हाड़ौती शैली

हाड़ौती शैली

आइये आज हम हाड़ौती  शैली के बारे मे जानेगे  जो की हाड़ा वंश  से संबन्धित है ।

हाड़ौती शैली की उपशैली

  1. बूंदी शैली
  2. कोटा शैली
  3. झालावाड़ शैली

 

 

 

बूंदी शैली

  •  हाशिये बनने की शुरुआत  ईरानी शैली से हुई
  •  बूंदी राज्य की स्थापना – राव देवा जी 1342  मे की थी ।
  •  रावदेव के बाबा का नाम बूँदा था इन्ही के नाम पर इसका नाम बूंदी पड़ा ।
  •  प्रथम प्रदर्शनी 1949 ओ0 सी0 गांगुली द्वारा
  •  बूंदी शैली के प्रारम्भिक शैली प्रारम्भिक चित्रो मे राग दीपक (भारत कला भवन बनारस)   तथा  रागिनी भैरवी (नगर पालिका संग्रहालय  इलाहाबाद ) मे है ।
  •  बूंदी शैली का महत्व राव सुरजन सिंह  के समय  1554  से प्रारम्भ  होता है ।
  •  लघु  चित्रण (मिनिएचर पेंटिंग ) राजस्थान , मुगल ,पहाड़ी शैलिया  लघु चित्रण मे आती है  लघु चित्रण की शुरुआत पाल शैली से होती है ।

 

 

बूंदी शैली के प्रमुख चित्रकार

  1. सुरजन
  2. रामलाल
  3. अहमद अली
  4. डोडिया
  5. मोहन

 

बूंदी शैली  के प्रमुख चित्र

  1. दूज का चाँद देखते प्रेमी युगल – मोहन का है जो की प्रिंस ऑफ वेल्स मुंबई मे स्थापित है ।
  2. राव उम्मेद सिंह सूअर का शिकार करते हुए  राष्ट्रीय स्ंग्रहलय नई दिल्ली मे स्थित है ।
  3. महिलाए चौपड़ खेलते हुए ।
  4. स्त्रिया शिकार करते हुए ।
  5. दोड़ते हाथी ।
  6. हिंडोला रागिनी ।
  7. काँटा निकालते हुए  प्रिंस ऑफ वेल्स मुंबई
  8. शेर व हाथी की लड़ाई राष्ट्रीय स्ंग्रहलय नई दिल्ली।
  9. सुंदर गज पर सवारी (गोपी कृष्ण कनौरिया कोलकाता )
  10. परिचायिकों सहित  रानी प्रिंस ऑफ वेल्स मुंबई
  11. राधा कृष्ण मिलन ।

 

 

 बूंदी शैली की विशेषता

  •  बूंदी शैली मे परवल के आकार के नेत्र बने है ।
  •  बूंदी शैली मे आकृतीया लंबी तथा छोटी नाक वाली बनाई गई है  तथा  इन्हे काला लहंगा तथा  लाल चुनरी पहने दिखाया गया है । बूंदी शैली  मे इंद्र्धनुष  आकाश का चित्रण हुआ है । चित्रो मे केले व वृक्ष की पत्तियों अंकित की गई है ।
  •  रागमाला  बारहमासा व नायिका भेद  चित्रकारों  का प्रिय विषय  रहा है । चित्रो मे नारंगी व हरे रंग की प्रधानता है ।  बूंदी शैली का जन्म रागिनी चित्रो से होता है ।
  • बूंदी शैली  चित्रो पर सर्वाधिक दक्खिनी शैली का प्रभाव  दिखाई पड़ता है । इस शैली  मे स्नान दृश्यो को प्रमुखता से अंकित किया गया है ।

 

 

बूंदी शैली के महत्वपूर्ण तथ्य

  •  बूंदी शैली मे छतों पर शीशे की जड़ाई का कार्य हुआ है ।
  •  कवि मतिराम द्वारा रचित ग्रंथ रसराज व ललित ललाय है कवि मतिराम राजा भाव सिंह के दरबार मे था
  •  राजा छात्रपाल व राजा उम्मेद सिंह का काल बूंदी शैली का चरमोत्कर्ष काल था ।
  •  बूंदी शैली के अधिकांश चित्र (विक्टोरिया अल्बर्ट संग्रहालय लंदन ) मे संगृहीत है । इसके अलावा बूंदी के कुछ चित्र राज्य संग्रहालय लखनऊ  (बनारस बाग ) मे संगृहीत  है ।

 

 कोटा शैली

  •  बूंदी से 32 किमी0 दूर यह नगर स्थित है ।
  • 1952  ई0 के पश्चात  कर्नल टी0जी0 गेयर एंडरसन ने अपना निजी सग्रह विक्टोरिया म्यूजियम लंदन को  भेंट किया तो उस संग्रह के कुछ चित्र बूंदी से कुछ भिन्न तर्ज पर पाये गए  यही  से कोटा शैली के बारे मे प्रथम जानकारी प्राप्त हुई है ।
  •  बूंदी  के राजा राव समर सिंह के समय मे चंबल के दाहिने किनारे पर भीलों  का एक राज्य था जिसका नेता कोट्या था । इसी के नाम पर इस नगर का नाम कोटा पड़ा ।
  •  कोटा शैली मे चित्रकला की शुरुआत  राजा राम सिंह के समय से होती  है ।
  •  यह शैली मुख्य रूप से शिकार चित्रो के लिए प्रसिद्ध है ।
  •  भित्ति चित्र के लिए भी प्रसिद्ध है ।
  •  कोटा शैली के उत्कृष्ट भित्ति चित्र झाला जी की हवेली , कोटा राजमहल तथा देवता जी की हवेली मे देखने को मिलते है । चरमोत्कर्ष काल  राजा उम्मेद सिंह 17 वीं 18वीं शती
  •  भीम सिंह के समय कृष्ण से संबन्धित चित्रण हुआ  रागमाला  के बहुत से चित्र गुमान सिंह के समय मे बने जिसे डालुराम ने बनाए है ।

 

  कोटा शैली की प्रमुख चित्रकार

 

  1. डालुराम
  2. नूर मोहम्म्द
  3. लछिराम
  4. गोविंदराम
  5. रघुनाथ

 

 कोटा शैली की विशेषता

  • हाशिये पीले ,लाल रंग के
  •  पृष्ठ भूमि  हरे रंग की बनाई गई है ।
  • यंहा  के अधिकतर चित्र विक्टोरिया एंण्ड  अल्बर्ट म्यूजियम  लंदन मे संगृहीत है ।
  •  सर्वाधिक कजली स्याही का प्रयोग कोटा शैली  मे दिखाया गया है ।
  • प्रमुख रंग – हल्का  हरा, पीला व नीला रंग अन्य रंगो की अपेक्षा अधिक प्रयोग हुआ है ।

 

 झालावाड़ शैली

  •  यधपी इसपर कोटा शैली का पूर्ण प्रभाव रहा है किन्तु झालावाड़ चित्रो मे कंही कंही अलग  विशिष्टताये  दिखाई पड़ती है , इसी  वजह से इसे अलग नाम दिया गया है ।
  • झालावाड़  की  स्थापना – मदन सिंह झाला ने की
  •  चरमोत्कर्ष काल – जालिम सिंह झाला
  •  प्रमुख चित्र – राम दरबार कमरे के एक आले (ताका )  मे बना है ।

 

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