आइये आज हम राजस्थानी की शैली ढूँढार शैली के बारे मे जानेंगे जो कछवाहा वंश से संबन्धित है
ढूँढार शैली
ढूँढार शैली की उपशैली
- जयपुर
- अलवर
- उनियारा
- शेखावटी
ढूंढ नाम के राक्षस के कारण इसका नाम ढूँढार पड़ा ।
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जयपुर शैली
- जयपुर शैली की ओर नाम से पुकारा है जैसे आमेर शैली , अम्बा शैली , कछवाहा शैली
- जयपुर को भारत का पेरिस कहा जाता है
- pink city (गुलाबी नगर ) जयपुर शैली को कहते है यंहा पर ज्यादा गुलाबी रंग का प्रयोग हुआ है ।
- blue city (नीला नगर ) मारवाड़ को कहा जाता है ।
- जयपुर की स्थापना सवाई जय सिंह द्वितीय (18 नवम्बर 1727 )को हुई थी ।
- जयपुर शहर का वास्तुकार – विध्याधर भट्टाचार्य है ।
- कछवाहा राजवंशो ने अपनी राजधानी आमेर को बनाई थी
- सबसे पहला जयपुर का चित्र यशोधर ये चित्र मानसिंह के समय मे बना था ।
- प्रिय विषय – बिहारी सतसई , इसके अलावा यशोधर चरित्र रागमाला ,रामायण ,महाभारत ,भगवत गीता , गीत गोविन्द चित्रो का भी अंकन हुआ है ।
- रंग- प्राथमिक रंग ,खनिज रंग ,फ्रेस्को बुनो तथा टेम्परा विधि मे चित्रण हुआ है ।
- जयपुर शैली के अन्य केंद्र -पुष्कर ,जैसलमर ,जालौर आदि
- मीनाकारी ,ब्लू पोटरी के लिए प्रसिद्ध है ।
- हवामहल का निर्माण सवाई प्रताप सिंह ने कराया ,तथा वास्तुकार लालचन्द है ।
- चरमोत्कर्ष काल -सवाई राजा प्रताप सिंह का समय
- विकास -1700-1900 ई0 के मध्य रहा ।
- इस शैली पर यूरोपीय भित्ति का चित्रण का भी प्रभाव पड़ा
जयपुर शैली के चित्रकार
- साहिबराम
- बिहारी लाल
- शिवकुमार
- लाल
- मोहम्मद शाह
- कृपाल सिंह शेखावत
जयपुर शैली के चित्र
- चित्र – गोवर्धन धारी (सिटी पैलेस संग्रहालय जयपुर )
- रस मण्डल (भित्ति चित्रण )
- चित्रकूट मे भरत मिलाप (टेम्परा माध्यम ) राष्ट्रीय संग्रहालय नई दिल्ली मे स्थित है ।
जयपुर शैली के महत्वपूर्ण तथ्य
- आदम कद व्यक्ति चित्र बने है इन्हे साहिबराम चित्रकार बनाता था ।
- जयपुर मे आमेर की छतरी ,वैराट की छतरी , रैनवाल की छतरी मे भित्ति चित्रण मिलता है ।
- सवाई जय सिंह द्वितीय ने वेदशाला ,चंद्रमंहल ,जय निवास ,तालकटोरा तथा शिशोधिया रानी का महल बनवाया था ।
- ईश्वरी सिंह स्वंय एक तांत्रिक थे ।इन्होने इसर लाट ,सिटी पैलेस बनवाया था ये कागज पर फूलो व बेल बूटो की जालियाँ काटा करते थे ।
- सवाई माधो सिंह प्रथम मे मोती व मणियो को चिपकाकर मणिकुट्टीम चित्रण को बढ़ावा दिया ।
- सवाई प्रताप सिंह के दरबार मे 50 से अधिक कलाकार कारी करते थे ये स्वय बृजनिधि नाम से कविताए किया करते थे इन्होने हवामहल ओर प्रीतमहल का निर्माण कराया था ।
- सवाई रामसिंह द्वितीय ने 1857 ई0 मे महाराजा स्कूल ऑफ आर्ट को ‘मदरसा -ए-हुनरी ‘के नाम से स्थापित कराया था । कालान्तर मे इसे जयपुर स्कूल ऑफ आर्टस ,महाराजा स्कूल ऑफ आर्ट एंड क्राफ्ट से भी जानते है ।
- जयपुर शैली मे कृष्ण लीलाओ से संबंधित अनेक चित्रो का निर्माण मोहम्मद नामक चितेरे ने किया ।
- जयपुर शैली मे रंगो की अपेक्षा रेखा का अधिक महत्व है । जयपुर शैली मे 1785 -90 के मध्य एक रागमाला चित्रित है जो 36 रागनियों पर आधारित है । इन चित्रो को जीवन ,नौवाला ओर शिवदास नामक कलाकारो ने मिलकर बनाया था ।
- सवाई माधो सिंह के काल मे चित्रकार यूरोपीय पद्धति को पूर्णतया अपना चुके थे ।
- इस समय मे चित्रित दश महाविधा का जवाहर से सर्वप्रमुख है ।
- जयपुर शैली पर सबसे अधिक प्रभाव मुगल शैली का पड़ा ।
जयपुर कला संरक्षण
- सर्वप्रथम इस युग की शुरुआत सवाई जयसिंह से होती है इनके काल मे बने रेखाचित्र प्राप्त होते है
- इन्होने वैज्ञानिक तरीके से जयपुर नगर को बसाकर अनेकों वेदशालाओ का निर्माण करवाया
- इन्होने 26 कारखानो का निर्माण करवाया जिनमे सूरत खाना भी शामिल है ।
- इनके काल मे 2 चित्रकार कार्य करते थे ।
- साहिबराम ओर मोहम्मद शाह।
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- राजस्थानी शैली
- मेवाड़ शैली
- मारवाड़ शैली
अलवर शैली
- अलवर शैली की स्थापना महाराजा प्रताप सिंह ने की थी ।
- अलवर शैली के जन्मदाता -महाराजा प्रताप सिंह थे
- यह शैली 1775 ई0 मे जयपुर से अलग हुई ।
- चरमोत्कर्ष काल – विनय सिंह या बन्ने सिंह के काल मे 19 वीं शती मे हुआ ।
- जयपुर से 2 चित्रकार राजा प्रताप सिंह के समय अलवर आते है ,डालुराम , शिवकुमार
- शिवराम वापस चला जाता है ।
अलवर शैली के चित्रकार
- डालुराम
- मूलचंद
- बलदेव
- गुलाम अली
- सालगा
- शिवकुमार
- नानकराम
- सालिगराम
- नेपालिया
- जमुनादास
- बकशाराम
- छोटेलाल
- नेफरी वादन (चित्र ) प्रसिद्ध चित्र है अलवर का नृतकी समूह
अलवर शैली की विशेषताए
- परदाज़ का प्रयोग किया गया है ।
- गुलिस्ता ,बदरे मनीर तथा कुरान आदि का चित्रण आदि है ।
- सम्पूर्ण अलवर शैली मुख्यता भित्ति चित्रण के लिए प्रसिद्ध
विषय
- कृष्ण लीला ,राग रागिनी, बारहमासा ,रामायण ,गीतगोविंद
- अलवर शैली पेपर मेशी केलिए प्रसिद्ध था ।
- हाथीदांत की पटरियो पर चित्रण होता था । इसका चित्रण करने के लिए मूलचंद प्रसिद्ध था
- नारी आकृति मेवाड़ की तरह नाटी बनाई गई है ।
राजा बख्तावर सिंह
- बलदेव तथा शालिगराम नामक चित्रकार राजा बख्तावर सिंह के दरबार मे थे ।
- राजा बख्तावर सिंह चन्द्रमुखी व बख्तेश नाम से काव्य रचना करते थे ।
- दानलीला राजा बख्तावर सिंह का प्रमुख काव्य रचना ग्रंथ है ।
- राजा बलवंत ने दुर्गा सप्तशती ओर चंडीपाठ के आधार पर चित्र बनवाए ।
राजा विनय सिंह
- बलदेव नामक चित्रकार विनय सिंह ने गुलिस्ता पोथी का चित्रण अपने सरक्षण मे कराया था ।
- इस पुस्तक को तैयार करने मे 1 लाख रु0 व्यय हुआ था ।
- विनय सिंह ने ही मुगल चित्रकारों को संरक्षण दिया था ।
- विनय सिंह के काल मे ही महाभारत का सबसे बड़ा scroll बना जो 90 मी0 लंबा था ।
- विनय सिंह के समय मे दीवान जी की हवेली मे सुंदर भित्ति चित्र बने ।
- इनके दरबार मे आगा मिर्जा ,गुलाम अली जैसे प्रसिद्ध सुलेखक भी थे ।
- राजमहल के शीशमहल मे राधा कृष्ण व शिव पार्वती वाले चित्र विनय सिंह के समय बने ।
- इन चित्रो पर कम्पनी शैली का प्रभाव दिखाई पड़ने लगता है ।
- शीशमहल के भित्ति चित्रण डालुराम ने बनाए थे ।
- डालुराम भित्ति चित्रण के लिए प्रसिद्ध था ।
- मूलचंद हाथी दाँत की पटरियो पर चित्रण के लिए प्रसिद्ध था ।
- राजा शिवदान सिंह हिन्दी व फारसी भाषा के विद्वान थे । इनके समय मे मंगलसेन नानकराम व बुद्धराम जैसे कलाकार थे ।
उनियारा शैली
- उनियारा शैली मे राजा सरदार सिंह बहुत ही कला प्रेमी राजा हुआ था ।
- कुँवर संग्राम सिंह ने अपने निजी संग्रहालय मे उनियारा के अनेक लघु चित्रो को संयोजित किया है।
उनियारा शैली के चित्रकार
- मीरबख्स
- रामलखन
- भीमकाशी
इस शैली मे छोटी व पेनी मुछ दर्शाई गई है तथा गोल नासिका बनाई गई है ।
उनियारा शैली के मुख्य चित्र
- राम दरबार
- हनुमान मीरबख्स कलाकार ने बनाया
- रामसीता
शेखावटी शैली
शेखावटी को हवेलियो की चित्रकला कहा जाता है । यंहा पर भित्ति चित्रण प्रमुख रूप से किया जाता है ।
यंहा का सर्वप्रमुख भित्ति चित्र कृष्ण की 8 गोपिया हाथियो के रूप मे बना है ।
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