ढूँढार शैली

आइये आज हम राजस्थानी की शैली ढूँढार शैली के बारे मे जानेंगे जो कछवाहा वंश से संबन्धित है

ढूँढार शैली

ढूँढार शैली की उपशैली 

  1.  जयपुर
  2. अलवर
  3. उनियारा
  4. शेखावटी

 ढूंढ नाम के राक्षस के कारण इसका नाम ढूँढार पड़ा ।

जयपुर शैली 

  • जयपुर शैली की ओर नाम से पुकारा है जैसे आमेर शैली , अम्बा शैली , कछवाहा शैली
  •  जयपुर  को भारत का पेरिस कहा जाता है
  •  pink city (गुलाबी नगर ) जयपुर शैली को कहते है यंहा पर ज्यादा गुलाबी रंग का प्रयोग हुआ है ।
  •  blue city (नीला नगर )  मारवाड़ को कहा जाता है ।
  •  जयपुर की स्थापना  सवाई जय सिंह द्वितीय (18 नवम्बर 1727 )को हुई थी ।
  • जयपुर शहर का वास्तुकार – विध्याधर  भट्टाचार्य है ।
  • कछवाहा राजवंशो ने अपनी राजधानी आमेर को बनाई थी
  •  सबसे पहला जयपुर का चित्र यशोधर  ये चित्र  मानसिंह के समय मे बना था ।
  •  प्रिय विषय – बिहारी सतसई , इसके अलावा यशोधर चरित्र रागमाला ,रामायण ,महाभारत ,भगवत गीता , गीत गोविन्द चित्रो का भी अंकन हुआ है ।
  •  रंग- प्राथमिक रंग ,खनिज रंग ,फ्रेस्को बुनो तथा टेम्परा विधि मे चित्रण हुआ है ।
  • जयपुर शैली के अन्य केंद्र -पुष्कर ,जैसलमर ,जालौर आदि
  • मीनाकारी ,ब्लू पोटरी के लिए  प्रसिद्ध है ।
  • हवामहल का निर्माण सवाई प्रताप सिंह ने कराया ,तथा वास्तुकार  लालचन्द है ।
  •  चरमोत्कर्ष काल -सवाई राजा प्रताप सिंह का समय
  • विकास -1700-1900 ई0 के मध्य रहा ।
  • इस शैली पर यूरोपीय भित्ति का चित्रण का भी प्रभाव पड़ा

 जयपुर शैली  के चित्रकार 

  •  साहिबराम
  • बिहारी लाल
  • शिवकुमार
  • लाल
  • मोहम्मद शाह
  •  कृपाल सिंह शेखावत

जयपुर शैली के चित्र 

  •  चित्र – गोवर्धन धारी (सिटी पैलेस संग्रहालय जयपुर )
  • रस मण्डल (भित्ति चित्रण )
  • चित्रकूट मे भरत मिलाप  (टेम्परा माध्यम ) राष्ट्रीय संग्रहालय नई दिल्ली मे स्थित है ।

जयपुर शैली के महत्वपूर्ण तथ्य 

  •  आदम कद व्यक्ति चित्र बने है इन्हे साहिबराम चित्रकार बनाता था ।
  • जयपुर मे आमेर की छतरी ,वैराट की छतरी , रैनवाल की छतरी मे भित्ति चित्रण मिलता है ।
  •  सवाई जय सिंह द्वितीय ने वेदशाला ,चंद्रमंहल ,जय निवास  ,तालकटोरा तथा शिशोधिया रानी का महल बनवाया था ।
  • ईश्वरी सिंह स्वंय एक तांत्रिक थे ।इन्होने इसर लाट ,सिटी पैलेस बनवाया था ये कागज पर फूलो व बेल बूटो की जालियाँ काटा करते थे ।
  • सवाई माधो सिंह प्रथम मे मोती व मणियो को चिपकाकर मणिकुट्टीम चित्रण को बढ़ावा दिया ।
  • सवाई प्रताप सिंह के दरबार मे 50 से अधिक कलाकार कारी करते थे ये स्वय बृजनिधि नाम से कविताए किया करते थे  इन्होने हवामहल ओर प्रीतमहल का निर्माण कराया था ।
  • सवाई रामसिंह द्वितीय ने 1857 ई0 मे महाराजा स्कूल ऑफ आर्ट को ‘मदरसा -ए-हुनरी ‘के नाम से स्थापित कराया था । कालान्तर मे इसे जयपुर स्कूल ऑफ आर्टस ,महाराजा स्कूल ऑफ आर्ट एंड क्राफ्ट से भी जानते है ।
  •  जयपुर शैली मे कृष्ण लीलाओ से संबंधित अनेक चित्रो का निर्माण मोहम्मद नामक चितेरे ने किया ।
  • जयपुर शैली मे रंगो की अपेक्षा रेखा का अधिक महत्व है । जयपुर शैली मे 1785 -90 के मध्य एक रागमाला चित्रित है जो 36 रागनियों पर आधारित है । इन चित्रो को जीवन ,नौवाला ओर शिवदास नामक कलाकारो ने मिलकर बनाया था ।
  • सवाई माधो सिंह के काल मे चित्रकार यूरोपीय पद्धति को पूर्णतया अपना चुके थे ।
  • इस समय मे चित्रित दश महाविधा का जवाहर से सर्वप्रमुख  है ।
  • जयपुर शैली पर सबसे अधिक प्रभाव मुगल शैली का पड़ा ।

जयपुर कला संरक्षण 

  •  सर्वप्रथम इस युग की शुरुआत सवाई जयसिंह से होती है  इनके काल मे बने रेखाचित्र प्राप्त होते  है
  • इन्होने वैज्ञानिक तरीके से जयपुर नगर को बसाकर अनेकों वेदशालाओ का निर्माण करवाया
  • इन्होने  26 कारखानो का निर्माण करवाया जिनमे सूरत खाना भी शामिल है ।
  • इनके काल मे 2 चित्रकार कार्य करते थे ।
  • साहिबराम ओर मोहम्मद शाह।

 

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अलवर शैली 

  •  अलवर शैली की स्थापना महाराजा प्रताप सिंह ने की थी ।
  • अलवर शैली के जन्मदाता -महाराजा प्रताप सिंह थे
  •  यह शैली 1775 ई0 मे जयपुर से अलग हुई ।
  • चरमोत्कर्ष काल – विनय सिंह या बन्ने सिंह के काल मे 19 वीं शती मे हुआ ।
  • जयपुर से 2 चित्रकार राजा प्रताप सिंह के समय अलवर आते है ,डालुराम , शिवकुमार
  •  शिवराम वापस चला जाता है ।

अलवर शैली के चित्रकार 

  1.  डालुराम
  2. मूलचंद
  3. बलदेव
  4. गुलाम अली
  5. सालगा
  6. शिवकुमार
  7. नानकराम
  8. सालिगराम
  9. नेपालिया
  10. जमुनादास
  11. बकशाराम
  12. छोटेलाल
  13. नेफरी वादन (चित्र ) प्रसिद्ध चित्र है अलवर का नृतकी समूह

अलवर शैली की विशेषताए 

  • परदाज़ का प्रयोग किया गया है ।
  • गुलिस्ता ,बदरे मनीर तथा कुरान आदि का चित्रण आदि है ।
  • सम्पूर्ण अलवर शैली मुख्यता भित्ति  चित्रण के लिए प्रसिद्ध

विषय 

  • कृष्ण लीला ,राग रागिनी, बारहमासा ,रामायण ,गीतगोविंद
  •  अलवर शैली पेपर मेशी  केलिए प्रसिद्ध था ।
  • हाथीदांत की पटरियो पर चित्रण होता था । इसका चित्रण करने के लिए मूलचंद प्रसिद्ध था
  • नारी आकृति मेवाड़ की तरह नाटी  बनाई गई है ।

 राजा बख्तावर सिंह 

  • बलदेव तथा शालिगराम नामक चित्रकार राजा बख्तावर सिंह के दरबार मे थे ।
  • राजा बख्तावर सिंह चन्द्रमुखी व बख्तेश नाम से काव्य रचना करते थे ।
  • दानलीला राजा बख्तावर सिंह का प्रमुख काव्य रचना ग्रंथ है ।
  • राजा बलवंत ने दुर्गा सप्तशती ओर चंडीपाठ के आधार पर चित्र बनवाए ।

राजा विनय सिंह

  • बलदेव नामक चित्रकार विनय सिंह ने गुलिस्ता पोथी का चित्रण अपने सरक्षण मे कराया था ।
  •  इस पुस्तक को तैयार करने मे 1 लाख रु0 व्यय हुआ था ।
  • विनय सिंह ने ही मुगल चित्रकारों को संरक्षण दिया था ।
  •  विनय सिंह के काल मे ही महाभारत का सबसे बड़ा scroll बना जो 90 मी0 लंबा था ।
  • विनय सिंह के समय मे दीवान जी की हवेली मे सुंदर भित्ति चित्र बने ।
  • इनके दरबार मे आगा मिर्जा ,गुलाम अली जैसे प्रसिद्ध सुलेखक भी थे ।
  • राजमहल के शीशमहल मे राधा कृष्ण व शिव पार्वती वाले चित्र विनय सिंह के समय बने ।
  • इन चित्रो पर कम्पनी शैली का प्रभाव दिखाई पड़ने लगता है ।
  • शीशमहल के भित्ति चित्रण डालुराम ने बनाए थे ।
  • डालुराम भित्ति चित्रण के लिए प्रसिद्ध था ।
  •  मूलचंद हाथी दाँत की पटरियो पर चित्रण के लिए प्रसिद्ध था ।
  • राजा शिवदान सिंह हिन्दी व फारसी भाषा के विद्वान थे । इनके समय मे मंगलसेन नानकराम व बुद्धराम जैसे कलाकार थे ।

 उनियारा शैली 

  •  उनियारा शैली मे राजा सरदार सिंह बहुत ही कला प्रेमी राजा हुआ था ।
  • कुँवर संग्राम सिंह ने अपने निजी संग्रहालय मे उनियारा के अनेक लघु चित्रो को संयोजित किया है।

 उनियारा शैली के चित्रकार 

  1. मीरबख्स
  2. रामलखन
  3. भीमकाशी

इस शैली मे छोटी व पेनी मुछ दर्शाई गई है तथा गोल नासिका बनाई गई है ।

उनियारा शैली के मुख्य चित्र 

  1.  राम दरबार
  2. हनुमान   मीरबख्स कलाकार ने बनाया
  3. रामसीता

  शेखावटी शैली 

शेखावटी को हवेलियो की चित्रकला कहा जाता है । यंहा पर भित्ति चित्रण प्रमुख रूप से किया जाता है ।

यंहा का सर्वप्रमुख भित्ति चित्र कृष्ण की 8 गोपिया हाथियो के रूप मे बना है ।

 

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