रबीन्द्रनाथ टैगोर Rabindranaath taigore

रबीन्द्रनाथ टैगोर Rabindranaath taigore

 

जन्म 7 मई 1861 कलकत्ता  के जोरासाको मे हुआ था ।

7 अगस्त 1941 ई0 80 वर्ष कि आयु मे इनकी मृत्यु हो गई ।

इनके पिता का नाम देवेंद्र नाथ टैगोर था ।

माता का नाम – शारदा देवी था ।

1883 ई0 रबीन्द्रनाथ टैगोर ने 10 साल कि लड़की मृणालिनी देवी से विवाह किया

पत्नी का नाम – मृणालिनी देवी था ।

1902 ई0 मे उनकी पत्नी का निधन हो गया था ।

ओर कुछ समय बाद उनके 2 बेटो का निधन हो गया था ।

1905 मे इनके पिता का भी निधन हो गया था ।

 

संताने – रथींद्रनाथ ,शामिन्द्रनाथ ,मधुरिलता देवी ,मीरा देवी ओर रेणुका देवी

रबीन्द्रनाथ के 13 भाई –बहन थे ओर वह 13 भाई –बहन मे चौथे जीवित पुत्र थे ।

रबीन्द्रनाथ के परिवार मे दार्शनिक ,विद्वान ,कलाकार ,समाज सुधारक तथा प्रतिभाशाली अनेक व्यक्ति थे विदेशी साहित्यों से उनका घर भरा रहता था ।

रबीन्द्रनाथ लेखक ,कवि नाटककार ,संगीतकार ,चित्रकार थे ।

वर्धावस्था मे 67 वर्ष की आयु मे चित्र बनाना शुरू किया ।

रबीन्द्रनाथ टैगोर अंगुलियो से चित्र 1926 ई0 मे बनाना प्रारम्भ किया था ।

रबीन्द्रनाथ कि आधुनिक भारतीय शैली थी ।

रबीन्द्रनाथ के चित्रो का विषय भारतीय नारी था ।

रबीन्द्रनाथ टैगोर को बाल्य कलाकार लेबल के चित्रकार माना जाता है ।

आनंद कुमार स्वामी ने रबीन्द्रनाथ के चित्रो कि तुलना बच्चो कि कला से किया था ।

 

भारतीय कलाकारो को स्वतंत्र व स्वच्छ शैली मे चित्रण करना सिखाया इनके चित्रो की अंतराष्ट्रीय स्तर पर अनेक प्रदर्शिनिया हुई ।

इन्होने करीब 2230 गीतो की रचना की ।

रबीन्द्रनाथ टैगोर एक मात्र व्यक्ति थे जिन्होने  दो देशो के लिए राष्ट्रगान लिखा।

टैगोर की रचनाए दो देशो का राष्ट्रगान बनी भारत का ‘जन गण मन’  ओर बांगलादेश का ‘आमार सोनार बांग्ला ‘ उन्ही की रचनाए है ।

1915 मे ब्रिटिश प्रशासन ने टैगोर को नाइट हुड की उपाधि दी थी ।

ब्रिटिश हुकूमत का विरोध करते हुए अपनी नाइट हुड की उपाधि वापस लौटा दी थी । उनकी यह उपाधि लौटने का कारण विश्व के सबसे बड़े नरसंहारो मे से एक जालियावाला बाग हत्याकांड (1919) था । वर्ष

 

रबीन्द्रनाथ ने आयु के 67 वें वर्ष तक चित्रकला के क्षेत्र मे कोई विशेष प्रयत्न नहीं किए वे विश्वविख्यात कवि बन चुके थे । वर्ष 1926 के करीब उन्होने कपड़े के टुकड़े या उँगलियो को स्याही मे डुबोकर चित्रण शुरू किया ।

रबीन्द्रनाथ टैगोर के शब्दो मे – कला मे सत्य का अस्तित्व तब ही निहित रहता है जब हमको यह कहने के लिए बाध्य कर देता है ।

कि ‘मे देखता हूँ ‘’।

रबीन्द्रनाथ टैगोर कि चित्रकृतियों को पागल व्यक्ति कि कला कहकर पुकारा गया , परंतु उन्होने इस वाक्य का उत्तर इस प्रकार दिया –‘’ मेरे चित्रो का जन्म (सृजन ) किसी शिल्प –कुशल अनुशासन या परंपरा मे नहीं हुआ ओर वे जानबूझकर कि गई किसी वस्तु कि अभिव्यक्ति का प्रयास नहीं है’’।

शांतिनिकेतन की स्थापना 1901 मे की । बाद मे 1919 मे यंहा पर कला भवन की नींव रखी थी ।

जिसे विश्व भारती यूनिवर्सिटी के नाम से भी जाना जाता है ।

1912-13 मे वे इंग्लैंड गए ओर 1913 ई0 मे उन्हे गीतांजलि पर नोबल पुरुस्कार मिला ।

नोबल पुरुस्कार प्राप्त करने वाले प्रथम भारतीय व्यक्ति 1913 ई0 मे मिला था गीतांजलि काव्य संग्रह पर इससे उनकी ख्याति विश्वभर मे फैल गई ।

1920 मे ई0 मे वंहा इन्होने एक कला प्रतियोगिता आयोजित की उसमे भाग भी लिया ओर निर्णायक भी बने ।

1924 ई0 मे जापान ओर चीन होते हुए अर्जेन्टीना गए । 1926 ई0 मे वे पुनः यूरोप- यात्रा पर गए ओर प्रथम विश्वयुद्ध के विरुद्ध लेख लिखे । इसी वर्ष उनकी अन्य प्रदर्शिनिया बिर्मिंघम सिटी ,लंदन ,बर्लिन ,ड्रेसड़ेंन ,म्यूनिख ,डेनमार्क ,स्विट्जरलैंड ।मास्को तथा न्युयोर्क मे हुई । सभी जगह इनकी कला की प्रशंसा की गई ओर आधुनिक भारत के  प्रथम अन्तराष्ट्रिय चित्रकार के रूप मे वे प्रसिद्ध हो गए ।

भारत मे उनके चित्रो की  प्रदर्शिनी 1931 ई0 मे बम्बई मे तथा 1932 ई0 मे कलकत्ता मे हुई । भारत तथा  विदेशो मे उनकी अनेक प्रदर्शिनी 1931 से 1934 तक ओर 1938 से 1939 तक अवधि मे लगी ।

आधुनिक भारत के प्रथम अंतराष्ट्रीय चित्रकार के रूप मे वे प्रसिद्ध हो गए ।

रबीन्द्रनाथ टैगोर ,जिन्हे भारत का प्रथम आधुनिक कलाकार माना जाता है । कविता लिखते समय शब्दो या पंकित्यों अथवा रेखाओ को मिटाने पर जो अकल्पित आकार निर्मित होती उसकी ओर ध्यान आकृष्ट होकर वे कुछ दृश्य कल्पना मे मग्न होते ।

वर्ष 1928 मे इन स्वंयसिद्ध आकारो से वे इतने मोहित हुए की जिस कविता को लिखते समय वे आकार प्रकट हुए थे उसका अस्तित्व ही भूल गए एवं आकारो के विकास पर उन्होने ध्यान केन्द्रित किया ।यही से उनकी अतियथार्थवादी कला का आरंभ हुआ ।

 

1930 मे उनके चित्रो की प्रथम प्रदर्शिनी 1932 मे कोलकाता मे हुई ,बाद मे 1933 मे मुम्बई मे हुई ।

इनके चित्र प्राय शीर्षकहीन है

रबीन्द्रनाथ टैगोर के कुल चित्र 250 है ।

1862 ई0 मे महर्षि देवेन्द्रनाथ टैगोर (रबीन्द्रनाथ टैगोर के पिता) जब नाव द्वारा रायपुर कि यात्रा कर रहे थे ,तो उस पार धान के हरे- भरे खेत ओर लाल मिट्टी कि भू दृश्य देखी । उन्होने वंहा ओर पोधे लगाने तथा एक छोटा घर बनाने का निर्णय लिया उन्होने अपने इस घर को शांतिनिकेतन नाम दिया । 1863 ई0 मे यंहा एक आश्रम कि स्थापना कि,जो ‘ब्रह्मो समाज ‘ का प्रेरक बना ।

वर्ष 1901 मे रबीन्द्रनाथ ने शांतिनिकेतन मे ब्रहमचारी आश्रम के नाम से एक मॉडल स्कूल कि स्थापना कि जो प्राचीन गुरुकुल पद्धति कि तरह था , बाद मे इसे ‘पठा भवन के नाम से जाना  गया ।

रबीन्द्रनाथ के चित्र विश्वस्तर पर पेरिस 1930 ई0 मे प्रदर्शित किया गया था ।

इंटरनेशनल कला प्रदर्शिनी मे रबीन्द्रनाथ के 4 चित्र प्रदर्शित हुए थे ।

 

रबीन्द्रनाथ द्वारा बनाए चित्र  –

  1. औरत की मुखाकृति
  2. मशीन मैन
  3. प्राचीन कानाफूसी
  4. हताश पुरुष
  5. सफ़ेद धागे
  6. पक्षी युगल
  7. दृश्य चित्र
  8. वह
  9. प्रेतात्मा पक्षी
  10. पिचास आकृतिया
  11. कूदता हुआ हिरण
  12. राजहंस
  13. चिड़िया
  14. ट्रीज़
  15. मेल हेड
  16. मैन राइडिंग ए डंकी

 

रबीन्द्रनाथ टैगोर से संबन्धित प्रश्न –

  1. शांति निकेतन कहाँ स्थित है ।

      वीर भूमि (प0बंगाल)

  1. रबीन्द्रनाथ टैगोर की कृतियो की समानता अभिव्यंजनवादी कलाकार नोल्डे तथा पाल क्ली से की जाती है ।
  2. नकाब ढके नाक तथा मुख, दाड़ी सहित नारी चेहरा ओर स्वप्न्लोक रबीन्द्रनाथ की विशेषता है ।
  3. रबीन्द्रनाथ टैगोर का माध्यम स्याही ,रंगीन पेंसिल, फूलो की पंखुड़िया से प्राप्त रंग, ड्राइ पॉइंट, पेस्टल,एचिंग, जलरंग थे ।
  4. 2011 ई0 मे रबीन्द्रनाथ टैगोर के 150 वीं जन्म शताब्दी के अवसर पर ‘’द लास्ट हार्वेस्ट’’ नाम से एक कला प्रदर्शिनी का आयोजन आर0 शिव के निर्देशन मे हुआ था ।

 

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