देवी प्रसाद राय चौधरी

देवी प्रसाद राय चौधरी

देवी प्रसाद राय चौधरी इनका जन्म  15 जून 1899 बंगाल मे रंगपुर जिले के ताजहाट नामक ग्राम मे एक जंमीदार परिवार मे हुआ था ।  इनकी मृत्यु 1975 मे हुई थी ।

1914 मे अवनींद्रनाथ ठाकुर के पास गए वंहा इन्होने बहुत मनोयोग पूर्वक कार्य सीखा । इसी समय इनकी भेंट एक इटालियन चित्रकार बोईस से हुई जिनसे श्री राय चौधरी ने पश्चिमी चित्रण तकनीकी का गंभीर अध्ययन किया ।

देवी प्रसाद चौधरी का विवाह डाली से हुआ था ।

अवनींद्रनाथ की सहमति से इंडियन सोसाइटी ऑफ ओरियंटल आर्ट मे शिक्षक के पद पर रखे गए।  ओर वंहा पश्चिमी तकनीक मे काम करते रहे । 1953 ई0 मे ये ललित कला अकादमी नई दिल्ली के प्रथम चेयरमेन (अध्यक्ष) चुने गए ओर 1955 ई0 मे जापान के टोक्यो नगर मे युनेस्को द्वारा आयोजित कला गोष्ठी के प्रेसिडेंट तथा डायरेक्टर भी रहे । इनमे सबसे महत्वपूर्ण कृति श्रम की विजय है । प्रसिद्ध कृति 1922 ई0 मे अंकित रवीन्द्रनाथ ठाकुर का व्यक्ति चित्र है । प्राचीन तथा परंपरागत विषयो के बजाय अपने समकालीन जीवन से प्रेरणा लेकर चित्रांकंन अधिक किया है । सेवा निवृत होने के पश्चात इन्होने दृढ़ तथा ओजपूर्ण रेखाओ तथा धब्बो ओर चौड़े तूलिका स्पर्शों मे स्याही एवं रंगो से अनेक सुंदर कृतियो का निर्माण आधार पर । इनके अन्य प्रसिद्ध चित्र है ।

1929 ई0 मे गवर्नमेट स्कूल ऑफ आर्ट ,मद्रास के प्रथम भारतीय प्राचार्य देवीप्रसाद राय चौधरी को नियुक्त किया गया ।

देवीप्रसाद राय चौधरी को डब्लिन कॉलेज ऑफ आर्ट विध्यालय मे अध्यक्ष पद पर नियुक्ति मिली थी ।

देवीप्रसाद राय चौधरी डब्लिन कॉलेज ऑफ आर्ट विध्यालय मे 28 वर्षो तक शिक्षण कार्य किए ।

देवीप्रसाद राय चौधरी द्वारा निर्मित मूर्ति  सड़क बनाने वाले p.o.p (प्लास्टर ऑफ पेरिस ) से बनी है ।

जब शीत ऋतु आती है मूर्ति का निर्माण देवीप्रसाद राय चौधरी ने किया था ।

देवीप्रसाद राय चौधरी चित्रकार ,मूर्तिकार ,वासुरी वादक , निशानेबाज मे सम्पन्न थे ।

देवीप्रसाद राय चौधरी का उच्च कोटी का चित्र मुसाफिर है  ।

देवीप्रसाद राय चौधरी ने पहाड़ी जीवन ओर मछुआरो से संबन्धित चित्रो का निर्माण सर्वाधिक किया ।

देवीप्रसाद राय चौधरी के चित्रो का माध्यम वॉश पेंटिंग ,पैनल पेंटिंग ,पोट्रेट पेंटिंग है ।

पाश्चात्य कला तैलरंग मे चित्रण इटालियन शिल्पी कलाकार बायस से सीखी थी ।

मद्रास कला विद्यालय प्रथम भारतीय प्राचार्य के रूप मे नियुक्त हुए ।

देवीप्रसाद राय चौधरी यथार्थवाद से संबन्धित थे ।

1954 मे देवीप्रसाद राय चौधरी युनेस्को द्वारा जापान के टोक्यो नगर मे एक गोष्ठी की अध्यक्षता किए थे।

1954 मे ललित कला अकादमी की स्थापना हुई ,जिसके संस्थापक अध्यक्ष देवी प्रसाद राय चौधरी को चुना गया ।

देवीप्रसाद राय चौधरी को भारत सरकार द्वारा 1958 ई0 को पदमभूषण पुरुस्कार से सम्मानित किया ।

राष्ट्रीय ललित कला अकादमी जिसकी स्थापना 5 अगस्त 1954 ई0 को नई दिल्ली के रवीन्द्र भवन मे हुई थी ,इसके प्रथम अध्यक्ष देवी प्रसाद राय चौधरी थे ।

हिरण्यमय राय चौधरी देवी प्रसाद राय चौधरी के दादा थे ।

मूर्तिकला मे प्रशिक्षण हिरण्यमय राय चौधरी से सीखा , उसके बाद इनका चित्रकला से ज्यादा मूर्तिकला मे रुझान हो गया ।

इनके मूर्तिशिल्प पर रौंदा ओर बोरदेले का प्रभाव पड़ा ।

देवीप्रसाद राय चौधरी  के कला गुरु अवनींद्रनाथ ठाकुर थे ।

दुखिया (1936 ई0 कांस्य संग्रह कुमार दीर्घा ) के मूर्तिकार देवीप्रसाद राय चौधरी है ।

देवीप्रसाद राय चौधरी के चित्रण के विषय निम्न अधिकांश मे महिला होते थे ।

 

देवीप्रसाद राय चौधरी चित्रकार से अधिक मूर्तिकार के रूप मे प्रसिद्ध हुए ।

देवीप्रसाद राय चौधरी द्वारा बनाए गए प्रमुख मूर्तिशिल्प

  1. शहीद स्मारक
  2. श्रम की विजय
  3. महात्मा गांधी
  4. सड़क बनाने वाले
  5. स्नान करती हुई नारी
  6. जब शीत ऋतु आती है
  7. त्रावणकोर मंदिर मे हरिजन प्रवेश की उद्घोषणा
  8. ध्वंस देवता
  9. लय
  10. अंतिम प्रहार
  11. भूख से पीड़ित

 

 

देवीप्रसाद राय चौधरी के प्रमुख चित्र

  1. नेपाली लड़की
  2. अंतिम प्रहार
  3. भूख से पीड़ित
  4. भूटिया औरत
  5. तिब्बत की बालिका
  6. मुसाफिर
  7. जीवन
  8. निर्वाण
  9. खतरनाक रास्ता
  10. कोतूहल
  11. पर्शि ब्राउन
  12. ओ0 सी0 गांगुली
  13. लेप्चा
  14. तूफान के बाद
  15. आरती
  16. स्नान का घाट
  17. दुर्गा पुजा यात्रा

 

देवीप्रसाद के अन्य प्रसिद्ध चित्र –

  1. हरा ओर सुवर्ण (टेम्परा )
  2. आँधी के पश्चात (जलरंग )
  3. निर्पाज (तैल रंग )
  4. पुल (पेस्टल )
  5. महल की गुड़िया (जलरंग )
  6. दुर्गा पुजा शोभा यात्रा (तैलरंग)
  7. अभिसारिका (जलरंग)

देवीप्रसाद राय चौधरी की कृतियो पर फ्रेंच प्रभाववादी मूर्तिकार अगस्त रौंदा का प्रभाव था ।

तैल रंग मे उत्कृष्ट चित्र

इन्होने जलरंग ,टेम्परा ,पेस्टल आदि माध्यमों मे काम किया । बंगाल शैली  के कलाकार

1958 मे भारत सरकार के द्वारा पदमभूषण उपाधि से सम्मानित किया गया ।

शहीद स्मारक – पटना सचिवालय के सामने 1956  मे कांस्य धातु मे बनाई गई ।शहीद स्मारक पटना मे स्थित है ।  जिसमे 7 वीर पुरुषो की कांस्य प्रतिमा लगी है । वर्ष 1942 मे असहयोग आंदोलन के दौरान पुराने सचिवालय भवन पर कांग्रेसी झण्डा लहराया था । इस शहीद स्मृति का निर्माण पटना मे देवीप्रसाद राय चौधरी ने किया था । इसमे यह दिखाया गया है कि एक  वीर पुरुष झण्डा ले जा रहा है तथा 6 अन्य ब्रिटिश पुलिस कि गोली लगने से नीचे गिर गए है ।

शहीद स्मृति का निर्माण भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान शहीद हुए  सात बहादुर युवाओ कि स्मृति मे पटना मे किया गया है ।

श्रम की विजय (ट्रंफ ऑफ लेबर )- चेन्नई मे समुन्द्र के किनारे मरीना  बीच पर 1959 मे कांस्य धातु से बनाई गई जंहा पर देश का प्रथम श्रमिक दिवस बनाया गया ।

श्रम की विजय देवी प्रसाद राय चौधरी द्वारा बनाया गया एक  सार्वजनिक मूर्तिकला संरचना है ,जो दर्शाती है – राज मिस्त्रियों का एक समूह जो पत्थर के एक टुकड़े को भरसक उठाने का प्रयास कर रहे है ।

इसी की एक ओर मूर्ति राष्ट्रीय आधुनिक संग्रहालय के सामने सरदार पटेल मार्ग पर स्थित है ।

दिल्ली के सरदार पटेल  मार्ग पर ‘’प्लास्टर कास्ट’ ओर कांस्य ‘’ मे ढले विशाल सार्वजनिक मूर्ति ‘स्वतन्त्रता स्मारक ‘ या दांडी मार्च या ग्यारह मूर्ति जो 29 मी0 लंबी सतह पर 4मी0 ऊंची ग्यारह आकृतियो के संयोजन से बनी है ये सब देवीप्रसाद राय चौधरी ने बनाई है ।

 

महत्वपूर्ण तथ्य

कलाकारो ने किन जगहो पर कला प्राचार्य पद पर रहकर बंगाल शैली को बढ़ावा दिया –

  1. नंदलाल बसु – शांतिनिकेतन कोलकाता
  2. समरेन्द्रनाथ गुप्त – इलाहाबाद
  3. मुकुल चन्द्र डे ,शारदा शरण उकील – दिल्ली
  4. शैलेन्द्रनाथ डे –जयपुर
  5. सुधीर रंजन खास्तगीर – लखनऊ
  6. क्षेमेन्द्रनाथ – लाहौर

 

देवीप्रसाद एक सफल चित्रकार के अतिरिक्त एक विख्यात मूर्तिकार भी थे । इन्होने महापुरुषों की अनेक प्लास्टर तथा कांस्य की प्रतिमाओ का निर्माण किया है । ऐनी बेसेंट ,लीड बीटर ,सर सी0पी0  रामास्वामी अय्यर ,सर सी0आर0 रेड्डी ,सर आर0के0 शनमुखम के अतिरिक्त अनेक गवर्नरों ,नेताओ ओर न्यायाधीशो की मानवाकार तथा आवक्ष प्रतिमाओ की इन्होने रचना की है । श्रम की विजय इनकी प्रसिद्ध कांस्य कृति है ।

 

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