चित्रकला षडांग
शिल्प
शब्द प्राचीन भारतीय ग्रंथो मे व्यापकअर्थो मे प्रयुक्त किया गया है ।
आलेख्य के जिन 6 अंगो का उल्लेख वात्स्यायन के कामसूत्र की टीका मे यशोधर
पंडित ने किया उनको चित्र षडंग के नाम से प्रसिद्धी मिली । यशोधर पंडित ने
ग्यारहवि शताब्दी मे कामसूत्र की टीका जयमंगला नाम से की थी । इसका यह
श्लोक चित्र के षडंगो को शीर्षक प्रदान करता है ।
भारतीय चित्रकला के 6 अंग
1 रूप
2 प्रमाण
3 भाव
4 लावण्य
5 सादृश्य
6 वर्णिका भंग
रूपभेदा: प्रमाणानि भाव लावण्य योजनम
सादृश्य वर्णिका भंग इतिचित्र षडंग कम ||
चित्र
के 6 अंगो को कहकर यशोधर पंडित ने चित्र के अवयवो को स्पष्ट किया है
यशोधर के अनुसार कामसूत्र की टीका मे जिन 6 अंगो का वर्णन हुआ है उसके तीन
पक्ष है – पहला रूप चाक्षूष प्रभाव ,दूसरा भाव जिसका संबंध मन से है तथा
तीसरा शुद्ध तकनीक ज्ञान वर्णिका भंग ।
षडंग का संबंध चित्रकला से है
षडंग का सिधान्त कामसूत्र से लिया गया है ।
भारतीय शिल्प के षडंग 1921 मे अवनीन्द्र नाथ टैगोर ने लिखी है।
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1. रूप भेद
सोमेश्वर द्वारा रचित मांस्सोल्लास मे 5 प्रकार के रूप बताए है
1 विध्द
2 अविध्द
3 भाव
4 रस
5 धूमि
मार्कन्डेय मुनि ने विष्णुधर्म्मोत्तर पुराण मे 4 प्रकार के रूप बताए है ।
1 सत्य
2 वैणिक
3 नागर
4 मिश्रित
महाभारत के अनुसार 16 प्रकार के रूप बताए है ।
हम रूप को 3 प्रकार से देख सकते है ।
1 आंखो द्वारा
2 स्पर्श द्वारा
3 आत्मा के अनुभव द्वारा
2. प्रमाण
लंबाई, चौड़ाई, ऊंचाई का ज्ञान
प्रमाण 4 प्रकार के होते है
1 प्रत्यक्ष
2 अनुमान
3 उपमान
4 शब्द
विभिन्न
आकृतियो के अनुपात का सही -सही ज्ञान प्रमाण कहलाता है । प्रमाण के
अनुसार स्त्री व पुरुषो की लंबाई के भेद का ज्ञान बड़ा आवश्यक है पुरुष का
शरीर चेहरे की लंबाई का साढ़े 7 गुना होना चाहिए जबकि स्त्री का शरीर उसके
चेहरे के सात गुना होना चाहिए । मनुष्य व देवता के भेद को प्रमाण द्वारा ही
चित्रित किया जाता है । भारतीय कला विधान मे प्रमाण के आधार पर पाँच
प्रकार के रूपो का उल्लेख किया गया है जो इस प्रकार है ।
1 इकाई =1 ताल
1 ताल = 1 सिर या 12 अंगुल
सिर को चार भागो मे बांटा गया है
1 केश
2 ललाट
3 नासिक
4 होंठ
निम्नलिखित व्यक्तियों को निम्न ताल मे दिखाया गया है
वामन या कुमार – 5 ताल
साधारण आदमी – 8 ताल
औरत – 7.5 ताल
उत्तम आदमी – 9 ताल
क्रूर आदमी – 12 ताल
राक्षस – 16 ताल
भारतीय प्रमाण के अनुसार मानव शरीर 7.5 ताल होता है ।
3 . भाव
भाव के द्वारा भावनाओ की अभिव्यक्ति की जाती है ।
भाव के द्वारा रस की भी अभिव्यक्ति की जाती है
भरतमुनी के अनुसार भाव है
1 8 स्थायी भाव
2 33 संचारी भाव
3 8 सात्विक भाव
4. लावण्य
लावण्य के द्वारा बाह्य सौंदर्य की अभिव्यक्ति की जाती है ।
लावण्य
चित्र के भावो को दीप्तिमान बना देता है । श्री एस0 एन0 दास के अनुसार
-”आकारो मे संगीत से सौन्दर्य ओर आंतरिक अभिव्यक्ति सेलावण्य उत्पन्न होता
है । ” अतः लावण्य ,चित्र सौन्दर्य का प्रभावी अंग है ।
5. सादृश्य
सादृश्यता – समानता को प्रकट करता है
सादृश्यता
वास्तविक रूप चित्रण का एक महत्वपूर्ण अंग है । अवनीन्द्र नाथ क अनुसार ,
” किसी रूप के भाव को किसी दूसरे रूप की सहायतासे प्रकट करना सादृश्यता का
कार्य है। ”
भारतीय
कलाकारो ने मानव अंगो का सादृश्य चित्रण प्रकृति के अनेक उपदानो से किया
है जैसे – खंजन जैसे नेत्र , बिम्ब फल जैसे होंठ ,नीम की पत्तियों जैसे
भोंहे ओर हाथो की अंगुलियाँ सेम की फली के समान आदि इस प्रकार भारतीय कला
का सादृश्य कैमरे की यथार्थ प्रतिकृति के समान न होकर गुणो तथा भावो पर ही
आधारित है ।
6. वर्णिका भंग
रंगो
का प्रभाव ओर मिश्रण ,उनके प्रयोग की विधियो ओर तूलिका ज्ञान वर्णिका भंग
के अंतर्गत आता है । प्रत्येक चित्र मे भावो के अनुकूल रंगो का प्रयोग
चित्र को प्रभावी बनाता है । विभिन्न रंगो के प्रभावों का ज्ञान होना
कलाकार के लिए बहुत आवश्यक होता है ओर भावो के अनुकूल रंग योजना से ही
चित्र प्रभावी बनता है । इस प्रकार चित्रण मे वर्णिका भंग का अपना महत्व है
।
वर्णिका का अर्थ है
वर्णिका – विभिन रंगो का
भंग का अर्थ है
भंग -मिश्रण
वर्णिका भंग विभिन्न रंगो का मिश्रण
वर्णिका भंग – भावो के अनुकूल रंग योजना से चित्र का निर्माण करना वर्णिका भंग कहलाता है ।
मुख्य ग्रंथ के अनुसार षडंग
चित्रसूत्र –
मार्कन्डेय मुनि द्वारा लिखित विष्णुधर्मोत्तर पुराण के तीसरे खंड के भाग
मे नौ अध्याय मे से 40 तक चित्रकला का विवरण दिया गया है ओर इसमेड बताया
गया है की कैसे चित्रकला की उत्पत्ति हुई तथा नारायण के पास आए सुर स्ंदरि
का अभिमान खत्म करने के लिए नारायण ने आम के रस से एक रूपमती का निर्माण
किया ओर अपसराए लज्जित होकर वापस लौट गई ओर उस चित्र का नाम या उस रूपमती
का नाम उर्वशी उस वक्त चित्र शास्त्रो के लक्षण से सम्पन्न चित्रसूत्र की
रचना की गई थी इस ग्रंथ मे शरीर के 5 भेद किए गए है ।
1 चित्रसूत्र मे रंगो के 5 भेद बताए गए है
1 लाल
2 नीला
3 काला
4 सफ़ेद
चित्रसूत्र मे 9 रसो का वर्णन किया गया है ।
श्रंगार , हास्य , करुण ,वीर, रौद्र ,भयानक , वीभत्स , अद्भुत , शांत
शांत रस को अभिनव गुप्त के द्वारा जोड़ा गया है ।
चित्रलक्षण –
इसकी रचना भयजित /नग्नजीत ने की थी ।
सृष्टि का प्रथम चित्रकार नग्नजीत ओ कहा जाता है इसके सिर्फ तीन ही अध्याय है ।
समरांगण सूत्रधार –
इसकी रचना राजा भोज ने की थी ।
राजा
भोज द्वारा रचित यह ग्रंथ 84 अध्यायों मे है तथा 7 भागो मे विभाजित है ।
इस ग्रथ के 7 वें भाग मे चित्रकला से संबन्धित 6 अध्याय है ।
अंतराल को भूमिबंधन कहा गया है ।
मानसोल्लास –
सोमेश्वर द्वारा रचित इस ग्रंथ मे तीन भाग है जिसमे प्रथम अध्याय मे चित्रकला के बारे मे जानकारी दी है ।
कामसूत्र
वात्स्यायन द्वारा लिखित कामसूत्र मे 64 कलाओ का विवरण है। जिसमे रूपभेदा प्रमाणानि भाव लावण्य योजनम व सादृश्य वर्णिका भंग ।
11वीं शताब्दी मे जयपुर के निवासी यशोधर पंडित ने कामसूत्र की जयमंगला टीका की थी ।
चित्रकला के षडंग की व्याख्या की
कामसूत्र मे वर्णित उपरोक्त श्लोक मे आलेख्य (अर्थात चित्रकर्म )के 6 अंग बताए है ।
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que 1 . विष्णुधर्मोत्तर पुराण किससे संबन्धित है ?
ans . चित्रकला
que . 2. षडंग सिद्धांत किस ग्रंथ मे है ?
ans . कामसूत्र
que 3. जयमंगला मे चित्रकला के कितने भेद बताए गए है ?
ans . 6
que 4. भारतीय चित्रकला के 6 अंगो की व्याख्या किस प्रसिद्ध ग्रंथ मे है ?
ans . जयमंगला