आइये आज चम्बा शैली के बारे मे जानते है जो पहाड़ी शैली की उप शैली है
चम्बा नगर वर्तमान मे हिमाचल प्रदेश मे स्थित है
चम्बा नगर की स्थापना साहिल वर्मन ने 920ई0 मे की थी चम्बा शैली का आरंभ राजा उदय सिंह (1690-1720) ई0 के शासन काल मे
चम्बा व बसोहली के राजाओ मे निरंतर युद्ध होते रहे , फिर चम्बा मे बसोहली शैली के चित्र काफी पहले बनने लगे थे । पृथ्वी सिंह (1641-1664ई0) ,छतर सिंह (1664-90ई0), उजागर सिंह (1720-35)ई0 आदि के व्यक्ति चित्र चम्बा के भूरी सिंह संग्रहालय मे तथा राष्ट्रीय संग्रहालय मे है । चम्बा नगर के निर्माण मे दलेल सिंह (1735-58)ई0 का महत्वपूर्ण योगदान रहा । वह कला का अनुरागी था । उत्तराधिकारी उम्मेद सिंह 1758-1764 ई 0 ने चम्बा के रंगमहल का निर्माण करवाया । नैनसुख का पुत्र निक्का चित्रकार गुलेर से यंहा आकार बस गया था । 1870 ई0 के आसपास सामान्य घरो की दीवारों पर कलात्मक चित्र बनने लगे । चम्बा रंगमहल के भित्ति चित्रो को वैज्ञानिक विधि से पतली परत उतारकर राष्ट्रिय संग्रहालय नई दिल्ली मे लगा दिया गया है ।
चम्बा शैली का नाम ”कला की घाटी ” है तथा चम्बा राज्य की स्थापना 10 वी शताब्दी मे हुई थी यंहा चंबवषीय शासको का शासक 1930 तक रहा था पहले चम्पापुरी रखा तथा बाद मे चम्बा के नाम से प्रसिद्ध हुई
साहिल वरमन द्वारा निर्मित -हरिहर नाथ मंदिर तथा लक्ष्मीनारायण मंदिर -ये मंदिर अति प्राचीन चम्बा शैली के है ।
चम्बा के प्राचीन अवशेष रंगमहल मे सुरक्शित है ।
रंगमहल का निर्माण चम्बा शासक उम्मेद सिंह ने कराया था अखंड चंडी के भीतर का निर्माण करवाया
उम्मेद सिंह ने चम्बा मे भूरी संग्रहालय का निर्माण करवाया था ।
चम्बा शैली के रुमाल विश्व प्रसिद्ध थे रुमाल का कार्य 1782से 1828 ई0 के बीच हुआ रुमालो मे कशीदाकारी कला दिखाई देती है । इसका प्रोग थाली के प्रसाद को ढकने के लिए किया जाता था ।
चंपावती मंदिर चम्बा मे स्थित है ।
चम्बा शैली के प्रमुख चित्रकार
- लहरु
- निक्का
- तारा सिंह
- गंगाराम ध्यान सिंह
- जमील
- वशीधर
- क्रष्ण
- दुर्गा
- मंगलू
चम्बा चित्र शैली का ऐतिहासिक कलावरत
सितंबर 1908 ई0 मे चम्बा के राजा भूरी सिंह 1904-1919 ई0 ने अपनी सम्पूर्ण कला निधि संग्रहालय की स्थापना हेतु समर्पण कर दी । डॉ गोएटज ,जगदीश मित्तल व खंडालवाला ने चम्बा चित्रो पर शौध किया ओर चम्बा के प्राचीन गौरव को पुनर्जीवन प्रदान करने वाले राजा पृथ्वी सिंह (1641-64ई0) थे । राजा राजसिंह कांगड़ा के पहाड़ बादशाह संसार चंद से लड़ते हुए मारे गए थे लेकिन राजसिंह व जीतसिंह दोनों ने चम्बा की चित्र सस्कृति मे प्राण -शक्ति संचारित की । रंग महल का सजाव ,श्रंगार व उसकी भित्तियो पर निर्मित चित्र चम्बा कलम की अमर धरोहर है । इसी वंशवली मे राजा चरत सिंह के पश्चात श्री सिंह , गोपाल सिंह 1870-73ई0 व श्याम सिंह 1873-1904 ई0 मे ही चम्बा कला यूरोप के यथार्थवाद की गिरफ्त मे आ गई ।
चम्बा शैली की विषय वस्तु
चम्बा चित्रशैली मे व्यक्ति चित्र तथा पौराणिक विषयो के चित्र अधिक बने । चम्बा के राजाओ के अतिरिक्त पड़ोसी राजाओ के व्यक्ति चित्र भी बने । कुछ राजाओ को हुक्का पीते हुए भी चित्रित किया गया है आख्यानो मे अनिरुद्ध-उषा कृष्ण-सुदामा ,कृष्ण -रुक्मणी आदि धार्मिक विषयो मे वाल्मीकि रामायण , दशवतर आदि के चित्र बहुत अधिक बने है । भित्ति चित्रो मे देवी देवताओ तथा नायिकाओ का चित्रण हुआ ।
चम्बा शैली की विशेषताए
विषय वस्तु – इन चित्रो का विषय कृष्ण लीला ,प्रेम सागर ,रामायण ,महाभारत ,दुर्गपाठ प्रमुख रहे है । पहाड़ी भित्ति चित्रो के समान रीतिकालीन विषयो को लेकर रंगमहल की दीवारों पर प्रेम की कहानी लिख दी गई । खग -मग वृक्ष ,नदी ,नीला आकाश ,तालाब ,फव्वारों ,चौपड़ का खेल सभी चित्रो का विषय रहे है ।
मानवाकृतिया – सोने चाँदी के सितारो व तारो से अलंकरत वेषभूषा पहने हुए आभूषणो की शोभा से युक्त रेशमी झीने दुपट्टा से झाँकती नायिकाओ की प्रणय लीलाओ को चित्रकारों न तूलिका के हल्के स्पर्श से निखारा है चम्बा पाशर्व चित्रो मे अधिकांशत राजा को हुक्का पीते हुए दिखाया है ।
रंग – मुलतानी मिट्टी ,गेरुही ,लाजवर्द ,हरिताल ,पेवड़ी ,सिंदूर , काजल ,सफेदा, नील ,महावर व स्वर्ण रंगो का चित्रो मे प्रयोग हुआ ।
हाशिये – हाशिये मे फूल -पत्ती व पक्षी आदि को सजावट दी गई है । कही -कही सम्पूर्ण चित्र भी बना दिये गए है
रेखाए – यंहा की रेखाओ मे लय व गति देखने को मिलती है ।
चम्बा की चित्रकला पर बसोहली ओर कांगड़ा का प्रभाव था ।
चम्बा शैली के चित्र मे बारीकी ओर कोमल रेखाओ का प्रयोग किया गया था ।
चम्बा शैली मे नीला रंग प्रमुख तथा लाल व पीले रंग का भी प्रयोग हुआ था ।
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