आइए आज हम पहाड़ी चित्रकला शैली के बारे मे विस्तार पूर्वक जानेगे
पहाड़ी चित्रकला शैली
पहाड़ी वादियो मे पनपी चित्र परमपरा पहाड़ी कलम के नाम से प्रसिद्ध है । यह शैली 17वीं शताब्दी व 18वीं शताब्दी मे प्रसिद्ध हुई। इस शैली का पहला प्रधान केंद्र बसोली रहा । यही से यह थोड़ी थोड़ी विविधताओ को लिए हुये अन्य क्षेत्र मानकोट ,कुल्लू , मंडी , सुकेत , विलासपुर , नालागढ़ ,चम्बा ,गुलेर ,ओर कांगड़ा तथा गढ़वाल आदि मे फैली । 17 वीं शती मे औरंगजेब की कट्टरता तथा उपेक्षा के परिणाम स्वरूप मुगल दरबार के चित्रकार आश्रय की खोज मे यंहा -वंहा बिखर गए । इन चित्रकारों ने राजाश्रय मे स्थानीय शैलियो के साथ जिन शैलियो को विकसित किया उनको सम्मिलित रूप से पहाड़ी चित्रशैली कहा जाता है । प्रारम्भ मे पहाड़ी शैली को जम्मूकलम कहा जाता था । कुछ विद्वान इसे हिमाचल ,जम्मू कश्मीर उत्तराखंड को पहाड़ी शैली या कला , स्कूल कहते है
भारतीय चित्रकला परंपरा मे पहाड़ी चित्रकला भी अपनी रसमय ,सुरम्य , भावनात्मक प्रस्तुति के लिए महत्वपूर्ण स्थान रखती है । पहाड़ी कला का जन्म लोककला के रूप मे हुआ ।
पहाड़ी चित्रकला की उत्पत्ति राजस्थानी लोककला तथा मुगल शैली से हुई । राजस्थानी को हिन्दू शैली ओर मुगल शैली को ईरानी शैली भी कहते है मुगल व पहाड़ी चित्रकला ने मिलकर एक भिन्न आयाम वाली पहाड़ी चित्रशैली को जन्म दिया ।
पहाड़ी शैली का काल 1700 -1900 ईस्वी था
- पहाड़ी शैली की सबसे प्राचीन शैली बसोली है
इस शैली का एक रूप बसोहली ,दूसरा गुलेर तथा तीसरा कांगड़ा नाम से भी जाना जाता है
पहाड़ी शैली की सर्वप्रथम खोज 1910 मे मेटकौफ ने की थी ।
सर्वप्रथम 1916 ई0 मे आनन्द कुमार स्वामी ने पहाड़ी चित्रकला की दो भागो मे बांटा
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आनन्द कुमार के अनुसार –
- पहाड़ी चित्रकला 2. दक्षिणी चित्रकला
पहाड़ी चित्रकला को कांगड़ा कलम कहा गया ।
दक्षिणी चित्रकला को जम्मू कलम कहा गया ।
पहाड़ी चित्रशैली को राजपूत शासको ने संरक्षण दिया था ।
सबसे गहन अध्यन्न आनन्द कुमार स्वामी ने किया था । पहाड़ी चित्रशैली पर सर्वाधिक पुस्तके B. N. गोस्वामी ने लिखी
- B.N. गोस्वामी ने पहाड़ी चित्रकला के संबंध मे कहा है की यह चित्रकला मुगल दरबार से भागे कलाकारो के बल पर नहीं बल्कि गुलेरवासी चितेरासेऊके वंशजो के आधार पर फली बढ़ी ।
पहाड़ी शैली पर लिखी गयी कुछ पुस्तके जो अलग अलग विद्वानो ने लिखी ।
राजपूत पेंटिंग (1916) मे आनन्द कुमार स्वामी ने लिखी थी ।
master peices of राजपूत पेंटिंग 1926 मे ओ . सी गांगुली ने लिखी थी ।
हिमालयन आर्ट 1931 मे जे . सी . फ्रेंच ने लिखी थी ।
इंडियन पेंटिंग इन द` पंजाब हिल्स 1952 मे कांगड़ा पेंटिंग w. c. आर्चर ने लिखी थी ।
दा पहाड़ी miniature पेंटिंग 1958 मे कार्ल खंडालवाला ने लिखी थी ।
डॉक्टर एम . एस. रंधावा की पुस्तके जो पहाड़ी शैली पर लिखी गयी है ।
1 कांगड़ा valley पेंटिंग 1954
2 krishna legend in pahari painting 1956
3 basoli painting 1958
पहाड़ी शैली की उप शैलिया
1 बसोली शैली
2 गुलेर शैली
3 कांगड़ा शैली
4 कुल्लू शैली
5 चम्बा शैली
6 गढ़वाल शैली
7 मंडी शैली
8 जम्मू शैली
9 पुच्छ शैली
10 सिक्ख शैली
11 विलासपुर शैली
12 कश्मीरी शैली
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पहाड़ी शैलिया ओर उनके उत्कर्ष काल
- बसोली शैली के चर्मौत्कर्ष काल के शासक राजा कृपालपाल थे ।
- गुलेर शैली के चरमोउत्कर्ष काला के शासक गोवर्धन चंद थे ।
- चम्बा शैली के राजा उम्मेद सिंह थे ।
- कुल्लू शैली के राजा प्रीतम सिंह थे ।
- कांगड़ा शैली के राजा संसारचंद थे ।
- जम्मू शैली के राजा रणजीत सिंह थे ।
ये सभी शासक पहाड़ी शैली के अलग अलग शैली के चर्मौत्कर्ष काल के राजा थे
सम्पूर्ण पहाड़ी शैली की विशेषताये
- नारियो का सर्वश्रेष्ठ अंकन होने के कारण इस शैली को नारी सुषमा कहा गया है ।
- नारी सुषमा पहाड़ी शैली को कहा गया है ।
- पहाड़ी शैली मे हमे मानव देह व भावो के सौंदर्य को अभीष्ट प्रतिमान मानकर चित्रण हुआ है
- पहाड़ी शैली की सबसे प्राचीन शैली बसोली है
- पहाड़ी शैली की सबसे अच्छी शैली कांगड़ा शैली है ।
- नायिका भेद का सर्वाधिक अंकन पहाड़ी शैली मे हुआ है इसके अंकन मे कांगड़ा शैली अग्रणी है गुलेर शैली मे भी मुख्य विशेषता नायिका भेद ही है ।
- पहाड़ी शैली मे ‘बारहमासा‘ का अंकन सूक्ष्म दृष्टि से किया गया है ।
- बारह महीने (बारहमासा ) का अंकन समस्त पहाड़ी शैलीयो मे किया गया है । कांगड़ा शैली इसमे अग्रणी थी । जनहा पर 16 राग , 32 रागनियों का अंकन हुआ है ।
- देवी देवताओ के सबसे सुंदर ओर अधिक चित्रण पहाड़ी शैली मे हुआ है ।
- कृष्ण लीला से संबन्धित चित्र पहाड़ी शैली मे सबसे अधिक बने है ।
- एक चश्म चेहरे बने है ।
- खनिज रंगो का अधिक प्रयोग हुआ है ।
- धरातल – (सियालकोट) कागज का सर्वाधिक प्रयोग होता है।
- सियालकोट कागज – ये हल्के भूरे रंग का कागज होता है ।
- विकास 18वीं -19वीं शताब्दी के बीच हुआ ।
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धन्यवाद