मेवाड़ शैली

मेवाड़ शैली

मेवाड़ शैली  राजस्थानी शैली की एक शैली है

मेवाड़ शैली की स्थापना  बापा रावल ने 728 ई0 मे कि थी ।

मेवाड़  राज्य  की स्थापना   बापा रावल ने 728  ई0 मे की थी ।

मेवाड़ शैली के अन्य नाम भी थे  जैसे – मेदपाट 

मेदपाट – मेव जाति की अधिकता के कारण मेवाड़ शैली को  मेद्पाट  कहा जाता था । इसके अलावा इसे  उदसर  भी कहा जाता था

उदसर – भीलों का मुख्य क्षेत्र होने के कारण इसे उदसर  भी कहा जाता था ।

चित्रकला का विकास महाराणा कुम्भा के समय से आरंभ हुआ  इसलिए महाराणा  कुम्भा को राजस्थानी चित्रकला का जनक कहा जाता है । महाराणा  कुम्भा  को स्थापत्य कला , संगीत कला, साहित्य कला मे विशेष रुचि थी

महाराणा कुम्भा के शासन मे मंडन नाम के एक शिल्पी थे  इनहोने काफी  ग्रंथ लिखे ।

1 देवतमूरति  प्रकरण ये मूर्तिकला  से संबन्धित है ।

2  राजवल्ल्भ   मंडन ये संगीत कला से संबन्धित है ।

3 प्रसाद मंडन ये स्थापत्य कला से संबन्धित है ।

4 रूपमंडन  ये चित्रकला से संबन्धित है ।

मेवाड़ इतिहास  का स्वर्णकाल  महाराणा कुम्भा को कहा जाता है ।

महाराणा कुम्भा ने संगीतराज  को उद से ग्रंथ  लिखा  इसमे नाट्यशालाओ  का उल्लेख मिलता है ।

महारणा  कुम्भा ने चित्तौड्गढ़  विजय स्तम्भ बनवाया ।

अमरा सिंह एक ऐसा शासक था जिसने सर्वप्रथम  मुगल अधीनता स्वीकार की थी ।

महाराणा संग्राम सिंह के समय से मेवाड़ी  चित्रो पर मुगल प्रभाव दिखाई पड़ने लगा ।

महाराणा कुम्भा के पश्चात राणा सांगा गद्दी पर बैठा । राणा सांगा के  पुत्र  भोजरज का विवाह मीराबाई से हुआ । जो वैष्णो भक्त थी ।

जिसका प्रभाव राजस्थानी संस्कृति तथा कला दोनों  पर पड़ा

वाद शैली का मुख्य केंद्र – उदयपुर था ।

विशुद्ध  भारतीय शैली

 

मेवाड़ शैली का चरमोत्कर्ष काल – 17वीं से 18वीं शती  था ।

पाटन होना शुरू हुआ –  अंतिम 18 वीं  शुरुआती 19वीं शती  मे ।

महारणा  कुम्भा के काल  मे भीखम द्वारा  चित्रित  रसिक काष्टक  के 6 चित्र  उपलब्ध है जिनहे हम मेवाड़ शैली के प्रारम्भिक  नमूने  के तौर  पर मान सकते है ।

मेवाड़ शैली का प्राचीनतम चित्रित ग्रंथ श्रावकप्रतिक्रमणसुतचूर्णी  1260   गुहिल्ल तेज सिंह  के काल मे लिखी गई इसके चित्रकार कमलचन्द्र  द्वारा  चित्रित हुई  आहड़ मे चित्रित हुआ ।

दूसरा ग्रंथ -1418 मे  कल्पसूत्र  चित्रित सोमेश्वर   ग्राम मे चित्रित हुआ  ये मेवाड़ का द्वितीय  नमूना  माना जाता है ।

कुम्भा द्वारा निर्मित दुर्गो मे सर्वश्रेष्ठ दुर्ग कुंभलगढ़ है

1423 मे सुपासनाचरियम महाराणा  मोकल  के काल मे दिलवाड़ा मे चित्रित हुआ । हीराननन्द ने इसे चित्रित किया । 

बाद  मे 1423 मे सुपासनाचरियम  ओर गीत गोविंद  आदि चित्रित हुए ।

मेवाड़  शैली का सबसे सुंदर चित्रण  चौरपंचशीखा (विल्हण ) तथा पालम भागवत हुआ । 

चावंड मे 1605 मे निसारदीन द्वारा  चित्रित रागमाला  महाराणा अमर सिंह  के समय मे चित्रित हुई ।

महाराणा  जगत सिंह प्रथम  का काल मेवाड़ शैली  चित्रकला का स्वर्णकाल कहा जाता है

सर्वाधिक  मुगल शैली का प्रभाव राणा संग्राम सिंह के शासन काल मे पड़ा ।

महाराणा उदय सिंह – 

इनके काल मे बने चित्रो मे भागवत पुराण के चित्रो का अवतरण किया 1540 मे मेवाड़ के चित्रकार नानाराम ने ।

यह कृति माणिक संग्रहलाय  अमेरिका मे सुरक्षित है ।

महाराणा प्रताप –

मुगलो से युद्ध मे व्यस्त थे चावंड को राजधानी बनाई ।

इनके  काल मे मुगल  शैली प्रभावित एक  सचित्र ग्रंथ ढोलामारू 1592 मे चित्रित किया गया

यह  वर्तमान मे  राष्ट्रिय संग्रहालय नई दिल्ली मे संग्रहीत है ।

राणा अमरसिंह प्रथम –

इनके समय रागमला के चित्र चावंड मे निर्मित हुए । इन चित्रो को निसारदीन ने 1605 मे चित्रित किया ।

इनका शासनकाल  मेवाड़ शैली का  स्वर्ण युग  माना जाता है ।

राणा कर्ण सिंह –

इनके शासनकाल मे मर्दाना महल व जनाना महल का निर्माण हुआ ।

राणा जगत सिंह प्रथम –

साहित्य , स्थापत्य कला एवं संस्कृति के महान  उन्नायक थे ।

इन्होने जगदीश मंदिर का निर्माण करवाया ओर उदयपुर महल को पूर्ण करवाया ।

जगत सिंह के काल मे वल्लभ संप्रदाय के प्रसार के कारण श्री कृष्ण के जीवन से संबन्धित चित्र अधीक बने ।

इनके काल मे रागमाला 1628 ई चित्रित  राष्ट्रीय संग्रहालय नई दिल्ली मे सुरक्षित है

साहबदीन  ने चित्रित किया

 

1630 की गीत गोविंद  साहबदीन  ने चित्रित की

1630 मे रसिक प्रिया – साहबदीन ने चित्रित की  इसके 41 चित्र प्राप्त है इसमे रासलीला सबसे महत्वपूर्ण  चित्र है । इसके 21 पृष्ट बीकानेर संग्रहालय मे रखे गए है ।

1648 मे  भागवत पुराण का चित्रण साहबदीन करते है इसको 4 हिस्सो मे बांटी हुई है  129 कुल  चित्र  234 पृष्ठ बने हुए है इनके चित्र पुना संग्रहालय मे है ।

1650  मे फिर से रागमाला का चित्रण साहबदीन ने किया  जो राष्ट्रिय संग्रहालय नई दिल्ली  मे है ।

1649-50  की रामायण को मनोहर ने चित्रित की सबसे महत्वपूर्ण कृति है आर्स रामायण 1651 मे चित्रित की पहली  प्रिंस ऑफ वेल्स म्यूजियम मुम्बई मे संग्रहीत है ।

दूसरी प्रति सरस्वती भंडार उदयपुर मे स्थित है ।

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राज सिंह –

  राज सिंह के संबंध पहले मुगलो से रहे थे बाद मे औरंगजेब की कट्टर नीति के कारण मुगलो के विरुद्ध हो गए ।

ओर इन्होने मुगलो से युद्ध  श्रीनाथ  की मूर्ति की वजह से किया था ।

मुगलो से छिनकर ये मूर्ति सिंहाड़ नामक स्थान पर स्थापित कारवाई ।

1655 मे साहबदीन द्वारा चित्रित शूकर क्षेत्र महात्म्य राज सिंह  के शासनकाल का उत्कृष्ट चित्र ये उदयपुर  के सरस्वती भण्डार मे सुरक्षित है ।

जगत सिंह एवं राज सिंह दोनों के शासनकाल की मेवाड़ शैली का स्वर्णकाल माना जाता है ।

जय सिंह –

जय सिंह का शासनकाल  लघुचित्र संख्या  की दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है ।

अमर सिंह द्वितया –

  इनका काल स्थापत्य कला एवं चित्रकला की दृष्टि से स्थापत्य कला का परिवर्तन काल माना जाता है ।

इनके शासनकाल मे बने शिव प्रसन्न , अमर -विलास महल मुगल शैली मे बने जिनहे आजकल बॉडी महल माना जाता है ।

महाराणा  अमरा सिंह काल मे चित्रित  रसिक प्रिया  के 46 लघु चित्र राजकीय संग्रहालय उदयपुर मे स्थित है ।

 महाराणा  हमीर सिंह – 

इनके काल मे बड़े पन्नो पर चित्र  बनने  की परंपरा  शुरू हो गई थी ।

शिकार एवं त्योहार पर चित्र  अधिक बनाए गए ।

महाराणा भीम सिंह –

 महाराणा भीम सिंह के काल को मेवाड़ शैली की अंतिम चरण का महत्वपूर्ण काल माना जाता है ।

इन्होने  अनेक महलो  के भित्ति चित्रो  को चित्रित करवाया ।

जैसे मर्दाना महल , बापना की हवेली ,एकलिंग मंदिर ओर कुंभलगढ़ , नाथद्वार मे भी बने भित्ति  चित्र प्रमुख है ।

भीम सिंह के काल मे बना एक महत्वपूर्ण एल्बम जिसमे मेवाड़ के राजाओ ओर मीरा का चित्र यह  चित्र  भकता द्वारा चित्रित है ।

वर्तमान मे यह एल्बम राजकीय संग्रहालय  उदयपुर  मे सुरक्षित है

भीम सिंह  के काल का महत्वपूर्ण चित्र जुलूस जो साहबदीन द्वारा 1802 मे चित्रित किया गया है ।

प्रमुख चित्रकार  साहबदीन व मनोहर थे , साहबदीन  के चित्र ग्रंथ रागमाला , गीत – गोविंद , रसिक प्रिया तथा भागवत पुराण है

 मेवाड़ शैली के प्रमुख चित्रकार

1 साहबदीन 2  निसारदीन  3  मनोहर  4 नानाराम

1 साहबदीन – को शाहबादी भी कहा जाता है जो जगत सिंह  राजसिंह के दरबारी चित्रकार थे ।

2 निसारदीन – ने अमर सिंह के काल मे चित्रण किया 1605  मे रागमाला गोपी कृष्ण कनौदिया  संग्रहालय कलकत्ता  मे संग्रहीत है ।

मेवाड़ शैली के प्रमुख चित्र –

कृष्ण  दावानल ग्रस्ते  हुए

कृष्ण  गोवर्धन / गोवर्धन धारी / गिरि गोवर्धन पर्वत उठाए हुए

भीम सिंह का जुलूस – साहबदीन का चित्र है  ।

बसंत रागिनी

कृष्ण राधा की प्रतीक्षा करते हुए ।

श्री राग की रागनि  गुमारू आदि ।

दर्पण मे मुख देखते हुए ।

मित्रो का संरक्षण

मुरली मनोहर कृष्ण

मुग्धा नायिका – साहबदीन राष्ट्रिय संग्रहालय नई दिल्ली मे है ।

हिंडोला राग

योवन की अंगड़ाई – (भित्ति चित्र उदयपुर )

ढोलामारू  ग्रंथ 

ढोलामारू  ग्रंथ रावल हरिराज के काल मे 1550-60 के बीच लिखा गया कवि कलोल ने लिखा था जो की डिंगल पिंगल भाषा मे लिख गया । ढोलामारू का सबसे पहले चित्रण 1592 मे मेवाड़ मे महाराणा प्रताप के काल मे चित्रण हुआ ।

अरवधिक ढोलामारू के चित्र – मारवाड़ (जोधपुर ) 1880मे राष्ट्रीय संग्रहालय  नई दिल्ली मे  स्थित है ।

 मेवाड़ शैली  की प्रमुख विशेषताये –

भित्ति चित्र परंपरा का विशेष महत्व रंग संयोजन की विशेष प्रणाली । मुख्य व्यक्ति अथवा घटना का चित्र ,सजीवता ओर प्रभाव उत्पन्न  करने के लिए भवनो का चित्रण ,पोथी ग्रंथो का चित्रण आदि ।

इस शैली मे लाल  पीले रंग की  प्रधानता है ।

हाशिये लाल , काही पर पीले भी है

भवनो को प्राय सफ़ेद रंग से चित्रित किया गया है ।

खिदकीदार पगड़ियाँ थी ।

मेवाड़ शैली के चित्रो मे प्रमुख  कदंब के वृक्ष  को चित्रित किया गया  है ।

वेषभूषा – सिर पर पगड़ी , कमर मे पटका , कानो मे मोती , घेरदार जामा

पुरुष आकृति – लंबी मुछे , बड़ी आंखे , छोटा कपोल व कद , गठीला शरीर ।

स्त्री आकृति – लहंगा व पारदर्शी ओढनी , छोटा कद , दोहरी चिबुक ,ठुड्डी पर तिल ,मछली जैसी आंखे , सरल भावयुक्त चेहरा ।

प्रमुख चित्र –रागमाला , बारहमासा ,कृष्ण लीला , नायक -नायिका आदि ।

मेवाड़ शैली के महत्वपूर्ण तथ्य –

मेवाड़ शैली मे बड़े चित्र बनने की शुरुआत राणा हमीर सिंह के काल से होती है ।

मेवाड़ शैली का मुख्य केंद्र उदयपुर था ।

पी0 एन0 चोयल मेवाड़ शैली को गुर्जर शैली भी कहा है ।

मेवाड़ शैली की मुख्य उत्पत्ति  को राजस्थानी लोक कला से होती है ।

 नाथद्वार शैली  (उपशैली )-

श्री नाथ जी की मूर्ति की स्थापना 10 फरवरी 1672 मे महाराजा राज सिंह की समय मे शिहाथ गाँव मे हुई थी

श्री नाथ जी की मूर्ति स्थापित होने पर इस गाँव का  नाम नाथद्वार पड  जाता है ।

इसे वल्लभ चित्र शैली के नाम से भ जाना जाता है ।

नाथद्वार शैली को पिछवई  के नाम से भी जाना जाता है ।

यंहा श्री नाथ (कृष्ण ) के चित्र बड़े आकार के कपड़े के पर्दे पर बनाए जाते है

पिछवई पट चित्रण के प्रसिद्ध है  पिछवई मूर्ति के पीछे लगा कपड़ा पिछवई कहलाता है  ।

नाथद्वार शैली के प्रमुख चित्रकार –

1 नारायण

2 चतुर्भुज

3 हिरालाल

4 उदयराम

5 तुलसीराम

6 घासीराम

7 चम्पालाल

8 कमला  व इलायची (महिला चित्रकार )

यंहा पर 24  उत्सव का अंकन 56 भोगो का अंकन मिलता है ।

 

देवगढ़ शैली (उपशैली) –

 देवगढ़ शैली के प्रमुख चित्रकार –

देवगढ़ शैली को प्रकाश मे लाने का श्रेय श्रीधर अंधारे को जाता है ।

देवगढ़ शैली के प्रमुख चित्रकार बगता व कंवला है ।

देवगढ़ की स्थापना 1680 मे मेवाड़ के महाराजा जय सिंह के काल मे रावल द्वारिका दास चुडावत

1 बगता

2 कंवला

3 चौखा

4 बैजनाथ

5 हरचन्द्र

6 नंगा

7 नाथद्वार

 

देवगढ़ शैली के प्रमुख चित्र

कुँवर  अनूप सिंह द्वार सूअर का शिकार 1769 ई0  (बगता )

शिकार के पश्चात गोंठ   (बगता )

रति क्रीडा  (चौखा )

गोधूलि बेला ( चौखा )

शिकारी कुत्ते  1806 ई0  (चौखा )

सूर्य पूजा  1800 ई0

कर्नल टाड की सवारी 1800 ई0  (बैजनाथ )

रावल गोकुलदास घोड़े पर सवार  1811 ई0

बैजनाथ द्वारा चित्रित रावत नर सिंह जनाना मे 1813

नाहर सिंह द्वारा सूअर का शिकार 1830

नाहर सिंह की प्रेमिका को प्याला देते हुए 1830 ई0

आजारा की ओवरी ,मोती महल के भित्ति चित्र (चौखा ) ये शैली भित्ति चित्र के लिए प्रसिद्ध है ।

 

उदयपुर शैली (उपशैली )

उदयपुर शैली   की स्थापना महाराणा उदय प्रताप सिंह ने की थी 

उदयपुर शैली मेवाड़ की राजधानी भी रही है

उदयपुर झीलों के लिए प्रसिद्ध है ।

पट चित्रो के लिए भी विख्यात है ।

उदयपुर को पूर्व का वेनिस भी कहा जाता है ।

 

 

 

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