आइये आज हम सिंधु घाटी सभयता के बारे मे जानेंगे जो आध एतिहासिक काल की सभ्यता ह
सिंधु घाटी की सभ्यता
सिंधु घाटी सभ्यता का सर्वप्रथम पता 1826 मे चार्ल्स मैसन ने लगाया था 1878ई0 मे कनिघम ने हड़प्पा टीले का पता लगाया था सर्वप्रथम इसकी खुदाई 1921 मे राय बहादुर साहनी ने कराई थी 1924 मे जॉन मार्शल ओर अर्नेस्ट मैक ने खुदाई करवाई
जब 1856 मे ”जॉन विलियम ब्रांटम ” ने कराची से लाहौर तक रेलवे लाइन बिछवाने हेतु ईंटों की आपूर्ति के इन खंडहरो की खुदाई प्रारम्भ कारवाई । खुदाई के दौरान ही इस सभ्यता के प्रथम अवशेष प्राप्त हुए
यह सभ्यता सिंधु नदी के मुहाने से उसके पश्चिम मे ब्लूचिस्तान तथा इधर गंगा ,यमुना,एव नर्मदा के मुहाने तक फैली थी । सिंधु सभ्यता लगभग 14 लाख वर्ग किमी0 मे फैली है तथा चतुर्भुजाकार मे है
सिंधु घाटी सभ्यता का समय 2700 ईसा पू0 से 1700 ईसा पू0 माना जाता है
नवीन पद्धति कार्बन c -14 के आधार पर हड़प्पा सभ्यता का काल 2300 ईसा पू0 से 1750 ईसा पू0 माना गया
यह सभ्यता पूर्ण विकसित थी । ये मात्रसत्तात्मक सभ्यता थी । वैज्ञानिक आधार पर इस सभ्यता की खोज का श्रेय ”जॉन मार्शल ओर अर्नेस्ट मैक को जाता है । सिंधुघाटी सभ्यता के 1400 केन्द्रो को खोजा जा चुका है जिसमे से 925 केंद्र भारत मे है । 80 % स्थल सरस्वती नदी ओर उसकी सहायक नदियो के आस पास है अभी तक कुल खोजो मे से 3% स्थलो का ही उत्खनन हो पाया है ।
ये सभयता तीन देशो मे फैली हुई है भारत 2 पाकिस्तान 3 अफगानिस्तान
उत्तर मे जम्मू कश्मीर दक्षिण मे महाराष्ट्र दाइमाबाद पूरब मे ब्लूचिस्तान पश्चिम मे आलमगीर मेरठ (उत्तर प्रदेश )
उत्तर मे जम्मू कश्मीर दक्षिण मे महाराष्ट्र दाइमाबाद पूरब मे ब्लूचिस्तान पश्चिम मे आलमगीर मेरठ (उत्तर प्रदेश )
सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि भाव चित्रात्मक (हाइरोग्लिफ ) है , जो लिपि दाई से बाई ओर लिखी जाती थी ।
नामकरण-
हड़प्पा सभ्यता
सबसे पहले हड़प्पा टीले की खोज हुई इसीलिए हड़प्पा कहा गया
( कांस्ययुगीन सभयता)
ताँबा +टीन मिलाकर यंहा पर कांसा का प्रथम बार प्रयोग हुआ इसीलिए इसे कांस्ययुगीन सभ्यता कहा गया
पकाई गई ईंटों की सभ्यता –
पकी हुई ईंट मिलने के कारण खोजकर्ताओ ने इसे म्रत पात्रो को सभ्यता कहा है इतिहासकारो के अनुसार हड़प्पा सभ्यता के निर्माता द्रविड़ लोग थे
नगरीय सभ्यता –
यंहा पर नगर की तरह लोग रहते थे
सिंधु घाटी सभ्यता मे 18 मूर्तिया मिली है सबसे अधिक नारी की मूर्ति प्राप्त हुई है मुख्य प्रतिमा पुजारी की मूर्ति 1200-2000 मोहरे प्राप्त हुई है ( ज़्यादातर शैल खड़ी पत्थर से बनी है ईंटों का अनुपात 4:2:1 मे मिली है बर्तनो को लाल रंग लगाने के बाद काले से चित्रकारी की गई चित्रात्मक लिपि मे 396 चित्र प्राप्त हुए है मकानो को ग्रीक (जाल) पद्धति मे बनाया गया था पीपल व्रक्ष का सबसे ज्यादा अंकन हुआ है
सिंधु घाटी सभ्यता मे 18 मूर्तिया मिली है सबसे अधिक नारी की मूर्ति प्राप्त हुई है मुख्य प्रतिमा पुजारी की मूर्ति 1200-2000 मोहरे प्राप्त हुई है ( ज़्यादातर शैल खड़ी पत्थर से बनी है ईंटों का अनुपात 4:2:1 मे मिली है बर्तनो को लाल रंग लगाने के बाद काले से चित्रकारी की गई चित्रात्मक लिपि मे 396 चित्र प्राप्त हुए है मकानो को ग्रीक (जाल) पद्धति मे बनाया गया था पीपल व्रक्ष का सबसे ज्यादा अंकन हुआ है
विशेषताए –
कृषि – मे गेंहू , जौ
पशुपालन मे गाय ,भैंस , बैल ,
वस्त्र – सूती, रेशमी ,ऊनी कपड़ो की अच्छी जानकारी थी। कताई ,बुनाई धातु-ताँबा , सोना ,टीन
(हड़प्पा सभ्यता )
हड़प्पा को ” इंडस वैली ” के नाम से भी जाना जाता है
हड़प्पा को ऋग्वेद मे ”हरियूपिया ” के नाम से जानते थे
हड़प्पा की मोहरो मे एक सिंग पशु का अंकन मिलता है
हड़प्पा के 2 भाग है 1 पहला पूर्वी टीला या नगरीय टीला दूसरा पश्चिमी या दुर्ग टीला हड़प्पा का उत्खनन दयाराम साहनी ने करवाया था यंहा पर 12 कक्षो का 1 अन्नागार जो 6-6 की पंक्ति मे है ताँबा गलाने का सबसे बड़ा कारख़ाना मिला है हड़प्पा का मुख्य राजमार्ग 33 फीट चौड़ा है जो गलियो को समकोण पर काटती है घर के द्वार पीछे की ओर खुलते है 2 पुरुषो के धड़ मिले है एक बर्तन पर एक मछुआरे का चित्र है शंख पर बैल का चित्र है पीतल का बना इक्का भी प्राप्त हुआ है प्रथम हड़प्पा पुरुष लाल बलुआ पत्थर का बना है जिसकी माप 3.3 *3.4 की है कुछ विद्वान का मानना है की यह ऋषभदेव ( आराध्यदेव) का धड़ है द्वितया हड़प्पा पुरुष की माप 3.7 *3.8 जो की नटराज की मूर्ति है
हड़प्पा से एक खंडित पक्षी का पिंजरा भी मिला है
एक माँ के साथ जुड़वा बच्चो की मूर्ति जो पक्की मिट्टी से बनी है ”राष्ट्रीय संग्रहालय नई दिल्ली ” मे स्थापित है
हड़प्पा सिंधु घाटी का सबसे बड़ा नगर है हड़प्पा मांटुंगरी जिले मे पड़ता जो रावी नदी के पास ( पाकिस्तान) मे पड़ता है
कनिघम ने हड़प्पा के टीले का खोज 1878 मे की थी ओर खुदाई ”दयाराम साहनी ” के संरक्षण मे 1921 मे हुई ।
मोहनजोदड़ों सभ्यता (मुर्दों का टीला )
मोहनजोदड़ों हड़प्पा से 473 किमी0 दूर सिंध प्रांत के लरकाना जिले मे सिंधु नदी के पास है सिंधु घाटी का नाम सिंधु नदी के कारण पड़ा
हड़प्पा के एक वर्ष बाद 1922 मे ”राखलदास बनर्जी ” ने खुदाई करवाई ये नगर करीब 5 किमी0 मे फैला हुआ है मोहनजोदड़ों के महत्वपूर्ण स्थान स्नानागार महत्वपूर्ण स्थल विशाल स्नानागार प्राप्त हुआ है ओर कुम्भ्कार के भट्टों के अवशेष प्राप्त हुए है नर्तकी की मूर्ति काँसे की बनी है 9 सेमी0 4.9 इंच इसकी माप है ये राष्ट्रीय संग्रहालय नई दिल्ली मे है एक पुजारी की प्रतिमा जो चुने पत्थर की बनी है ये योगी की आवक्ष मूर्ति जो दुशाला ओढ़े हुए दाढ़ी वाले योगी एक पुजारी की मूर्ति है ये त्रिफुलिया अलंकार दुशाला ओढ़े हुए है, ”शैलखड़ी पत्थर ” हाथ मे बाजू बंद पहना हुआ है जो राष्ट्रीय संग्रहालय कराची मे है इसकी माप 17.5 सेमी0, 6.9 इंच। गार्डन के मतानुसार इस प्रतिमा पर सुमेरियन तथा बेबीलोनिया का प्रभाव अंकित है । ओर एक सभाभवन 90 फीट लंबा वर्गाकार है मोहनजोदड़ों के महान स्नानागार को ”प्राचीन दुनिया का सबसे पुराना सार्वजनिक पानी का टैंक ” कहा जाता है इसका माप 38.97*22.99 फीट है जो ओर इसकी अधिकतम गहराई 7.97 फीट है । (12*7*2.4 मी0 )
( चंहुदड़ों सभ्यता )
चंहुदड़ों मोहनजोदड़ों से 80 किमी0 दूर है सिंधु नदी के तट पर है यह स्थान पाकिस्तान के सिंध प्रांत के मोहनजोदड़ों के दक्षिण मे स्थित है । इसकी खुदाई 1931 मे ”एन . सी मजूमदार” ने कराई थी ।
चंहुदड़ों को ”श्रमिकों की बस्ती ”भी कहा जाता है यानहा पर मोती मनके आभूषणो का काम भी होता था । बिना दुर्ग के एकमात्र सिंधु नगर चंहुदड़ों था । ओर यहा से वक्राकार इंटे मिली है । यंहा पर कुत्ते बिल्ली की पीछा करते हुए चित्र प्राप्त हुए है तथा पीतल की बनी बत्तख भी प्राप्त हुई है
( कालीबंगा सभ्यता )
कालीबंगा का अर्थ काले रंग की चूड़िया है यंहा पर श्रंगार के समान प्राप्त हुए है ये राजस्थान के हनुमान गढ़ी जिले मे है ये घाघरा नदी के किनारे है कालीबंगा की खोज अम्लानन्द घोष ने 1951 मे की थी ओर इसका उत्खनन बी.बी लाल व बी. के थापर 1953 मे करवाया था ।
यंहा पर कच्ची ईंटों के अवशेष मिले जिनका आकार 30*20*10 था यंहा पर नालिया लकड़ी की बनी है कालीबंगा जुते हुये खेत के लिए प्रसिद्ध है,यंहा से कपास की खेती के साक्ष्य भी प्राप्त हुए है । जले हुए चावल के भी साक्ष्य मिले है दुर्ग टीले से कच्ची ईंट के बने पाँच चबूतरे मिले है ,जिनके ऊपर हमे हवन कुंडो के साक्ष्य मिले है ।
(लोथल )
लोथल सभ्यता गुजरात के अहमदाबाद भोगवा नदी के किनारे स्थित है इस स्थल की खुदाई रंगनाथ राव के नेत्रत्व मे 1954-55 मे की गई थी ।
यंहा पर दो युग्म जोड़े के साथ दफनाये गए है ओर यंहा पर ताँबे का हंस भी प्राप्त हुआ हैओर एक मर्तबान (जार) प्राप्त हुआ जिस पर ”पंचतंत्र की धूर्त लोमड़ी ” वाली कहानी चित्रित है ओर शतरंज के बोर्ड के नमूने भी प्राप्त हुए है ”हाथी दाँत का पैमाना ”(बाट माप का यंत्र ) , आटा पीसने की चक्की , छोटा सा एक दिशा मापक यंत्र भी है तथा मेसोपोटामिया की तीन बेलनाकार मोहरे भी प्राप्त हुई है लोथल की अधिकांश कब्रों मे कंकाल के सिर उत्तर की ओर पैर दक्षिण की ओर था । लोथल व्यापार पश्चिमी एशिया का प्रमुख केंद्र है
(रोपड़ )
रोपड़ सतलज नदी के बाए किनारे पड़ता है जो पंजाब मे है जिसकी खोज बी .बी . के द्वारा की गई रोपड़ का उत्खनन 1953-57 मे यज्ञदत्त शर्मा ने किया था रोपड़ मे शवो के अंतिम संस्कार के लिए ईंटों से बना एक कमरा मिला है यंहा शवो को गड्ढों मे शवो को दफनाया जाता था ।
रोपड़ मे ”कुत्ते के साथ मानव ” के शवाधान के साक्ष्य मिले है रोपड़ से एक ताँबे की कुल्हाड़ी भी प्राप्त हुई है
रोपड़ सिंधु सभ्यता का स्वतंत्र भारत का खोजा गया प्रथम स्थल है ।
( बनमाली )
बनमाली हरियाणा के हिसार जिले मे स्थित है ये रंगई नदी के किनारे है यंहा उत्क्रष्ट मिट्टी के बर्तन जो शैल खड़ी से बने है जो लिपि युक्त मोहरे है ताँबे के बर्तन भी प्राप्त हुए है इसकी खुदाई 1974 मे आर. एस बिष्ट के द्वारा करवाया गया । यंहा से ताँबे की कुल्हाड़ी , हल की आकृति खिलोनों के रूप मे प्राप्त हुई है । सड़कों पर बैलगाड़ी के निशान, ताँबा मछ्ली-हुक (मछ्ली पकड़ने का काँटा )
(धोलावीरा)
धोलावीरा रंगई नदी के पास गुजरात के कच्छ जिले मे स्थित धोलावीरा भारत मे स्थित सबसे बड़ा हड़प्पा स्थल है इसकी खोज जगतपति जोशी ने 1967-68 मे की लेकिन इसका उत्खनन 1990 मे आर .एस बिष्ट ने करवाया था ।
धोलावीरा का शाब्दिक अर्थ ”सफ़ेद कुआ है
इसको तीन स्त्री पद्धति मे रखा गया है 1 दुर्ग टीला (140*300 मी0 ) 2 मध्य टीला (360*250 मी0 ) 3 निचला टीला (300*300 मी0 )धोलावीरा नगर के दुर्ग भाग एव माध्यम भाग के मध्य अवस्थित 283*47 मी0 का एक विशाल स्टेडियम मिला है , इसके चारो ओर दर्शको के बैठने के लिए दर्शक दीर्घा बनी हुई है । सिंधु लिपि के सफ़ेद खडिया मिट्टी के ”दस बड़े अक्षरो ” मे लिखे एक बड़े अभिलेख पट्ट की छाप मिली है , यह विश्व के प्रथम सूचना पट्ट का प्रमाण माना जाता है ।
रॉक कट स्ट्रक्चर धोलावीरा से प्राप्त हुआ है शोरतूगुई ( सिंधुघाटी सभ्यता अफगानिस्तान मे है सिंधु अर्थव्यवस्था की ताकत व्यापार थी । इसके अलावा कृषि एव पशुपालन भी था ।
(सिंधु घाटी सभ्यता स्थल )
नगर |
नदी | उत्खनन कर्ता | स्थिति | |
1 | हड़प्पा | रावी | दयाराम साहनी 1921 | पाकिस्तान ,मांटुंगरी |
2 | मोहनजोदड़ों | सिंधु | राखलदास बनर्जी 1922 | पाकिस्तान ,लरकाना |
3 | चंहुदड़ों | सिंधु | एन. सी मजूमदार 1931 |
पाकिस्तान, सिंधु |
4 | कालीबंगा | घाघरा | बी.बी लाल थापर | राजस्थान ,हनुमानगढ़ी |
5 | लोथल | भोगवा | रंगनाथ 1954-55 | गुजरात ,अहमदाबाद |
6 | रोपड़ | सतलज | यज्ञदत्त शर्मा | पंजाब ,रोपड़ |
7 | बनमाली | रंगई | आर .एस बिष्ट 1974 | हरियाणा , हिसार |
8 | धोलावीरा | रंगई | आर . एस बिष्ट 1990 | गुजरात |
9 | आलमगीरपुर | हिंडन | यज्ञदत्त शर्मा | उत्तर प्रदेश , मेरठ |
10 | रंगपुर | सुकभादर | रंगनाथ राव 1953-54 | गुजरात ,कठियावाड़ |
धोलावीरा की खोज जगतपति जोशी ने 1967-68 मे की थी कालीबंगा की खोज अम्लानन्दघोष ने 1951 मे की थी आलमगीरपुर की खोज यज्ञदत्त शर्मा ने 1958 मे की थी
(झुकर तथा झंगर सभ्यता )
झुकर तथा झांगर सभ्यता की खोज एन . जी मजूमदार ने 1932 मे की थी
(आहड़ )
आहड़ सभ्यता राजस्थान मे उदयपुर के समीप बनारस की सहायक बेडच नदी के तट पर स्थित है इसकी खोज अभयकीर्ति व्यास ने 1951-52 मे की थी तथा उत्खन्न 1954-55 मे डॉ रतनचन्द्र अग्रवाल ने की थी कार्बन डेटिंग C -14 से पता चला की यह सभ्यता आज से लगभग 4000 साल प्राचीन है
(सुरकोटदा )
सुरकोटदा की खोज जगतपति जोशी ने 1964 मे की थी यह स्थल गुजरात के कच्छ के रन मे स्थित है । यहा पर घोड़े के अस्थि पंजर के अवशेष ओर अनूठी प्रकार की कब्र मिली है
दिसम्बर 2014 मे भीरड़ाना को सिंधु घाटी सभ्यता का अब तक का खोजा गया सबसे प्राचीन नगर माना गया है
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