मृणालिनी मुखर्जी
मृणालिनी मुखर्जी का जन्म 1949 ई0 मे मुंबई मे हुआ था
इनके पिता का नाम विनोद बिहारी मुखर्जी था ।
मृणालिनी मुखर्जी की माँ लीला मुखर्जी मूर्तिकार एक रूप मे प्रसिद्ध है ।
आधुनिक भारतीय मूर्तिकला के प्रमुख कलाकारो मे मृणालिनी मुखर्जी का महत्वपूर्ण स्थान है । जो एक प्रसिद्ध चित्रकार थे इन्होने सन 1970 मे कला महाविध्यालय बड़ोदरा से स्नातक की उपाधि प्राप्त की ।
सन 1970 से 1972 तक प्रो0 के0जी0 सुब्रमण्यम के निर्देशन मे म्यूरल डिजाइन मे पोस्ट डिप्लोमा प्राप्त किया इसी समय मे इन्होने प्राकृतिक रेशो को एक माध्यम के रूप मे प्रयोग करना प्रारम्भ किया।
1978 ई0 मे उन्हे ब्रिटेन से छात्रवृत्ति प्राप्त हुई सन 1994 -95 मे आधुनिक कला संग्रहालय ऑक्सफोर्ड द्वारा मूर्तिशिल्पों की प्रदर्शिनी हेतु आमंत्रित किया
सन 1986 मे इन्होने हौलैंड मे एक अंतराष्ट्रीय कार्यशाला मे भी भाग लिया इन्होने रेशो व कास्य धातु का उपयोग करते हुए कई मूर्तिशिल्पों का निर्माण किया ।
मृणालिनी मुखर्जी मूर्तिकार रूपांकर या भारत भवन सलाहकार थी ।
मृणालिनी मुखर्जी ने अपना स्टुडियो मुंबई मे बनाई थी ।
मृणालिनी मुखर्जी ने जुट की रस्सी , सुतली, डोरी आदि का प्रयोग कर गांठ दार धरातल मे त्रिआयामी प्रभाव देते हुए धातु के छल्लो का प्रयोग कर अपने मूर्तिशिल्प को एक सुनिश्चित आकार व अभिव्यक्ति प्रदान की है ।
इनकी कला से शैली आधुनिक ओर प्रयोगवादी है विषय वस्तु मुख्य रूप से प्रकृति से संबन्धित है इनके द्वारा निर्मित मूर्तिशिल्पों मे वनराजा ,पुरुष, वाटरफ़ौल , देवी ,वूमेन ऑन पीकॉक , पुष्प, पाम स्केप शृंखला आदि है ।
मृणालिनी मुखर्जी मूर्तिकार जूट की रस्सी, सुतली व डोरी का प्रयोग मूर्तियो मे किया करती थी ।
पाम स्केप मूर्तिशिल्प के माध्यम से मृणालिनी मुखर्जी ने प्रकृति सी कोमलता व सहजता को बहुत बारीकी के साथ कांस्य मे डालने मे सफलता प्राप्त की ।
मृणालिनी मुखर्जी वह पहली भारतीय कलाकार थी जिनके कार्यो को वर्ष 1986 ई0 मे सिडनी बिएनाले मे प्रदर्शित किया गया ।
इनके चित्रो का संग्रह किरण नाड़ार म्यूजियम दिल्ली मे है ।
इनकी पहचान जूट की रस्सिया बनाकर चित्रकारी करना था ।
वही मन राजा मूर्तिशिल्प मे वन राजा सिंह को खड़ी मुद्रा मे सीधे तने हुए दिखाया गया है ।
जिसके हाथ नीचे की ओर प्रतीत होते है ।
वनराजा की अभिव्यक्ति के लिए सिंहासन बनाया गया है जिस पर फाइबर (रेशो) गाँठे डालकर अलग –अलग पैटर्न या नमूने बनाए गए है वनराजा को बैंगनी रंग शेष शिल्प को हरे रंग के तानो के रेशे व गाँठे डालकर अलग- अलग पैटर्न या नमूने बनाए गए है ।
मृणालिनी मुखर्जी का चित्रण माध्यम सेरेमिक था ।
मृणालिनी मुखर्जी की लिखित पुस्तके –
लावा ब्रांज स्कल्पचर,
स्कल्पचर इन ब्रांज
कला के क्षेत्र मे इनके योगदान के लिए अनेक पुरुस्कार प्रदान किए गए है ।
1970 मे ऑल इंडिया फ़ाइन आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स सोसाइटी , नई दिल्ली की वार्षिक प्रदर्शिनी मे पुरुस्कार मिला ।
सन 1971 -78 तक मृणालिनी मुखर्जी को ब्रिटिश काउंसिल से मूर्तिकला मे कार्य करने के लिए वजीफा मिला ओर अपने वेस्ट सुरैया कॉलेज ऑफ आर्ट एंड डिजाइन , यू0के0 मे कार्य किया ।
1997 राष्ट्रीय प्रदर्शिनी ललित कला अकादमी , नई दिल्ली
1996 मे रूपांकर बिनाले , भारत भवन भोपाल से पुरुस्कृत ,
1994 -95 मे ऑक्सफोर्ड के म्यूजियम ऑफ मॉडर्न आर्ट मे अपने मूर्तिशिल्पों की प्रदर्शिनी करने के लिए आमंत्रित की गई । जिसे डेविड इलियट ने प्रायोजित किया था ।
मृणालिनी मुखर्जी का 65 वर्ष की उम्र मे 21 फरवरी 2015 मे दिल्ली मे इनका निधन हो गया ।
मृणालिनी मुखर्जी का प्रसिद्ध चित्र बंसी है ।
योगिनी चित्र भारत भवन भोपाल मे है ।
मृणालिनी मुखर्जी के चित्र –
- वाहन
- वनश्री
- वूमेन ऑन पीकॉक
- बंसी
- योगिनी
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