रामगोपाल विजयवर्गीय

रामगोपाल विजयवर्गीय

रामगोपाल विजयवर्गीय का जन्म सवाई माधोपुर के एक छोटे से गाँव बालेर मे 1905 मे हुआ था ।

रामगोपाल विजयवर्गीय की मृत्यु 4 मई  2003 को 98 साल की उम्र मे हुई थी  ।

जीवनकाल – 1905-2003

रामगोपाल विजयवर्गीय के पिता का नाम ठाकुर कामादार व्यापारिक था ।

राजस्थानी चित्रकला के क्षितिज  पर सर्वाधिक सुप्रसिद्ध  चमकता तारा चित्रकार रामगोपाल विजयवर्गीय आभा किरणों से राजस्थान की चित्रकला को प्रकाशमय करते रहे है। इनकी अनवरत कला साधना का आधार परंपरागत भारतीय चित्रकला रही । रामगोपाल विजयवर्गीय ऐसे कलाकार थे , जिन्हे इस शिखर पर पहुँचने के लिए कठिन साधना व संघर्ष करना पड़ा , जिसका इन्हे यथायोग्य पुरुस्कार व सम्मान मिला ।

रामगोपाल विजयवर्गीय का रुझान कला की ओर होने कारण ये खड़िया व कोयले से दीवारों पर आकृतियाँ बनाते व रंगीन तस्वीरों को इकट्ठी करते थे ।

 

रामगोपाल विजयवर्गीय के गुरु शैलेन्द्रनाथ डे थे ।

रामगोपाल विजयवर्गीय परंपरावादी चित्रकार व साहित्यकार ।

सन 1970 मे राजस्थान ललित काला अकादमी का सर्वोच्च कला सम्मान कलाविद मिला ।

रामगोपाल विजयवर्गीय को भारत के राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह को पदमश्री सन 1984 0 मे दिया था

रामगोपाल विजयवर्गीय व्यक्ति चित्रण के लिए प्रसिद्ध थे ।

रामगोपाल विजयवर्गीय ने अभिज्ञान शाकुंतलम /रामायण ग्रंथ की चित्र शृंखला बनाई  थी ।

राग-रागनियों ओर उमर खय्याम की चित्र शृंखला रामगोपाल विजयवर्गीय ने बनाई  थी ।

 

काव्यकाला व चित्रकला का सामंजस्य –

रामगोपाल विजयवर्गीय केवल चित्रकला के ही धनी नहीं थे , बल्कि यह कहे की वे बहुमुखी कला-प्रतिभा के धनी थे तो अतिशयोक्ति नही होगी । इन्होने अपने मन की अभिव्यक्ति चित्रकला के अतिरिक्त कहानी लेखन, साहित्य लेखन, कविता लेखन के द्वारा भी प्रकट की है  ।

काव्य ओर कला के सामंजस्य से इन्होने ऐसी कला  धारा प्रवाहित की, जो सत्यम शिवंम  सुंदरम के रूप मे प्रकट हुई।

रामगोपाल विजयवर्गीय ने लिखा है , जो अवस्था कवि की है , वह चाँदनी मे रजत पूर्ण सुंदर मुखो मे कमल व लता वृक्षो मे लावण्य खोजता है । उसी प्रकार चित्रकार भी उषा, संध्या, बसंत व पतझड़ मे अलौकिक आनंद की मन्दाकिनी बहती हुए देखता है ।

संगीत, साहित्य, कला, धर्म व दर्शन, इन सभी का अन्योन्यश्रय संबंध है ।

 

सन 1989 मे राष्ट्रीय ललित कला अकादमी द्वारा रत्न सदस्यता से सम्मानित किया गया ।

रामगोपाल विजयवर्गीय के सर्वाधिक प्रिय विषय नारी चित्रण

रामगोपाल विजयवर्गीय के प्रमुख साहित्यिक रचना अभिसार निशा ।

बंगाल व अजंता की कला से प्रेरित होकर टेम्परा तथा वाश तकनीक मे कार्य आरंभ किया था ।

रामगोपाल विजयवर्गीय की एकल चित्र प्रदर्शिनी की परंपरा को प्रारम्भ करने वाले राजस्थान के प्रथम  चित्रकार ।

रामगोपाल विजयवर्गीय की काव्य कला का अनूठा प्रथम प्रयोग काव्य संग्रह ‘’चित्रगीतिका’’ मे दिखाई देता है ।

जयदेव कृत गीत गोविंद का भी चित्रांकन किया है ।

 

 

रामगोपाल विजयवर्गीय की प्रदर्शिनिया –

रामगोपाल विजयवर्गीय की प्रदर्शिनी का आयोजन किया ।

मुंबई ,कोलकाता ,इलाहाबाद , बनारस, लाहौर, शिमला, दिल्ली, लखनऊ, आदि मे चित्रो की प्रदर्शिनिया हुई विदेशो मे भी इनके चित्रो की प्रदर्शिनीयों का आयोजन हुआ ।

 

 

रामगोपाल विजयवर्गीय की प्रमुख चित्राकृतिया

  1. तमाशा दिखाते मदारी
  2. गुब्बारे वाला
  3. इंद्रजीत विजय
  4. सुबह का संगीत
  5. पनघट की ओर
  6. हरिजन महिला
  7. बाजार की ओर
  8. ताड़का वध
  9. गाँव का कुआ
  10. कृषक कन्या
  11. बस स्टैंड
  12. सीता हरण
  13. पार्वती तपस्या
  14. सर्दी के दिन
  15. विश्राम करते राम सीता
  16. वानरो के साथ राम
  17. कृष्ण सुदामा
  18. गंगावतरण
  19. जटायु वध
  20. मजदूर
  21. गणगोर वृद्ध किसान
  22. रिक्शावाला
  23. तेरहताली
  24. रागिनी बिलावल
  25. काव्य शृंगार
  26. माँ ओर बच्चा
  27. कृष्ण गोपियो के साथ
  28. श्रमिक
  29. तांगावाला
  30. नाग पुजा

 

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