आइये जानते है पहाड़ी शैली की उप शैली बसोहली के बारे मे
बसोहली चित्रकला कलम प्राचीनतम है ओर उसका अपना अलग स्थान है । चम्बा ,लखनपुर ,जसरोटा व नूरपुर रियासतो से घिरी बसोहली रावी की घाटी मे स्थित अब एक छोटी सी नगरी है । 74 गांवो का मिला जुला एक छोटा सा राज्य था । अब जम्मू के जसरोटा जिले की एक तहसील मात्र है
बसोहली शैली की खोज 1929 ई0 मे अजीत घोष ने की थी ।
बसोहली शैली का चरमोत्कर्ष काल राजा कृपाल पाल था ।
बसोहली शैली का एतिहासिक कलाव्रत
कुल्लू के राजकुमार भोगपाल ने राणा बिल्लो को हराकर इस राज्य की नीव 765 मे रखी थी । 1630 ई0 मे राजधानी बलौर से बदलकर 19 किमी0 दूर रावी के दाहिने किनारे के समीप बसोहली कर दी गई । 1590 ई0 मे अकबर ने साक्षात्कार किया इसके पश्चात राजा संग्रामपाल (1635-1673 ई0 ) मे दारा शिकोह की मित्रता के कारण कलारुचि अधिक प्रबल हो गई ।
राजा किरणपाल (1678-1694ई0 ) के समय मे रस मंजरी की सचित्र प्रति तैयार की गई । इसमे नायक -नायिका के विभिन्न रूपो का सविस्तार वर्णन है ।इस सचित्र प्रति के कुछ प्रष्ठ अमेरिका के बोस्टन संग्रहालय मे तथा कुछ लंदन के विक्टोरिया व अल्बर्ट संग्रहालय मे है यंहा सभी चित्र लाल हाशिये से आव्रत है । तेज चमकदार रंगो का प्रयोग हुआ है
राजा मेद्नीपाल (1725-36)ई0 व जितपाल (1736-57)ई0 ने इस चित्र परंपरा को अधिक पुष्ट करने मे अपना सहयोग दिया । रंगो की प्रखरता कोमल हो गई । इसी शैली मे बने रागमाला चित्र उपलब्ध होते है जिसमे विक्टोरिया व अल्बर्ट संग्रहालय का विनोद राग एक अच्छा उदाहरण है । मेद्नीपाल ने रंग महल व शीशमहल का निर्माण करवाया । जिनकी भित्तिया नाईक भेद आदि विषयो से संबन्धित चित्र बने है ।
राजा अम्रत पाल (1757-79)ई0 के म्रडु स्वभाव ने इस ‘कलम ‘की आभा को ओर विकसित किया । बसोहली मे श्रंगार के अन्य चित्रो को प्रमुखता मिली । नैनसुख , जम्मू के राजा बलवंत सिंह के यंहा चित्रण कार्य करता था । नैनसुख का पुत्र रांझा भी ,बसोहली दरबार मे भूपेन्द्र पाल के समय तक कार्य करता रहा । बाद मे राजा भूपेन्द्र पाल (1813-34)ई0 व राजा कल्याण पाल (1845-57)ई0 भी इसको संभाल न सके । राजा कल्याण पाल के साथ ही बसोहली का इतिहास भी समाप्त हो जाता है ।
बसोहली चित्रो की खोज
बसोहली का असतोतव भी वर्षो तक अज्ञात रहा । इनकी खोज से पूर्व ये चित्र जिनमे नीले -पीले व लाल रंगो का प्रयोग है । अम्रतसर के चित्र बाजार मे तिब्बती या नेपाली चित्रिकाओ के नाम से जाने जाते थे । प्रसिद्ध कलान्वेषक डॉ आनंद कुमार के द्वारा किए गए वर्गिकरण के आधार पर बसोहली चित्रो को उस समय जम्मू कलम ‘ का ही रूप माना जाता था ओर कला ससार की 1992 ई0 की ‘रूपम ‘ पत्रिका द्वारा इसके सजे धजे रूप की बानगी प्रस्तूत की । इस प्रकार बसोहली चित्रकला प्रकाश मे आई
बसोहली शैली के चित्रकार
- देविदास
- महेन्द्रपाल
- मानकु
बसोहली शैली की विषयवस्तु
बसोहली शैली के चित्रो मे धार्मिक एव पौराणिक विषय का अंकन बहुलता से हुआ । श्री मद भागवत , रामायण ,गीत गोविंद तथा केशव दास व बिहारी की कविताओ पर आधारित चित्र बने । श्रंगार विषयक चित्र , नायक नायिका भेद पर आधारित चित्रो के साथ व्यक्ति चित्र बने ।
बसोहली शैली की विशेषताए
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