मण्डी शैली का इतिहास
मण्डी शैली का विकास तीन चरणो मे दिखाई देता है । पहले चरण के उदाहरण केशव सेन (1595-1637) ई0 राजा सिद्ध सेन (1604-1727ई0) , शमशेर सेन (1727-1781 ई0) तथा सुरमा सेन (1781-1788 ई0) के व्यक्ति चित्र है । सपाट सुर्ख रंग व भारी रेखाओ से ये चित्र सरलता से पहचाने जाते है । इन चित्रो मे स्थानीय वेषभूषा तथा वाधयंत्रों को बनाया गया है । इस समय के चित्रो पर लोककला का गहरा प्रभाव है ।
कुल्लू के समीप स्थित मण्डी राज्य मे सत्रहवी शताब्दी के चित्र प्राप्त हुये है । ‘जे .सी . फ्रेंच ‘ने अपनी पुस्तक ‘हिमालयन आर्ट ‘ मे मण्डी के राजा ‘सिद्ध सेन’ का चित्र प्रकाशित किया है । सिद्ध सेन (1686-1722 ई0 ) का चित्र बसोहली शैली का है जिसमे सिद्ध सेन को अधेड़वास्था मे भीमकाय शरीर वाला तीन परिचायिकों के साथ दिखाया है इस प्रकार मण्डी शैली मे बसोहली शैली का प्रभाव शीघ्र आ गया ।
विकास का दूसरा चरण 19वीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध रहा । राजा ईश्वरी सेन ने 1805 ई0 मे कैद से मुक्त होकर राज्य संभाला था । कांगड़ा शैली के चित्रो का रस मण्डी शैली मे प्रवाहित होने लगा । कांगड़ा के प्रसिद्ध चित्रकार सजनु ने 1808 ई0 मे कुल्लू मे आकार हमीर हठ पर आधारित इक्कीस चित्रो की श्रंखला बनाई तथा देवी के दस रूप चित्रित किए । 1846 ई0 तक गज लक्ष्मी ,कमलासना लक्ष्मी सहित अनेक देवियो का चित्रण हुआ ।
तीसरे चरण मे सिखो का प्रभाव बढ़ जाने से इस शैली का ह्रास होने लगा । संसार चंद के दरबार की कला तथा मण्डी शैली मे वेषभूषा का अंतर है । स्त्री -पुरुषो को कटोच पगड़ियो के स्थान पर मुगल पगड़िया पहनाई गई है । हमीर हठ मे कुछ फिरंगी वेषभूषा भी चित्रित है । यंहा के चित्रो के विषय कृष्ण चरित्र , रामकथा , दरबारी दृश्य तथा व्यक्ति चित्र रहे । चित्रकार फत्तू ने भी यंहा पर कुछ दिन काम किया है ।
यंहा का चित्रकार लोकजीवन के काफी निकट रहा है ।
लोककला के निकट होने के कारण यंहा के हर चित्रो की रेखाए भारी ,स्पष्ट एव प्रवहमान है । रंग विधान व रंगो के चयन का संबंध है , इनमे सपाट प्रष्टभूमि व सरल दृश्यो का अंकन एव प्राथमिक रंगो का चटकीला प्रयोग दर्शनीय है । एक चित्र मे यंहा का राजा सिद्ध सेन को सलाहकारो एव वादको के समूह के साथ चित्रित किया गया है । चित्र के रेखाकन मे भारीपन तथा प्रष्ठभूमि का हरा ,भगवा तथा भूरा रंग इस चित्र की लोक परंपरा क निकटता का परिचायक है ।
इसी प्रकार एक चित्र मे राजा ईश्वरी सेन को मेले की भीड़ मे अंकित किया गया है चित्र मे स्त्रियो का समूह काफी आकर्षक है । , हिंडोल ,हाथी ,लोकनृत्य ,देव नृत्य आदि मेले की बहुरंगी झांकी प्रस्तुत करते है चित्रो की रेखाए काफी प्रवाहपूर्ण तथा संवेदनशील है , जो चित्र पर कांगड़ा प्रभाव प्रकट करती है ।
विशिष्ट चित्रो मे गजलक्ष्मी ,काली ,महादेव ,कृष्णलीला,गोपी चीरहरण व नायक -नायिका भेद की चित्रावली काफी आकर्षक एव महत्वपूर्ण है इन चित्रो मे काफी गति व रंगो मे काफी आकर्षक है । जो परंपरागत लोकजीवन व संस्कृति को अपने मे समाहित किए हुए है बसोहली ,कांगड़ा एव गढ़वाल तत्वो के विविध रूपको को अपने मे आत्मसात किए हुए है ।
मण्डी शैली की के चित्रो की विषय वस्तु
कृष्ण लीला , गीत-गोविन्द ,भागवत पुराण ,स्थानीय लोक संस्कृति , लोक जीवन ,राजाओ के व्यक्ति चित्र एव दरबार के दृश्य ,दुर्गा एव विविध देवीया ,पुराण विषयक चित्र यंहा के चित्र का मुख्य विषय वस्तु है ।
मण्डी शैली के चित्रकार
- कपूरगिरी
- मुहम्मदी
- दौलत
मण्डी शैली के चित्रो की विशेषताए
रेखाओ मे प्रवाह ,अलंकरण मे बारीकी ,लगभग सभी रंगो का प्रयोग ,सोने ।चाँदी के रंगो का प्रयोग ,भगवा तथा हरा रंग का विशेष प्रयोग ,वस्त्र तथा अलकारो का सुदर अंकन ,चित्र भावपूर्ण ,तत्कालीन नागरिक जीवन का सुंदर चित्रण ,सादृश्य का उचित प्रयोग हुआ है ।
जालिम सिंह ने टरना के काली मंदिर की दीवारों पर भित्ति चित्रो का निर्माण करवाया ।राजा बलवीर सिंह के समय मण्डी शैली पर पूर्णत कंपनी शैली का प्रभाव था ।
राजा बलवीर सिंह कुर्सी पर बैठे हुए कंपनी शैली का चित्र जो संभवत प्रथम चित्र माना जाता है ।
सभी भारतीय शैलीयो मे पहाड़ी शैली की उप शैली मण्डी मे सर्वप्रथम त्रियायमी प्रभाव आया था ।
कांगड़ा का मूल निवासी सजनु कुल्लू से मण्डी 1808 मे आए थे
मण्डी कलम को निम्न भागो मे बांटा सकते है –
1. लोक शैली का प्रभाव (1804) ई0
इस काल के चित्रो मे मोटी किन्तु प्रवाहपूर्ण रेखाए , सपाट प्रष्ठभूमि ,प्राथमिक रंगो का चटकीला प्रयोग हुआ है आकृतिया ओर दृश्य साधारण है लोक शैली के उदाहरण मे राजा सिद्ध सेन के तीन व्यक्ति चित्र ओर राजा शमशेर सेन के काल का है ।
इसके बाद राजा सुरमासेन का काल आता है सुरमा सेन को एक चित्र मे हुक्का पीते हुए दिखाया गया है भगवा ओर हरा रंग मण्डी शैली की विशेषता है
2. पड़ोसी शैलिया का प्रभाव
कुल्लू से मण्डी सजनु नामक चित्रकार आया । सजनु ने मण्डी मे ”हमीर हठ ”लघु चित्रो क श्रंखला तैयार की थी । सजनु की पहाड़ी लोक जीवन का अच्छा ज्ञान था । मण्डी के चित्रो मे वंहा की वास्तु कला के नमूने परलक्षित होते है ।
3. सिख प्रभाव
मण्डी का चित्रकार मुहमद बख्श गुलेर गया वंहा के राजा जयसिंह के लिए चित्र बनाए । मुहम्मद बख्श ने मण्डी कलम के सुंदर चित्र बनाए ।
मण्डी शैली मे ब्रिटिश प्रभाव लघु-चित्र तक ही सीमित रहा । सन 1905 ई0 के भूकंम्प ने चित्रकला को समाप्त कर दिया । इस समय भवानी सेन राजा थे ।
सिख शैली के चित्रकार नैनसुख का पुत्र ,गोकुल ,छजू आदि ।सिख शैली का उत्कृष्ट चित्र गुरु गोविन्द सिंह घोड़े पर सवार ।
इंडियन पेंटिंग इन पंजाब हिल्स नामक पुस्तक मे w .c. आर्चर ने जम्मू के 4 चित्र प्रकाशित किए
इसमे चित्र पर टाकरी लिपि मे लेख लिखे हुए है ।
नैनसुख के दो चित्रो को बेसिल ग्रे ने अपनी पुस्तक ‘दी आर्ट इंडियन अँड पाकिस्तान ” मे प्रकाशित करवाए ।
सन 1846 ओर 1851 ई0 के मध्य ‘मियां भाग सिंह की हवेली ‘मे भित्तिचित्र बने , जिनके विषय मिया भाग सिंह स्वंय के है एव पौराणिक गाथाओ पर बने है
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