कम्पनी शैली

  तंजौर शैली 

  • प्राचीन काल मे तंजौर कलाओ का समृद्ध केंद्र रहा है । चोल राजाओ के समय यंहा पर्याप्त उन्नति हुई ,
  • तिब्बती इतिहासकार लाम तारानाथ ने दक्षिण की चित्रकला का संक्षिप्त इतिहास प्रस्तुत किया तथा उसके 3 चित्रकारों का उल्लेख किया ।
  • जय ,विजय ,पराजय
  • इसका उद्देश्य 18 वीं शताब्दी मे हुआ यह केंद्र प्राचीन कला का प्रमुख केंद्र रहा था । राजा संभोजी ने राजस्थानी व अनेक रियासतो से भटके चित्रकारो को आश्रय दिया ।
  • तंजौर शैली का उत्कृष्ट चित्र -बालकृष्ण
  • राजा शिवाजी के आश्रय मे 18 चित्रकार परिवार कार्य करते थे ।

 

 

कालीघाट/ बाजार  शैली 

  •  बंगाल मे कोलकाता के काली मंदिर के निकट बाजार मे बिकने  वाले पट चित्रो को प्राय दर्शनार्थी भक्त जन खरीद ले जाते थे।
  • कालीघाट मे 19 वीं सदी मे प्राय कागज ,कपड़ा , कपड़े पर चिपके कागज तथा कैनवास पर चित्रांकन किया जाता था ।
  • जिसमे चित्रो को मोटे कागज के साथ मजबूत कपड़े को चिपकाकर चित्रांकन किया जाता था । इस कला का विकास कालीका मंदिर या कालीघाट पर हुआ था ।
  • कालीघाट चित्रो को डब्लू 0सी0 आर्चर ने बाजार चित्र (बाजार पेंटिंग ) नाम दिया ।
  • इनमे धार्मिक कथाये ,देवताओ की छविया ,तथा सामाजिक विषयो का अंकन होता था । कभी हास्य व्यंग्य  कालीघाट के चित्र भी बनाए जाते थे ।
  • कालीघाट शैली का उत्क्रष्ट चित्र – संगीत का आनंद लेते हुए ।

 

कम्पनी शैली /पटना शैली 

कम्पनी शैली की खोज सन 1943 0 मे पी0सी0 मानक ने की थी

  • नादिरशाह व अहमदशाह अली के आक्रमणों से मुगलिया सल्तनत कमजोर हो गई थी ।
  • उसके बाद इंग्लैंड ,पुर्तगाल ,डच  देशो की व्यापारिक कम्पनी भारत से कच्चे माल  की प्राप्ति के लिए तथा  अधौगिक वस्तुए भारत के बाजार मे बेचने के लिए मुगलो तथा देशी रियासतो को प्राप्त करने मे लगे हुए थे । इनकी होड मे इंग्लैंड की ईस्ट इंडिया कम्पनी आगे निकल  गई ।
  • 1757 मे कम्पनी का देश की राजनीतिक शक्ति पर कब्जा हो गया था ।
  • 1857 मे कम्पनी के शासन के स्थान पर इंग्लैंड की सीधी शासन व्यवस्था लाद दी गई ओर भारत पूर्णत विदेशी सत्ता का गुलाम हो गया ।
  • इंग्लैंड के दो भूदृश्य चित्रकार थॉमस डेनियल व टिली कैटिल ने भारत मे भ्रमण करते रहे उन्होने भारतीय विषयो का ब्रिटिश शैली मे चित्रण किया ।
  • इनके चित्रण  ने तत्कालीन भारतीय परम्परावादी कलाकारो को भी प्रभावित किया ।
  • हम भारतीय कला का सिहावलोकन करे तो हमे स्पष्ट हो जाता है की प्रत्येक युग मे कला को एक विशेष शैली का रूप दिया गया ।
  • कम्पनी शैली या पटना शैली का उद्भव 19 वीं शताब्दी मे हुआ था ।
  • जब भारत मे अंग्रेज़ो को पूर्ण स्वामित्व हो गया था ओर छोटे बड़े रियासतो के राजा -महाराजा अपनी हीन आर्थिक दशा मे जी रहे थे ।
  • ऐसे समय मे इनके आश्रित दरबारी कलाकार अपने जीवोकोपार्जन के लिए अनेक स्थानो पर चले गए थे ।
  • मुर्शिदाबाद कलकत्ता ,मद्रास ,अवध ,पटना आदि स्थानो पर अपना बसेरा बना लिया था ।
  • पटना प्रत्येक दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के कारण अँग्रेजी प्रशासन तथा व्यापार का विशिष्ट केंद्र बन गया था ।
  • पटना मे अंग्रेज़ अधिकारी  अपने साथ इंग्लैंड से अंग्रेज़ चित्रकार को लाये थे जिनमे प्रमुख थॉमस डेनियल ,विलियम डेनियल ,विलियम होजेज़ ,विलियम सिमसिम आदि थे ।
  • ये अंग्रेज़ अधिकारिओ व उनके परिवार के सदस्यो के चित्र बनाते थे ।
  • विलियम डेनियल 1785 से 1794 के बीच भारत मे भ्रमण किया ओर लगभग 144 चित्रो की सीरीज़ तैयार की ।
  • इनका प्रधान केंद्र पटना होने के कारण इस शैली को पटना शैली एवं कंपनी शैली के नाम से पुकारा गया मिसेज आर्चर के मतानुसार पटना चित्रण शैली की कम्पनी शैली की एक उपशाखा है । 
  • इस कला के आंदोलन मे अनेक रियासते सम्मिलित हुई तथा इसी कलाधार मे राजस्थान जयपुर रियासत के महाराजा जगत ने भी चित्रो का निर्माण करवाया था
  • जगत सिंह के राज्यकाल मे यूरोपीय लैंड स्केप आकृतीय बनने लगी ओर लगातार चली आ रही परंपरा को तोड़ दिया ।
  • साहिबराम के समकालीन चित्रकार ज़ो की यूरोपीय कला परम्परा मे खो चुके थे ।
  • यूरोपीय कला से प्रेरित होकर रामसिंह द्वितीय ने मदरसा हुनरी 1857 की स्थापना की  ।
  • राजस्थान के अलावा गढ़वाल मे भी इसका प्रभाव पड़ा था । तथा मोलाराम के पुत्र ज्वालारम इस शैली मे कार्य करते थे परंपरागत चित्रण परंपरा को छोड़ कर यथार्थवादी ढंग से पक्षियो के चित्र तथा टाइपोग्राफ़ी चित्र तैयार करने लगे थे ।
  • कम्पनी शैली का विकास मुगल ओर यूरोपीय शैली मे हुआ ।
  • कंपनी शैली के चित्रो के प्रमुख विषयो मे व्यक्ति चित्र , पशु -पक्षी एवं साधारण लोगो के व्यक्ति चित्र बने थे ।
  • पटना कलम के चित्रो ने ही भारतीय कला न को एक नई दिशा दी ओर स्वतत्र चित्रकला की शुरुआत हुई ।

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कम्पनी शैली के प्रमुख चित्रकार

  1. सेवकराम
  2. ईश्वरीय  प्रसाद
  3. लालचंद
  4. शिवलाल
  5. हुलासलाल
  6. जयरामदास
  7. झूमकलाल
  8. फकीरचंद
  9. डालुराम
  10. गोपालचंद
  11. केहर सिंह

कम्पनी शैली के प्रमुख चित्रण विषय

व्यक्ति चित्र की अधिकता है ।

जापानी मोर

पशु पक्षी

मछली बेचने वाला

टोकरी बनाने वाला

चक्की

लोहार सेविका

मिट्टी के खिलौने बनाते एवं बेचने तथा साधारण लोगो के व्यक्ति चित्र आदि थे ।

 

 

सेवकराम –

  • पटना कलम के प्रथम कलाकार माने जाते है । ये बनारस के राजा के दरबारी चित्रकार थे ।
  • पटना आकर बस गए थे ये बिना पेंसिल से सीधे तूलिका से ही रेखांकंन करते थे । जिसे मुगल शैली मे स्याह कलम कहा जाता था ।

इसके द्वारा बनाए गए प्रमुख चित्र –

  1. सामान बेचता लाला
  2. मछली बेचने वाला
  3. फल बेचने वाला

 

हुलासलाल –

हुलासलाल मुगल चित्रकार मंसूर की तरह पशु -पक्षी चित्रण मे माहिर थे । इनके प्रमुख चित्र

  1. एक मैना
  2. तोता
  3. अकेली चिड़िया फूल की डाली पर

 

जयराम दास –

  • जयराम दास   स्याह कलम के माहिर चित्रकार  थे । जो मात्र काली रेखाओ से चित्रांकन करते थे । ये माइक (अभ्रक ) पर चित्रकारी करने मे माहिर थे । इनके बने चित्रो का प्रयोग ताजिया या मोहर्रम सजाने मे होता था ।

फकीरचंद –

  • फकीरचंद लाल की लोदी कटरा मे एक विख्यात कार्यशाला भी थी । ये भी स्याह कलम के  चित्र बनाते थे जो रेखा प्रधान थे ।
  • शबीह चित्रण ओर व्यवसाय के चित्र भी बखूबी बनाते थे । इनके चित्र इंडियन ऑफिस लाईब्रेरी लंदन मे संगृहीत है ।

 

ईश्वर प्रसाद-

  • कलकत्ता स्कूल ऑफ आर्ट के भूतपूर्व अध्यक्ष थे ।
  • ईश्वर प्रसाद को कम्पनी  शैली का  जंहागीर कहा जाता है
  • ईश्वर प्रसाद कम्पनी शैली के अंतिम चित्रकार थे  ।

 

कम्पनी शैली की प्रमुख विशेषता 

  • भिखारियो के चित्रण केहर सिंह नामक चित्रकार करता था ।
  • व्यक्ति चित्रण लालचंद ,गोपालचंद करता था ।
  • हाथी दाँत व्यक्ति चित्रण – शिवलाल करता था ।
  • हुलासलाल (बनारस ) नामक चित्रकार ने वांकीपुर लिथोप्रेस  लगाया था । जिसमे जयराम दास उसका सहायक था ।
  • बनारस मे कम्पनी शैली को संरक्षण ईश्वरीय प्रसाद ने दिया था । कागज -वसली कागज नेपाल से लाया जाता था ।
  • कम्पनी शैली मे चित्र प्राय छोटे लघु जिसके लिए कागज तथा हाथी दाँत की पटरियो का प्रयोग किया जाता था , जल रंग व तैल रंग मे चित्रण कार्य  हुआ ।
  • कम्पनी शैली के अन्य  केंद्र  – पटना ,बिहार ,उड़ीसा, पंजाब , महाराष्ट्र
  • चित्रो का सेट फिरका (एल्बम ) नाम दिया ।
  • कम्पनी शैली से प्रेरित होकर राजा रवि वर्मा महान चित्रकार उभरे
  • अबरक़ के पन्नो पर भी चित्र बने है ।
  • पटना कलम के चित्र कार्य अपनी तूलिका बनाने मे काफी परिश्रम करते थे वह गिलहरी  की पुंछ अथवा ऊंट ,सूअर ,हिरण आदि के बालो को काटकर उबालते थे फिर उसे कबूतर  चील के पंखो से बांधकर तूलिका बनाते थे ।
  • पटना शैली के चित्रकार स्वय रंग बनाते थे  सफ़ेद रंग काशगरी मिट्टी ओर सिप को जलाकर ,पीला रंग रामरज से ,लाल रंग लाख ,सिंदूर ,नीला रंग लाजवर्द पत्थर से कालिख से काला रंग तैयार करते थे ।
  • कम्पनी शैली मे अभ्रक व हाथी दाँत पर सूक्ष्म चित्रांकन किया जाता था ।
  • छोटे आकार के चित्रो का आकार 8*6 बड़े चित्रो का आकार 22*16 होता था ।
  • कम्पनी शैली के जंहागीर ईश्वरी प्रसाद को कहा जाता है ।
  • कम्पनी स्कूल मे जन -सामान्य के चित्र सर्वाधिक है ।
  • कम्पनी शैली पर मुगल शैली व यूरोपीय शैलीयो के यथार्थवादी का सम्मिलित रूप दिखाई देता है ।
  • कम्पनी शैली मे प्राय डेढ़ चश्म चेहरे बने हुए है ।
  • कम्पनी शैली के चित्रो मे धरातल मे अनुकृत पोत का प्रयोग किया गया है ।

 

कम्पनी शैली काल मे आए विदेशी कलाकार 

  • 1769 मे टिली कैटिल  प्रथम मद्रास ,कोलकाता , लखनऊ भ्रमण किया इसके बाद अवध चले गए , वंहा नवाबी के चित्र बनाए ।
  •  डेनियल चित्रकार 1784-1794 तक भारत मे रहे  भारत मे जलरंग का श्री गणेश किया ताजमहल का चित्रण भी  किया।
  •  थॉमस  डेनियल (चाचा )  विलियम डेनियल (भतीजा )  थे ।
  • अगस्तों शोफ्त  सात उल्लुओ के घर के नाम से मशहूर थे `1941  मे राजा शेर सिंह  लाहौर के दरबार मे आए थे ।
  • अगस्तों शोफ्त के चित्र – बहादुरशाह ,मालाबार पहाड़ी बंबई के  दृश्य ,लाहौर दरबार का चित्र अमृतसर नगर का चित्र बनाए थे

 

भारत मे विदेशी कला का आगमन 

  • कम्पनी शैली के साथ भारत मे 50 चित्रकार आए थे , जो तैल रंगो मे राजा व रहीस लोगो के बड़े -बड़े आकार के चित्र बनाते थे ।
  • इसमे भारतीय रूढ़िवादी परंपरा समाप्त हो गई थी ओर इसी कारण से भारतीय  चित्रकला का स्वर्णमय इतिहास अंधकार मे हो गया था ।
  •  पाश्चात्य चित्रकला से प्रभावित होकर अनेक भारतीय चित्रकारों ने पाश्चात्य कला दक्षता हासिल कर ली थी , पाश्चात्य शैली की अग्रणी चित्रकार राजा रवि वर्मा को कहा जाता है ।
  • भारतीय कला को आगे बढ़ाने ,कलाकारो को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से अविन्द्र्नाथ ठाकुर ने अपने बड़े  भाई गगेन्द्रनाथ ठाकुर के साथ मिलकर कलकत्ता मे 1907 मे इंडियन सोसाइटी ऑफ ओरियंटल आर्ट की स्थापना की ।
  • जिसके प्रथम संचालक लार्ड किचनर  थे । इसमे सदस्यो की संख्या 35 थी जिसमे ज्यादा अंगेज़ थे ।
  • 1908 मे इसकी पहली प्रदर्शिनी लगाई गई जिसमे नंदलाल बॉस ,शैलेंद्रनाथ डे ,के वेंकटप्पा ,अवनीन्द्रनाथ टैगोर , गगेन्द्रनाथ आदि चित्रकारो ने भाग लिया था ।
  • बंगाल मे राजा राममोहन राय के प्रयासो से शिक्षा  पद्धति लागू की साथ मे चित्रकला का भी बहुत विकास हुआ ।

 

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