मध्यकालीन कला, पाल शैली

मध्यकालीन कला, पाल शैली

मध्यकालीन कला 

  • भारतीय कला आदिम युग से प्रारम्भ हुई ओर हजारो वर्षो की लंबी यात्रा करने के बाद इन कला को विभिन्न कालो से गुजरना पड़ा । कलाकारो के धैर्य साधन ओर परिश्रम के कारण कलाप्रिय संरक्षको के उचित संरक्षण मे कला का विकास हुआ ।
  • मध्ययुगीन  काल परिवर्तन शैलियो विषयो मे परिवर्तन होते गए , मध्य युग मे उपजी कला  को मध्यकालीन कला कहा जाता है ।
  • मध्यकाल मे चित्रकला को जीवित रखने का श्रेय पाल ,जैन ,गुजरात ,अपभृंश शैलियो को माना जाता है । मध्य युग मे दो विश्व प्रसिद्ध रचनाए हुई जिनमे चित्रकला के विधि -विधानों पर विस्तार से बताया गया है ।
  • मध्यकालीन  ‘समरांगण सूत्रधार ग्रंथ (1005 -1054 ) राजा भो द्वारा रचित किया गया ।
  • 12 वीं शताब्दी मे रचित मानसोल्लास सोमेश्वर की रचना है । इन ग्रंथो से हमे उस वक्त की चित्रकला की समृद्धि का पता चलता है ।
  • इसी कड़ी मे आगे सोमदेव व क्षेमेन्द्र द्वारा 11 वीं शताब्दी मे लिखित कथासरितसागर मे उस वक्त की कला की जानकारी मिलती है बताया गया है की तत्कालीन समाज मे चित्रकला के प्रति गहरी अभिरुचि जाग्रत हो चुकी थी ।इस मे ज़्यादातर दृष्टांत (प्रामाणिक ) चित्रो का निर्माण किया गया है ।
  • इस प्रकार मध्यकालीन शिक्षा केन्द्रो नालंदा ,विकरमशिला विश्व विध्यालयों मे अधिकतर सचित्र पोथियाँ लिखी एवं चित्रित की गई ।
  • मध्यकालीन प्रमुख  केंद्र बंगाल , नेपाल ,बिहार ,तीन केन्द्र शैली  एक समान थी ।
  •  रायकृष्णदास के अनुसार मध्यकालीन शैली के प्रमुख रंग लाल ,पीला , नीला ,सफ़ेद  व काला उपयोग किया जाता था ।
  • इनके मिश्रण से अनेक रंगो का प्रयोग भी मध्यकाल मे होता था । जैसे गुलाबी ,हरा ,बैंगनी ,फाखताइ आदि पटरो पर बनफ़्ये गए चित्रो की रक्षा के लिए लाख का प्रयोग हुआ है ।

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पाल शैली 

  •  बंगाल मे पालवंश  राजवंश के प्रथम शासक गोपाल नामक व्यक्ति को बनाया गया ।पाल राजवश के प्रथम संस्थापक गोपाल पाल को कहा जाता है ।
  • गोपाल पाल के बाद मे उनके उत्तराधिकारी धर्मपाल शासक बने इनहोने अपने साम्राज्य को ओर  अधिक सुदृढ़ बनाया , ये विद्यानुरागी व कला सरक्षक  भी थे ।
  • इनहोने ही गंगा नदी के किनारे भागलपुर मे विक्रमशिला  विश्व विध्यालय बनवाया था ।
  • पाल शैली के संस्थापक धर्मपाल को कहा जाता है । पाल शैली का समय 9 वीं से 12 वीं0  शताब्दी था ।
  • गसके बाद धर्मपाल के पुत्र देवपाल शासक बने थे जिन्होने अपने साम्राज्य की सीमा का विस्तार किया था ।ओर वास्तु ,चित्रकला एवं  मूर्तिकला के महान उन्नायक थे ।
  • इन्होने सारनाथ ,गया ओर नालंदा आदि स्थानो पर मूर्तिया उत्कीर्ण करवाई ।
  • उनके बाद पाल वंश के महान सम्राट महिपाल हुए ओर इनके काल मे अनेक पाल पोथियों का चित्रण हुआ । महिपाल ने धर्मराजिका स्तूप व  चैत्य भी बनवाए थे ।
  • पाल शैली मे सर्वाधिक उत्कृष्ट कार्य महिपाल के समय हुआ था ।
  • महिपाल के पौत्र विग्रहपाल तृतीय शासक बने जो बौद्ध धर्म के अनुयायी थे ।
  • इनके समय का प्रसिद्ध चित्र बुध योग मुद्रा मे कमल पर आसीन 1082 ई0 का है ।
  • पाल शैली के अंतिम शासक विग्रहपाल तृतीय थे ।
  •  सन 1199 मे तुर्को ने नालंदा पर आक्रमण किया जिससे मध्यकालीन बौद्ध संस्कृति व चित्रकला को गहरा धक्का पहुंचा ।

पाल शैली के संस्थापक 

  1.  गोपाल
  2. धर्मपाल
  3. देवपाल
  4. महिपाल
  5. रामपाल

धर्मपाल

इसने विक्रमशिला महा विध्यालय बनवाया था भागलपुर मे गंगा नदी किनारे ओदानपुरी सोमपुरी विहार बनवाए थे

धर्मपाल ओर वेदपाल के समय  मे ज्यादा विकास हुआ था ।

वेदपाल

वेदपाल के समय मे स्थापत्य कला , चित्रकला ,मूर्तिकला का निर्माण हुआ था ।

महिपाल –

महिपाल शासक के समय मे सर्वाधिक पाल पोथियों का चित्रण हुआ था ।

रामपाल

रामपाल पाल शैली का अंतिम शासक था ।

 

नामकरण 

  • 16वीं शताब्दी  मे लामा तारनाथ ने लिखा है की 16 वीं सदी मे सो शैलिया थी

1 उत्तर शैली     2  पूर्वी शैली

  • पूर्वी शैली दो राजाओ के अंतर्गत थी । धर्मपाल व देवपाल के समय दो चित्रकार थे ,धीमान व वित्तपाल चित्रकारी कर रहे थे ।
  •  लामा तारनाथ जो एक तिब्बती इतिहासकार थे इन्होने बताया की 9 वीं शताब्दी मे पूर्वी भारत मे एक शैली का जन्म हुआ जो पूर्वी शैली कहलाई ,बाद मेस शैली का नाम पाल शैली पड़ा क्योंकि शैली का संबंध पाल शासको से था , इसीलिए इस शैली का नाम पाल शैली पड़ा ।
  • प्रसिद्ध कला समीक्षक हेलना रूबीसों नेपाल शैली को बिहार शैली नाम दिया । यह  शैली बिहार ,नेपाल ,बंगाल के आसा पास फैली होने के कारण इसे बिहार शैली कहा ।
  • पाल शैली मे लघु चित्र ताड्पत्र पर बनते थे   जो जातक कथाओ पर आधारित होते थे यह चित्र अधिकतर बंगला , नेपाल ,बिहार  मे बने ।
  •  ताडपत्रो का आकार 22 इंच लंबा  व 2.5 इंच मोटा होता है । सामान्य ताड्पत्रों का आकार 22-1/4 से  2-1/4 होता था ।
  •  ताड्पत्रों से बनाए गए पृष्ठो पर देवनागरी लिपि मे लेख लिखें जाते थे , इन पोथियों मे काली पृष्ठभूमि पर सफ़ेद रंग  से लिखाई की जाती थी ओर लिपिकार इन प्रष्ठो  के बीच मे वर्गाकार व आयतकार लगभग 2 इंच की जगह छोड़ देते थे उस जगह ज्पर महायान बौद्ध धर्म से सबन्धित देवी -देवताओ के चित्र बनाए जाते थे ।
  • पोथियों को ढकने के दोनों  ओर पटरे लगाए  जाते थे , जिन्हे दफतिया या काष्ट पट कहा जाता है ।
  •  पाल शैली के प्रमुख चित्रकार ” धीमान ओर उनके पुत्र वित्तपाल ” थे ।
  • पाल शैली मे ताडवृक्ष ,कदली वृक्ष  का ज्यादा चित्रण हुआ है ।

 

पाल शैली के चित्रित प्रमुख पोथियाँ (पुस्तक )

  1.  पंचशीखा
  2. साधनमाला
  3. गदाम्व्यु       – कुल्लू संग्रहालय मे है
  4.  अस्त्र -शस्त्र  प्रज्ञा पारमिता
  5. पिंगल मत्त
  6. महामयूरी   –   भारत कला भवन बनारस मे है ।
  7. बोधिचार्यवत

 

  • पाल शैली मे पोथी चित्रो का निर्माण हुआ । लघु चित्रो का निर्माण हुआ यह चित्र ताड्पत्र पर बने होते थे ।
  • धार्मिक चित्र होते थे केवल भगवान बुद्ध के चित्र का निर्माण हुआ ।
  •  चेहरे सवा चश्म  अधिक बने है कंही कही  एक चश्म चेहरे का निर्माण हुआ है । नाक तीखी लंबी ओर आंखे बड़ी -बड़ी  दिखाई गई है । इन चित्रो मे अजंता की झलक दिखाई देती है ।
  • कुछ विद्वान इस शैली को नाग शैली भी मानते है  जिसका उल्लेख लामा तारनाथ ने किया था ।
  •  यंहा चित्रो मे काले रंग से रेखाए खींची गई है जो किसी नुकीली वस्तु से खिंची प्रतीत होती है । चित्रो मे सर्वाधिक प्राथमिक रंगतों का प्रयोग हुआ है ।
  •  प्रकृति चित्रण मे कदली या नारियल पेड़ो का अंकन किया गया है , आकाश बादलो का अंकन नहीं किया गया है ।
  • केवल आकृतिया बनाई गई है ।

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