मजात वासनाए ही उद्वेलित होकर व्यक्त हो जाती है। ये वासनाए सभी प्राणियों मे विधमान होती है।
सौंदर्यनुभूति पर भरत ओर प्लेटो की विचारधारा –
सौंदर्यनुभूति पर ‘भरत’ ओर ‘प्लेटो’ की विचारधारा भिन्न है। नाट्यकाव्य कला के संदर्भ मे भरत ने सौंदर्यनुभूति का सर्वोच्च स्थान रंगमंच को माना है किन्तु प्लेटो ने इसे बौद्धिक स्तर से हीन माना है, काव्य को भृष्ट करने वाली विधा कहा है । करुण रस का संचार जंहा भरतमुनी की दृष्टि से सहृदय को पिघला कर उसे सहज सौंदर्यनुभूति कराता है, प्लेटो के मत से वह उन्हे भावुक बनाकर विवेकपूर्ण उच्च बौद्धिक तंत्र से गिरा देता है ।
ब्रह्मा के चार मुख चार वेदो के प्रतीक है ।
‘भारतीय सौंदर्यशास्त्र मे रस की भक्ति होती है ये सिद्धांत भट्टनायक का है ।
‘आन मोनार्की’ ग्रंथ दांते का है ।
सौंदर्य दर्शनशास्त्र का अंग है ।
सौंदर्यशास्त्र को सौन्दर्य मीमांसा तथा आनंद मीमांसा भी कहते है ।
‘’साहित्य संगीत कला विहीन’’ यह कथन भर्तृहरि का है ।
‘रेखावली’ ग्रंथ प्रो0 रामचन्द्र शुक्ल ने लिखा ।
‘कलाकार कोई विशेष प्रकार का मनुष्य नहीं होता बल्कि हर मनुष्य एक विशेष प्रकार का कलाकार होता है । यह कथन आनंद कुमार स्वामी का है ।
लिबिडो थ्योरी के प्रतिपादक सिगमंड फ्रायड है ।
‘युद्ध ओर शांति’ टॉलस्टाय का प्रसिद्ध उपन्यास है ।
‘सौंदर्य भगवान का हस्तलेख है । यह कथन इमरसन का है ।
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कार्ल मार्क्स-
‘‘द पावर्टी ऑफ फिलोसफ़ी’’ कार्ल मार्क्स की महत्वपूर्ण रचना है ।
कार्ल मार्क्स (1818-1883) जर्मन दार्शनिक थे ।
।
सांतायाना अमेरिका सौन्दर्यशास्त्री है ।
हरबर्ट रीड इंग्लिश कला –इतिहासकार व कला समीक्षक थे ।
मीनिंग ऑफ आर्ट के लेखक हरबर्ट रीड है ।
‘कला एक अभिव्यक्ति है’ यह कथन रस्किन का है ।
‘आर्ट एण्ड इल्यूजन’ ई0 एच0 ग्रोंब्रीच ने लिखा है ।
‘आइडियल्स ऑफ द ईस्ट’ की पुस्तक के कलाकार ओंकाकुरा है ।
‘द एनालिसिस ऑफ ब्यूटी’ पुस्तक विलियम होगार्थ ने लिखी है ।
फिलोसफ़ी इन ए न्यू की’ अमेरिकन दार्शनिक सुजैन के लैंगर की पुस्तक है ।
कामसूत्र
कामसूत्र के रचयिता का नाम वात्स्यायन है ।
कामसूत्र , वात्स्यायन द्वारा लिखा गया भारत का एक ‘कामसूत्र ग्रंथ’ है । कामसूत्र को उसके विभिन्न आसनो के लिए जाना जाता है । वात्स्यायन का कामसूत्र विश्व की प्रथम यौन संहिता है, जिसमे यौन प्रेम के मनोशारीरिक सिद्धांतों तथा प्रयोग की विस्तृत व्याख्या एवं विवेचना की गई है ।
कामसूत्र मे 64 प्रकार की कलाओ का वर्णन किया गया है ।
अर्थ के क्षेत्र मे जो स्थान कौटिल्य के अर्थशास्त्र को प्राप्त है , काम के क्षेत्र मे वही स्थान कामसूत्र का है ।
जयदेव ने अपनी रचना ‘रतिमंजरी’ मे कामसूत्र का सार, संक्षेप मे प्रस्तुत किया है ।
कामसूत्र के उस टीका के जिसमे ‘षडंग’ का वर्णन है, के टीकाकार यशोधर पंडित है ।
भारतीय षडंग (छः अंग) के रचयिता यशोधर पंडित है।
भारतीय चित्रकला के छः अंगो का विस्तृत विवरण यशोधर कृत जयमंगला ग्रंथ मे मिलता है ।
षडंग सिद्धांत जयमंगला ग्रंथ मे है ।
वात्स्यायन रचित कामशास्त्र की व्याख्या या टीका मे कला के षडंग का उल्लेख यशोधर ने किया है ।
ऋग्वेद मे चमड़े पर बने अग्निदेव देवता के चित्र का उल्लेख है ।
‘आरोपवाद’ या ‘उत्पत्तिवाद’ के प्रतिपादक भट्टलोललक है।
रस सिद्धांत तथा व्याख्याकार
रस सिद्धांत | व्याख्याकार |
आरोपवाद या उत्पत्तिवाद | भट्टलोललक |
अनुमतिवाद | शंकुक |
भुक्तिवाद | भट्टनायक |
अभिव्यक्तिवाद | अभिनव गुप्त |
‘अनुमतिवाद सिद्धांत’ शंकुक का है ।
‘भुक्तिवाद सिद्धांत’ भट्टनायक का है ।
‘अभिव्यक्तिवाद सिद्धांत’ अभिनव गुप्त का है ।
आनंदवर्धन कृत ‘धव्न्यालोक’ की टीका ‘धव्न्यालोकलोचन‘ नाम से अभिनव गुप्त ने लिखी है ।
ध्वनि सिद्धांत का परिचय आनंदवर्धन ने दिया है ।
अलंकार सिद्धांत के प्रणेता आचार्य भामह थे ।
‘काव्यशास्त्र’ के रचनाकार आचार्य भामह है ।
‘द स्टोरी ऑफ आर्ट’ पुस्तक ग्रोब्रीच की है ।
हंगेरियन आर्ट क्रिटिक फैरिक काजिन्स्की थे ।
सुकरात
किसने कहा था – ‘मै यह जानता हूँ कि मै कुछ नहीं जानता’ – सुकरात ने कहा था ।
महान दार्शनिक सुकरात का जन्म 470 ई0 पू0 मे एथेंस (ग्रीस) मे हुआ था ।
सुकरात के अनुसार ‘कला अनुकरण है ओर सत्य से दोहरी दूर रहता है’।
प्लेटो (428 ईसा पू0 से 347 ईसा पू0 )
‘कला सत्य की अनुकृति है’ यह कथन प्लेटो का है ।
कला अनुकरण है; यह कथन प्लेटो का है ।
‘कला यथार्थ अनुकृति का अनुकरण है । यह कथन प्लेटो का है ।
महान दार्शनिक प्लेटो की दर्शन दीक्षा सुकरात दार्शनिक की छत्रछाया मे सम्पन्न हुई ।
प्लेटो ने संसार को ईश्वर की अनुकृति (नकल) बताया है तथा काव्य (कला) को संसार की अनुकृति (नकल) कहा है ।
प्लेटो ,यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिक, गणितज्ञ ओर सुकरात के शिष्य एवं अरस्तू के गुरु थे । उसने अपने शिक्षक सुकरात ओर सबसे प्रसिद्ध विध्यार्थी अरस्तू के साथ पश्चिमी दर्शनशास्त्र ओर विज्ञान की स्थापना की थी। सुकरात के विचारो ओर सिद्धांतों को प्रचलित करने का श्रेय प्लेटो को जाता है , जिन्होने गुरु सुकरात की शिक्षाओ को समझाया व उनके मतो को नए आयाम भी दिये ।
अरस्तू
‘द डार्क चैंबर’ अरस्तू का सिद्धांत है ।
अरस्तू के अनुसार, अनुकृति करना कला का परम पावन धर्म है । मानव मे बाल्यकाल से ही अनुकरण करने की प्रवृत्ति होती है । संसार का सर्वश्रेष्ट प्राणी सब कुछ नकल करके सिखता है। नकल मे उसे आनंद आता है उसने लिखा है की ‘कला प्रकृति की अनुकृति करती है’ ।
विरेचन संबंधी अपनी अवधारणा ‘अरस्तू’ ने त्रासदी के संबंध मे दी थी, क्योंकि ‘प्लेटो’ ने त्रासदी पढ़ी यह आरोप लगाया था की वह मनुष्य की हीन वासनाओ को उद्बुद्ध (जागकर) कर उसे कमजोर बनाती है। इसलिए यह मानसिक-स्वास्थ्य की दृष्टि से अहितकर है । इसी मान्यता का खंडन करते हुए अरस्तू ने विरेचन सिद्धांत दिया । अरस्तू के अनुसार कला ओर साहित्य के द्वारा हमारे दूषित मनोविकारों का उचित रूप से विरेचन (भावात्मक परिष्कार) हो जाता है ।
अरस्तू ने कला को प्रकृति की नकल कहा है ।
‘विरेचन का सिद्धांत’ अरस्तू से संबन्धित है।
भारतीय चित्रकला के छः अंगो की व्याख्या जयमंगला ग्रंथ मे है ।
प्रो0 रामचन्द्र शुक्ल
प्रो0 रामचन्द्र शुक्ल की कला पर काशी शैली का प्रभाव है ।
‘रस मीमांसा’ आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की रचना है ।
भारत मे प्रोफेसर रामचन्द्र शुक्ल समीक्षावादी शैली भारतीय समकालीन कला से संबन्धित है ।
प्रो0 रामचन्द्र शुक्ल समीक्षावादी चित्रकार के रूप मे जाने जाते है ।
‘समानुभूति’ की अवधारणा थियोडोर लिप्स ने प्रस्तुत किया है ।
भारतीय काव्यशास्त्र के प्रमुख संप्रदाय एवं व्याख्याकार
ध्वनि सिद्धांत | आनंद वर्धन |
अलंकार सिद्धांत | आचार्य भामह |
रीति सिद्धांत | आचार्य वामन |
औचित्य सिद्धांत | आचार्य क्षेमेन्द्र |
आचार्य भामह
‘’अलंकार सिद्धांत’’ आचार्य भामह ने प्रतिपादित किया ।
अलंकार सिद्धांत के प्रवर्तक आचार्य भामह (6 वीं शताब्दी मध्यकाल) है । उनकी मान्यता थी की बिना अलंकारो के काव्य रूपी प्रकार शोभित नहीं हो सकता, जिस प्रकार किसी सुंदर स्त्री का मुख बिना अलंकारो के शोभा नहीं पाता है ।
आचार्य वामन
रीति सिद्धांत का प्रतिपादन आचार्य वामन ने किया था ।
आचार्य वामन ने रीति शब्द का प्रयोग करते हुए उसकी परिभाषा दी है ओर उसे काव्य की आत्मा कहा है, इसलिए वामन को ही ‘रीति सिद्धांत’ का प्रवर्तक माना जाता है ।
क्षेमेन्द्रनाथ
क्षेमेन्द्रनाथ की रचना ‘कला विलास’ मे सर्वाधिक कलाओ के नाम दिये हुए है , इनमे 64 कलापयोगी कलाए , 32 धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति की ओर 32 मात्सर्य, शील , प्रभाव ओर मान की है इसके अतिरिक्त 64 कलाए सुनारो की सोना चुराने की , 64 कलाए वेश्याओ की नागरिकों को मोहित करने की, 10 भेषज कलाए ओर 16 कायस्थों की कलाए है, जिनमे उनके लेखन का ओर लेखन कला द्वारा जनता ओर शासन को धोखा देने की बाते है। इसके अतिरिक्त गणको की कलाओ एवं 100 सार कलाओ का वर्णन है ।इस प्रकार क्षेमेन्द्रनाथ ने ‘कला विलास’ मे 300 से अधिक कलाओ का उल्लेख किया है। ‘कामसूत्र’ ओर शुक्रनीति मे 64 कलाओ का वर्णन मिलता है ।
भट्टनायक
भट्टनायक का रस निष्पत्ति भुक्तिवाद से संबन्धित है। इनका कथन है की रस की न तो प्रतीति (अनुमिति) होती है ओर न हीं अभिव्यक्ति होती है । भट्टनायक ने काव्यादी द्वारा रस निष्पत्ति मे तीन व्यापार माने है – प्रथम, अभिधा जिसके द्वारा शब्दार्थ का ज्ञान होता है । दूसरा, भावकत्व व्यापार ,जिसके द्वारा विभवादी तथा इत्यादि स्थायी भाव साधारणीकृत होकर उपभोगयोग्य बन जाते है, तीसरा, भट्टनायक के अनुकूल साधारणीकृत स्थायी भाव का उपयोग होता है।
‘द फिलोसफ़ी ऑफ फ़ाइन आर्ट’ , हीगल (जर्मन दार्शनिक ) द्वारा रचित ग्रंथ है
ललितकला का सर्वप्रथम तर्कसंगत वर्गिकरण हीगल ने किया ।
‘पोरफाइरी’ ग्रंथ के लेखक लोंजाइनस है ।
‘भारत शिल्प के षडाग’ पुस्तक के लेखक अवनींद्रनाथ टैगोर है ।
यशोधर के चित्र-षडाग की पुनर्व्याख्या अवनींद्रनाथ टैगोर ने की ।
विष्णु-धर्मोत्तर पुराण’
‘विष्णु-धर्मोत्तर पुराण’ के चित्रसूत्र मे 9 रसो अथवा प्रधान वृत्तियो की चर्चा है ।
चित्रसूत्र कि रचना नारायण मुनि ने कि ।
‘विष्णुधर्मोत्तर पुराण मे 5 कलारूपों की चर्चा की गई है ।
विष्णुधर्मोत्तर पुराण मार्कन्डेय मुनि ने लिखा है ।
विष्णुधर्मोत्तर पुराण गुप्त काल (छठी शताब्दी ई0 ) का है ।
विष्णुधर्मोत्तर पुराण चित्रकला ,मूर्तिकला एवं वास्तुकला तीनों से संबन्धित है ।
चित्रसूत्र 9 अध्यायों मे विभक्त है ।
चित्रसूत्र के 5 वा अध्याय मे ‘क्षयवृद्धि’ का वर्णन किया गया है ।
‘कलाना प्रवर चित्र धर्मकामार्थ मोक्षदम’ चित्रसूत्र पुस्तक से उद्धरत्त है ।
‘चित्रलक्षण’ के रचयिता राजा भयजित (नग्नजित) है ।
पौराणिक रूप से चित्रकला की उत्पत्ति से संबन्धित कथा का वर्णन चित्रलक्षणम मे मिलता है ।
पौराणिक रूप (चित्रलक्षण के अनुसार) प्रथम चित्रकार ब्रह्मा है ।
‘अभिज्ञानशाकुंतलम’ के रचियिता कालिदास है ।
‘मेघदूत’ कालिदास की रचना है।
मेघदूत मे वर्णित यक्ष ने धातु रंग से यक्षिणी का चित्र बनाया था ।
‘आर्ट एंड ट्रेडीशन’ पुस्तक के लेखक असित कुमार हलदार है ।
भारतीय ग्रंथ ‘वृहतसंहिता’ का रचयिता वाराहमिहिर है ।
‘रामचरित मानस व ‘विनयपत्रिका’ के लेखक तुलसीदास है
एमैनुअल काँट
- ‘क्रिटिक ऑफ प्योर रीज़न’ (1781 ई0) तथा ‘क्रिटिक ऑफ जजमेंट’ (1790 ई0) के लेखक काँट एमैनुअल है ।
- ‘’सौन्दर्य उद्देश्य विहीन है’’ यह कथन काँट का है ।
- एमैनुअल काँट के सिद्धांत का आधार अन्तर्ज्ञान है ।
- सर्वप्रथम एमैनुअल काँट ने ‘’कला अभिव्यक्ति’’ कहा है ।
- ‘पद्मावत’ के लेखक मलिक मुहम्मद जायसी है ।
- तुलसीदास का जन्म उ0प्र0 के चित्रकूट जिले के राजापुर नामक कस्बे मे हुआ था ।
- तुलसीदास अकबर के समकालीन थे ।
- ‘प्रेम से अधिक सुंदर यंहा कुछ भी नहीं है’ – यह कथन रवीन्द्रनाथ टैगोर का है ।
- ‘ललित विस्तार’ ग्रथ के लेखक बुद्धघोष है ।
- चाणक्य प्रसिद्ध थे – अर्थशास्त्र के लिए ।
- कला समीक्षा से कौन संबन्धित है – रतन परिमु ।
- ‘समरांगण सूत्रधार’ के लेखक राजा भोज है ।
- मिथ्स एंड सिंबल्स इन इंडियन आर्ट एंड सिविलाइजेशन’ नामक पुस्तक के लेखक हेनरिक जिमर है ।
- चीन मे षडंग के रचनाकार शी हो है ।
- गेटे जर्मनी देश के कवि ,उपन्यासकर तथा दार्शनिक थे ।
क्रोचे
- ‘फिलोसफ़ी ऑफ द स्प्रिट’ क्रोचे कि प्रसिद्ध रचना है ।
- कला अंतः प्रज्ञा की अभिव्यक्ति क्रोचे की है ।
- क्रोचे ने कला को तत्वतः भाषा माना है ओर भाषा को तत्वतः अभिव्यक्ति ।
- क्रोचे ने अभिव्यक्ति के दो विभेद किए है – एस्थेटिक सेंस ओर नेचुरोलिस्टिक सेंस।
- क्रोचे ने अभिव्यक्त एवं सौन्दर्य को एक माना है। उन्ही के शब्दो मे ‘’अभिव्यक्त एवं सौंदर्य दो अवधारणए नहीं है। बल्कि एक ही अवधारणा है ‘’
- ‘एक्सप्रेशनिस्ट थ्योरी’ का सबसे प्रमुख प्रवर्तक क्रोचे था ।
हीगल के भांति ही क्रोचे ने भी कलाकृति को बौद्धिक माना है। क्रोचे माइकेल एंजिलों के कथन का उल्लेख करता है – ‘’ मे अपने दिमाग से चित्र बनाता हूँ , तथा हाथ से नहीं’’।
अभिव्यंजना सिद्धांत का सबसे प्रमुख प्रवर्तक क्रोचे था। उसके अनुसार, सौंदर्यनुभूति आंतरिक अनुभूति है । इसे आत्माभिव्यक्ति भी कहा जा सकता है । क्रोचे ने कला ओर सौन्दर्य को लगभग पर्यायवाची रूप मे प्रयुक्त किया है किसी भी आदर्शवादी ने सौंदर्य को वस्तुगत गुण नहीं माना । क्रोचे का यह कथन ‘सौन्दर्य अभिव्यंजना है। अस्पष्ट है। क्रोचे ने लिखा है की सौन्दर्य के माने है जिसका ध्यान कल्याणकारी हो या जिसकाध्यान हमे श्रेष्ठतर मानव बना दे ।
राल्फ वाल्डो इमरसन
इमरसन ने कहा है, ‘’जो कुछ भी सुंदर है, उसे देखने का अवसर कभी मत खोना; सौन्दर्य भगवान का हस्तलेख है, जो पवित्र संस्कार है। हर स्वच्छ चेहरे मे, हर स्वच्छ आकाश मे, हर स्वच्छ फूल ओर देवता के रूप मे भगवान का आशीर्वाद ले’’
इमरसन ने कहा है , ‘’सौन्दर्य परमात्मा की हस्तलिपि है’’ सांतायाना ने कहा है की सौन्दर्य देखने वालो की दृष्टि मे होता है, वस्तु मे नहीं । यह कथन एमरसन का है ।
‘रूपवाद’ के प्रवर्तक रोजर फ्रे थे ।
‘ट्रान्स्फ़ोर्मेशन’ पुस्तक रोजर फ्रे ने लिखी थी ।
एक कथा मे सत्यवान द्वारा भित्ति –चित्र अंकित करने का प्रसंग आया है’ इस कथा का उल्लेख महाभारत ग्रंथ मे मिलता है ।
‘उषा अनिरुद्ध’ की प्रेम कथा का वर्णन महाभारत मे मिलता है ।
महाभारत मे चित्रलेखा चित्रकार का नाम आता है ।
अनिरुद्ध का चित्र चित्रलेखा ने बनाया था ।
‘इंडियन स्कल्पचर एण्ड आइकोनोग्राफी’ के लेखक गणपती वी0 स्थपति है ।
‘कला प्रकृति द्वारा देखा हुआ जीवन है’ यह कथन कलाविद एमिलजोला
‘भारतीय कला समीक्षक’ रवीन्द्रनाथ टैगोर थे ।
‘पार्सि ब्राउन’ ब्रिटिश कला इतिहासकार थे ।
‘इंडियन आर्किटेक्चर’ ग्रंथ के लेखक पार्सि ब्राउन थे ।
‘पंचदर्शी’ के लेखक विधारण्य मुनि है ।
‘भारतीय कला’ नामक पुस्तक के लेखक शरण अग्रवाल है ।
‘गीतगोविंद’ के लेखक जयदेव है ।
सोमेश्वर द्वारा लिखित ग्रंथ रसमाला है ।
‘राजतरंगिनी’ की रचना कल्हण ने की थी ।
‘द फ्लेम्ड मौजेक भारतीय समकालीन चित्र, 1997’ पुस्तक के लेखक नेवली तुली है ।
‘ओसिअन ग्रुप’ के संस्थापक चेयरमैन नेवली तुली थे ।
रस्किन –
‘’मनुष्य अपने भाव को कला के द्वारा प्रकट करता है’’ यह कथन ‘रस्किन’ का है ।
‘मॉडर्न पेंटर्स’ नामक पुस्तक रस्किन ने लिखी है ।
प्रकृति सौन्दर्य के परम उपासक रस्किन के अनुसार, ‘प्राकृतिक सौन्दर्य’ चरित्र के सौन्दर्य का प्रतिबिंब मात्र है । प्रकृति ओर कलात्मक सौन्दर्य का तुलनात्मक अध्ययन करने पर प्राकृतिक सौन्दर्य निश्चित ही अधिक महत्वपूर्ण होगा। रस्किन ने अपने ग्रंथ मे कहा ‘’मेरी समस्त कला रचनाओ का स्रोत कला-प्रेम आधारित नहीं बल्कि पर्वतो ओर समुद्र पर है‘’ । रस्किन का मानना है की ‘’मनुष्य अपने भावो को कला के द्वारा प्रकट करता है अर्थात कला एक अभिव्यकित है’’। वह लेखक समालोचक ओर कलाकार तीनों था । 1846 ई0 मे प्रकाशित ‘मॉडर्न पेंटर्स’ नामक ग्रंथ मे उसने बताया की कला के केवल तीन कार्य है –मानव की धार्मिक आस्थाओ की अभिव्यक्ति, उनकी नैतिक स्थिति की पुर्णोलब्धि तथा उनकी भौतिक सेवा ।
रवीन्द्रनाथ टैगोर
‘’कला मे मनुष्य अपनी अभिव्यक्ति करता है’’
यह विचार रवीन्द्रनाथ टैगोर का है ।
जयशंकर प्रसाद के अनुसार ,’’ईश्वर की कर्तव्य शक्ति का मानव द्वारा शारीरिक तथा मानसिक कौशलपूर्ण निर्माण कला है’’
फ्रायड ने ‘’कला को मानव की दमित वासनाओ का उभार माना है। क्रोचे की दृष्टि से कला बाह्य प्रभाव की आंतरिक अभिव्यक्ति है’’
कला भावो का पृथ्वी पर अवतार है’’। यहा कथन डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल का है।
हीगल
हीगल ने काव्यकला को श्रेष्ठ माना है ।
यूरोप मे हीगल ही प्रथम सौंदर्यशास्त्री थे, जिन्होने कला का वर्गिकरण किया था । उन्होने समस्त विश्व की कला को तीन भागो मे बांटा है ।
1 प्रतिकात्मक 2 शास्त्रीय 3 स्वच्छंदतवादी
हीगल ने इन्हे मानव मस्तिष्क के क्रमिक विकास का प्रतीक माना है ।
हीगल का मत है , ‘’रोमांटिक कला मे अपने विघटन की प्रक्रिया अंतर्निहित होती है’’ ।
भारत मे मुख्यतः 5 ललित कलाए मानी गई है जिसमे चित्रकला, स्थापत्य कला, संगीतकला, वास्तुकला, नृत्यकला आती है, जबकि पाश्चात्य विधवानों ने वास्तुकला, मूर्तिकला,चित्रकला,संगीतकला,काव्यकला को प्रमुख 5 ललित कलाए माना है ।
जॉर्ज विल्हेल्म फ़्रेडरिक हीगल ने काव्यकला को सर्वश्रेष्ठ माना है । हीगल ने ललित कलाओ को 5 भागो मे रखा है । वास्तुकला मे जड़ तत्व अधिकतम होता है, चेतन तत्व न्यूनतम,इसलिए उसे निम्नतम श्रेणी मे रखा। काव्यकला को उच्चतम स्थान दिया है, क्योंकि उसमे बौद्धिक तत्व अधिकतम होता है ओर स्थूल तत्व सूक्ष्मतम । मूर्तिकला को वास्तु कला से उच्चतर, चित्रकला को मूर्तिकला से उच्चतर ओर संगीत कला को चित्रकला से ऊपर क्रमशः स्थान दिया है ।
विलियम शेक्सपियर
‘द मर्चेन्ट ऑफ वेनिस’ विलियम शेक्सपियर ने लिखा था ।
किसने कहा था – ब्यूटी लाइज इन द आइज़ ऑफ द बेहोल्डर’ यानी सौन्दर्य देखने वालो मे होता है, वस्तु मे नहीं’ – विलियम शेक्सपियर ने कहा था
‘शिल्परत्न’ के लेखक श्री कुमार है ।
विलियम शेक्सपियर का जन्म इंग्लैंड मे हुआ था ।
शेक्सपियर ने कहा है, ‘सौन्दर्य वह शराब है, जो पीने ओर पिलाने वाले दोनों को नशे मे चूर कर देती है । ‘’प्रकृति की सुंदरता सौन्दर्य का प्रतिबिंब है। अतः दोनों कथन सही है
स्टेला क्रेमरीश
स्टेला क्रेमरीश अमेरिकन महिला कला इतिहासकार थी ।
‘एक्सप्लोरिंग इंडियाज़ सेक्रेड आर्ट्स’ के लेखक स्टेला क्रेमरीश है ।
पुस्तक ‘प्रिंसिस ऑफ शिवा’ (1988ई0) स्टेला क्रेमरीश ने लिखी थी ।
‘इंडियन टैम्पल पुस्तक स्टेला क्रेमरीश द्वारा रचित है ।
‘रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि थे ।
‘पुष्पक विमान’ देव शिल्पी विश्वकर्मा ने बनाया था ।
देवताओ के प्रमुख शिल्पी का नाम विश्वकर्मा था ।
अश्वमेघ यज्ञ के समय श्रीराम ने सीता की ‘स्वर्ण प्रतिमा’ का निर्माण करवाया था ।
दशरथ की रानी सुमित्रा ने अल्पना बनाई थी ओर चौक पूरे थे ।
सीता की प्रतिमा ‘मय’ नामक शिल्पी ने तैयार की थी ।
सुजान लैंगर सौंदर्यशास्त्री थे ।
यह किसने लिखा है की – ‘’अर्थ एक गुण नहीं बल्कि एक शब्दावली का कार्य है’- सुजान लैंगर ने ।
‘लाइव्स ऑफ द मोस्ट एक्सीलेंट पेंटर्स, स्कल्प्चर्स एण्ड आर्किटेक्चर’ का लेखक जियोर्जियों वसारी है ।
प्राचीन ग्रंथो का काल क्रमानुसार
- वृहतसंहिता (6 वीं शताब्दी )
- कादंबरी (7 वीं शताब्दी)
- अभिनव भारती ( 10 वीं शताब्दी)
- पंचदशी (14 वीं शताब्दी)
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- मारवाड़ शैली
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- मुगलकालीन चित्रकला
- नाथद्वार शैली
- बंगाल शैली अवनीन्द्रनाथ टैगोर